Use and Misuse of History

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किसी भी विषय का उपयोग तथा दुरुपयोग उसके क्रियान्वयन पर निर्भर करता है। इतिहास भी मानव समाज के लिए अत्यंत उपयोगी है परंतु महत्वाकांक्षी व्यक्तियों द्वारा व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए इसका दुरुपयोग किए जाने से यह विषय भी कुछ अंशो में अनुपयोगी सिद्ध हो गया है। इतिहास की उपयोगिता अथवा अन उपयोगिता की विवेचना के लिए दोनों पक्षों का अलग-अलग विस्तृत विश्लेषण आवश्यक है।

इतिहास का उपयोग :
आधुनिक युग में इतिहास की उपादेयता समाज के समक्ष एक महत्वपूर्ण विचारणीय प्रश्न है तकनीकी विज्ञान तथा चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन करने वाले विद्यार्थी निश्चित रूप से अभियंता या चिकित्सक बनते हैं परंतु इतिहास का अध्ययन करने वाला प्रत्येक विद्यार्थी इतिहासकार नहीं बन सकता है। अत्यव इस परिप्रेक्ष्य में इतिहास के अध्ययन की उपयोगिता का आधार और मापदंड क्या है।

मानव जीवन में इतिहास की उपयोगिता असंदिग्ध है क्योंकि यह मानव सभ्यता – संस्कृति के विकास की कहानी है। एक राष्ट्र या सभ्यता-संस्कृति के उत्थान-पतन और विकास को समझने के लिए उसके इतिहास का अध्ययन आवश्यक है। इतिहास एक आईने की तरह मानवीय प्रयासों को प्रतिबिंबित करता है यह मानव जीवन के समस्त पहलुओं से युक्त ऐतिहासिक तथ्यों का अध्ययन कर महत्वाकांक्षी व्यक्ति अपने कार्यों के औचित्य की पुष्टि इनका उदाहरण दे कर करते हैं। विस्तारवादी नीतियों को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से सही बताया जाता है, यथा चीन द्वारा तिब्बत को हस्तगत करना ओर ‘भारत-चीन’सीमा विवाद।

इतिहास शिक्षाप्रद है :
कुछ विद्वानों का विचार है कि विज्ञान में पुनरावृत्ति होती है इसलिए यह मानव जीवन के लिए उपयोगी है। इतिहास में पुनरावृति की संभावना नहीं होती इसलिए यह शिक्षाप्रद नहीं हो सकता। निश्चित रूप से समय, स्थान तथा व्यक्ति की पुनरावृति इतिहास में संभव नहीं है। फ्रांस की राज्य क्रांति (1789 ई.), ‘लुई XVI’ की जिन नीतियों के कारण हुई उसकी पुनरावृति नहीं हो सकती। यह अवधारणा तर्कसंगत नहीं है क्योंकि परिस्थितिजन्य घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है, जैसे – फ्रांस में 1830 ई.,1848 ई. की तथा रूस में 1905 ई.,1917 ई. की राज्यक्रांतियां परिस्थितियों की पुनरावृति की परिणाम थी। ए. एल. राउज के अनुसार,”इतिहास में स्वर, गति, क्रम तथा योजना के पुनरावृति होती रहती है।” सामान्यीकरण के आधार पर इतिहास शिक्षाप्रद होता है। यद्यपि इतिहास में विशेष घटनाओं और विशिष्ट व्यक्तित्व महत्त्वपूर्ण है लेकिन हम इतिहास से शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं, जैसे – पुनर्जागरण काल में लोगों ने प्राचीन यूनान तथा रोम के इतिहास का अध्ययन शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से किया था।
डेवी के अनुसार, “अतीत पर कृपा हम ना तो अतीत के लिए बल्कि वैभव पूर्ण तथा सुरक्षित वर्तमान के लिए इस उद्देश्य से करते हैं कि वह सुंदर भविष्य के निर्माण में सहायक होगा।”
इटली के दार्शनिक इतिहासकार क्रोचे ने समस्त इतिहास को समसामयिक कहा है। अतीत में मानवीय प्रयासों का अध्ययन वर्तमान के कार्यों में सहायक होता है, जैसे चंद्रमा पर मनुष्य का सफल पदार्पण विगत के प्रयासों की असफलता का अध्ययन कर उन गलतियों को न दोहराने का परिणाम था।
बेकन ने कहा है, “इतिहास मनुष्य को विवेक पूर्ण बनाता है।” आर. सी. के. एंसर के अनुसार, “इतिहास विश्व के वर्तमान स्वरूप की पृष्ठभूमि का ज्ञान प्रदान करता है।”
‘सर वाल्टर रेले’ ने कहा है – इतिहास का उद्देश्य अतीत के उदाहरणों द्वारा ऐसा विवेक प्रदान करना है,जो हमारी इच्छाओं और कार्यों का मार्गदर्शन कर सके।” कुछ विद्वान अतीत को शिक्षाप्रद नहीं मानते हैं परंतु ए. एल. राउज ने इस मत का खंडन करते हुए लिखा है, “अतीत, वर्तमान तथा भविष्य एक ही कालचक्र की विभिन्न श्रृंखलाएं हैं। जो भविष्य था, आज वर्तमान है और वर्तमान कुछ समय में अतीत हो जाएगा।” वस्तुत: इतिहास सभी विषयों में एकता स्थापित करने वाला एक सारांश युक्त विषय है तथा हीगल का कथन है कि मनुष्य इतिहास से शिक्षा प्राप्त करता है जो अन्य विषयों में प्राप्त है यथा अलाउद्दीन खिलजी ने सिकंदर का उदाहरण देख कर अपनी योजना का त्याग कर दिया।

मानव समाज तथा इतिहास :

इतिहास मानव समाज का ज्ञान प्रदान करता है। समाज के स्वरूप, क्रमिक विकास, विचारधाराओं का पारस्परिक संघर्ष, मानवीय स्वभाव तथा मानव प्रगति का विवरण इतिहास में मिलता है। फिशर के अनुसार “इतिहास के पृष्ठों पर मानव की प्रगति अंकित है।” इतिहास के अभाव में समाज की कल्पना का तात्पर्य स्मृति के अभाव में मनुष्य की जीवन जैसा है, जैसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति-कूटनीति में सफल होने के लिए विश्व के प्रख्यात राजनीतिज्ञों और कूटनीतिज्ञों नेपोलियन, फ्रेडरिक महान, बिस्मार्क, मेटरनिख, चर्चिल,सरदार पटेल आदि के इतिहास का ज्ञान आवश्यक है। इतिहास साक्षी है कि – नीरो, हिटलर की स्वेच्छाचारिता और नृशंसता स्थायी नहीं रही लेकिन बुद्ध, महावीर, जीसस क्राइस्ट की शिक्षाएं और उपदेश आज भी सजीव एवं सार्थक है। लॉर्ड एक्टेन ने इतिहास के उपादेयता के विषय में कहा है कि “यदि अतीत अवरोध तथा भार स्वरूप रहा है तो अतीत का ज्ञान उद्धार का निश्चित तथा सरल साधन है।”

व्यवसायिक उपयोगिता :

व्यवसायिक दृष्टि से भी इतिहास की उपयोगिता है। इसके ज्ञाताओं को पुस्तकालय, संग्रहालय तथा संस्थाओं में सचिव के पद पर कार्य करने का अवसर मिलता है। पत्रकारिता के लिए इतिहास का ज्ञान अत्याधिक आवश्यक हो जाता है, उदाहरणार्थ – यदि आज कोई पत्रकार फिलिस्तीन समस्या पर लिखना चाहता है तो उसे एक देश के रूप में इजरायल की स्थापना और अरब-इजराइल युद्धों के इतिहास को जानना आवश्यक है।

विदेश नीति और कूटनीति :

विश्व की कुछ मूलभूत समस्याओं को समझने के लिए इतिहास का ज्ञान अनिवार्य है। विदेश मंत्रालय के सचिवों, उच्चाधिकारियों एवं विदेश मंत्री के लिए इतिहास का ज्ञान अत्यावश्यक है। सर नेविल हेंडरसन की पुस्तक ‘Failure of the Mission’ iska उदाहरण है सर नेविल हेंडरसन, जर्मनी में 1937 – 39 तक ब्रिटिश राजदूत थे। उन्हें जर्मन इतिहास की जानकारी नहीं थी और जर्मन इतिहास को जानने के लिए उन्होंने जर्मनी की यात्रा में इंग्लिश चैनल पार करते हुए हिटलर की पुस्तक मेंन कैम्फ पढ़ी। पवित्र रोमन साम्राज्य,फ्रेडरिक महान,बिस्मार्क से संबंधित जर्मन इतिहास की जानकारी के अभाव में सर हेंडरसन सैनिकवाद, युद्धप्रियता और साम्राज्यवादी शासकों को समर्थन की जर्मन परंपराओ को समझने में असफल रहे। शासको को सेवा में भी इतिहास के ज्ञान की आवश्यकता है क्योंकि इसके माध्यम से प्रशासक समाज सामाजिक तथा मानवीय समस्याओं को समझने में सक्षम होता है विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के लिए इतिहास का ज्ञान आवश्यक है पर राष्ट्रीय सेवाएं विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के लिए इतिहास का ज्ञान आवश्यक है क्योंकि विश्व की कुछ मूलभूत समस्याओं को समझने के लिए उनके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का ज्ञान अनिवार्य है यथा सर नेविस एंडरसन जर्मनी में 1987 से 1937 से 39 तक ब्रिटिश राजदूत है उन्होंने जर्मनी के इतिहास की जानकारी हिटलर के मेन कैंप से की यह उनके महान क्योंकि जान क्योंकि वे फ्रेडरिक महान तथा बिस्मार्क संबंधी जानकारी के अभाव में जर्मन जनता की युद्ध प्रियता को समझने में असमर्थ रहे।
वस्तुतः जर्मन जनता प्रथम विश्व युद्ध के विनाशकारी परिणामों से नहीं बल्कि पराज्य और अपमानजनक और आरोपित वर्साय संधि से दुखी थी तथा हिटलर के उत्कर्ष के मूल में भी जर्मनों की शक्तिपूजक मानसिकता थी। बिस्मार्क ने रक्त और लौह (Blood and Iron) नीति अपना कर जर्मनी का एकीकरण किया था। अतः हेंडरसन की विदेश नीति असफल रही और विश्व को द्वितीय विश्व युद्ध का सामना हिटलर की विस्तारवादी नीति के कारण करना पड़ा।

मनोरंजन संबंधी उपयोगिता :

इतिहास मानवीय कार्यो एवं उपलब्धियों की कहानी के रूप में मनोविनोद का साधन है। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध के पूर्व इतिहास साहित्य की एक शाखा रहा है। ट्रेवलियन के अनुसार, “इतिहास मुख्यत: काव्यात्मक है ; यह एक महान काव्य की भांति है जिसका ना आरंभ है और ना अंत।” हेरोडोटस, लिवि, टेसिटस, ह्यूम, फ्रायड, मैकाले की ऐतिहासिक कृतियां साहित्यिक दृष्टि से काफी रोचक है।

शैक्षणिक उपयोगिता :
इतिहास सभी विषयों में एकता स्थापित करने वाला एक सारांश युक्त विषय है। हीगेल के अनुसार, ” मनुष्य इतिहास से वह शिक्षा प्राप्त करता है जो अन्य विषयों में अप्राप्त है।” यह मनुष्य को परिपक्व, बुद्धिमान तथा अनुभवी बनाने वाला अति उपयोगी विषय है।

इतिहास का दुरूपयोग :

इतिहास की उपयोगिता सर्वमान्य है लेकिन महत्वाकांक्षी व्यक्तियो द्वारा इसका दुरुपयोग किए जाने से यह विषय भी अनुपयोगी हो गया। हीगेल के अनुसार इतिहास में शिक्षा के लिए कुछ भी तत्व नहीं है। किसी आलोचक ने, “भारतीय इतिहास को टेलीफोन डायरेक्टरी कहा क्योंकि इसमें वंशावली तथा तिथियां हैं। इसी प्रकार से फ्रेडरिक महान जब इतिहास पढ़ना चाहता था तो कहता था, “Bring me my Liar” इतिहास के प्रति इस तरह का दृष्टिकोण पूर्णत: निराधार नहीं है। अनेक ऐतिहासिक घटनाएं प्रमाणित करती हैं कि इतिहास ने मनुष्य के हृदय में प्रतिशोध की भावना सदैव जागृत रखा है, जो संपूर्ण मानवता के लिए घातक सिद्ध हुआ है। 19वीं सदी में इंग्लैंड तथा फ्रांस के बीच प्रतिस्पर्धा के मूल में इतिहास रहा है। ‘लुई XIV’ तथा ‘नेपोलियन बोनापार्ट’ के समय ‘आंग्ल-फ्रांसिसी’ युद्ध ऐतिहासिक प्रतिस्पर्धा और प्रतिशोध का परिणाम था।

‘बिस्मार्क’ द्वारा 1871 में फ्रांसिसी क्षेत्र ‘अल्सास और लॉरेन’ पर अधिकार तथा वर्साय महल के ‘हॉल ऑफ मिरर्स’ में जर्मन एकीकरण की घोषणा से फ्रांसीसियो के हृदय में प्रतिशोध की भावना व्याप्त थी, जिसका प्रतिशोध प्रथम विश्वयुद्ध में हार के बाद जर्मनी पर वर्साय की कठोर संधि आरोपित कर तथा ‘हॉल आफ मिरर्स’ में जर्मन प्रतिनिधिमंडल से इस पर हस्ताक्षर करवा कर लिया गया। फ्रांस के प्रतिनिधि ‘जी. बी. क्लेमेंशो’ की वर्साय संधि की कठोर शर्तों के निर्धारण में मुख्य भूमिका थी। अंततः वर्साय संधि से जर्मनी में जागृत प्रतिशोधात्मक भावना ‘हिटलर’ के उदय और महाविनाशकारी द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बना। स्पष्ट है कि प्रतिशोध की भावना के प्रेरक तथ्यों को सजीव रखने से इतिहास मानव समाज के लिए अनुपयोगी सिद्ध हुआ।

इसी क्रम में ‘अरबों-यहूदियों’, ‘भारत-पाकिस्तान’ के मध्य स्थाई शांति में इतिहास बाधक है। इतिहास के आधार पर चीन भारत की हजारों वर्गमील भूमि पर अपना दावा पेश करता है। पेरिस शांति सम्मेलन के समय ‘इटली’ ने ‘डालमेशिया’ पर अधिकार का दावा रोमन साम्राज्य के इतिहास के आधार पर तथा 1917 में ‘बुल्गारिया’ की इतिहास की पुस्तकों में उन स्थानों पर अधिकार का दावा किया गया जिसका उल्लेख 10 वीं सदी में था या जिन पर ‘जार ईमैनुएल’ ने शासन किया था। फ्रांसीसियो ने राइन नदी के किनारे के क्षेत्रों पर दावा भी 1797 तथा 1814 में ‘कोलोन’ तथा ‘मेंत्स’ पर अधिकार का इतिहास के आधार पर किया था।
फ्रेंच विद्वान ‘अर्नेस्ट रेनन’ ने लिखा है, ” अपने इतिहास को गलत ग्रहण करने की अपेक्षा उसे भूल जाना अच्छा है।” इतिहास में दर्ज युद्ध अपराध,विस्तारवाद जैसे तथ्य जिन राष्ट्रों और राष्ट्रीयताओं से जुड़े होते है उनकी याद से उत्पन्न प्रतिशोधात्मक कार्य प्राय: विश्व शांति के लिए घातक होते हैं तथा यह भी कहा गया है कि “इतिहास स्वयं को दोहराता है त्रासदी के रूप में”, लेकिन यह भी निर्विवाद सत्य है कि “अपने इतिहास को भूलने वाले राष्ट्र का कोई भविष्य नहीं होता।” अत: एक भविष्य निधि के रूप मे इतिहास की उपयोगिता सदैव बनी रहेगी।

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