- Decline of Assyrian Empire
असीरिया की सभ्यता ताम्र – कांस्य युगीन मेसोपोटामिया में विकसित प्रमुख सभ्यता थी।21वीं शताब्दी ई. पू – 14 वीं शताब्दी ई.पू. तक एक नगर राज्य के रूप में अस्तित्व में रहा असीरियाई राज्य, इसके बाद क्षेत्रीय राजनीतिक शक्ति मे और 14 वीं – 7 वीं शताब्दी ई. पू. तक एक साम्राज्य में परिणत हो गया , जिसे इतिहासकार ताम्र – कांस्य युगीन विश्व का प्रथम साम्राज्य मानते है।
असीरिया की सभ्यता का इतिहास प्रारंभिक कांस्य युग से लौह युग के अंतिम चरण तक विस्तृत है। आधुनिक इतिहासकारों ने असीरियाई सभ्यता के इतिहास को चार कालखंडों में विभक्त किया है –
- प्रारंभिक असीरियन – (c. 2600–2025 BC),
- पूर्व असीरियन (c. 2025–1364 BC),
- मध्य असीरियन (c. 1363–912 BC),
- नव – असीरियम (911–609 BC) , और
कतिपय इतिहासकारो ने एक कालखंड उत्तरवर्ती असीरियन (609 BC–c. AD 240) की बात की है, जो राजनीतिक घटनाओं और असीरियाई भाषा में आए परिवर्तन पर आधारित कालखंड है।
असीरियाई राज्य की पहली राजधानी असुर की स्थापना 2600 ई. पूर्व. में हुई थी लेकिन 21 वीं सदी ई. पू. में उर के तृतीय राजवंश के पतन तक इस नगर के स्वतंत्र अस्तित्व के प्रमाण उपलब्ध नहीं है।इसके पश्चात उत्तरी मेसोपोटामिया में स्थित इस नगर – राज्य पर स्वतंत्र सत्ता रखने वाले शासकों की शुरुआत पुजुर असुर प्रथम से होती है। असीरियन सत्ता के प्रारंभिक कालखंड अर्थात पूर्व असीरीयन राज्य में नगर राज्य असुर पर अन्य तत्कालीन राजनीतिक शक्तियों का आधिपत्य विभिन्न अवधियों में रहा किंतु मध्य असीरियाई राज्य के शासक असुर उबालित प्रथम (1363-1328 ई. पू.) के काल से असुर बनिपाल तक असीरी शासकों ने असीरियाई राज्य को साम्राज्य में परिणत कर दिया।
पश्चिमी एशिया के इतिहास में 13 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंतिम वर्ष और 12 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के प्रारंभिक दो दशक राजनीतिक परिवर्तनों की दृष्टि से विश्व इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस कालखंड में ‘बेबीलोन‘ में व्याप्त राजनीतिक अव्यवस्था का लाभ उठाकर ‘असीरिया‘, ‘बेबीलोन‘ के आधिपत्य से ‘अशुरदान (1183 – 1140 B.C..)’ के नेतृत्व में स्वतंत्र हो गया। वस्तुत: अदद निरारी I (r. c. 1305–1274 BC), शल्मानेसेर I (r. c. 1273–1244 BC) और तुकुलती निनुर्ता I (r. c. 1243–1207 BC) के विस्तारवादी प्रयासों के फलस्वरूप असुर उबालित I के शासन में असीरिया निकट पूर्व में एक साम्राज्य में परिणत हो गया। मध्य असीरियाई साम्राज्य के ह्रास काल में भी, मध्य असीरियन सेमेटिक शासकों यथा – अशुर–दान I (r. c. 1178–1133 BC) और अशुर–रेस – इसी I (r. 1132–1115 BC) ने बेबीलोन के विरुद्ध सैन्य अभियान किया । विशेषत: तिगलथ – पिलेसर I (r. 1114–1076 BC), का शासनकाल, मध्य असीरियाई साम्राज्य के साम्राज्यवादी पुनुरूथान का कालखंड था , जिसमें तिगलथ पिलेसर I ने भूमध्य सागर तक आक्रमण किया।




मध्य और नव कालखंड में असीरिया की गणना मेसोपोटामियाई सभ्यता के दो प्रमुख शक्तिशाली राज्यों, में से एक राज्य, बेबीलोन के साथ होती है। नव असीरियाई साम्राज्य का कालखंड, असीरिया की सभ्यता का एक स्वतंत्र राज – सत्ता के रूप में अंतिम और श्रेष्ठतम काल था। नव असीरियन कालखंड में असीरियाई राज्य को इतिहासकारों ने विश्व के प्रथम साम्राज्य की संज्ञा दी है और सैन्य क्षमता की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ राज्य कहा है। अपने चरम विस्तार के समय असीरियाई साम्राज्य समस्त मेसोपोटामिया, लेवांत (पूर्वी भूमध्य सागर क्षेत्र) , मिस्र, अनातोलिया (आधुनिक तुर्की का क्षेत्र) , अरब और आधुनिक ईरान एवं आर्मीनिया तक विस्तृत था।
Nineveh Map
वस्तुत: 12 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आरंभ से 7 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के अंतिम पद में ‘निनेवेह‘ के पतन तक निकट पूर्व का इतिहास मुख्यतः ‘असीरियन साम्राज्य‘ का इतिहास है।
‘असुर उबालित‘ के शासनकाल से ‘असुरबनिपाल‘ के शासन तक सेमेटिक शासकों ने ‘असुर‘ नगर–राज्य का विस्तार कर उसे विशाल साम्राज्य में परिणत कर दिया था। ‘असुर बनिपाल‘ के शासनकाल में असीरियाई साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था। वस्तुतः ‘मेसोपोटामिया‘ के किसी भी शासक ने इतने विशाल साम्राज्य पर शासन नहीं किया था लेकिन पराकाष्ठा के इस चरम बिंदु पर हीं विघटनकारी प्रवृतियां दृष्टिगोचर होने लगी थी।
‘असुरबनिपाल‘ के शासनकाल में लगभग 651 ई. पू. में ‘मिस्र‘ स्वतंत्र हो गया तथा उत्तर में ‘उर्र्तु‘ राज्य की शक्ति क्षीण होने से असीरियाई राज्य पर उत्तर और उत्तर पश्चिम में बर्बर जातियों यथा ‘सीथियन‘ ‘सिमीरियन‘, ‘किम्मरियन‘ का दबाव बढ़ने से उत्तर में ‘असीरिया‘ का लौह व्यापार दुष्प्रभावित हुआ, जिससे राजकोष और सेना की शक्ति कम होती जा रही थी। उत्तर पूर्व में भी ‘उवक्षत्र‘ के नेतृत्व में 630 ई. पू. में ‘मीडिया‘ में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना हो गई थी तथा ‘सीथियनो‘ और ‘किम्मरियनो‘ के साथ उनका संघ बनने से ‘असीरिया‘ को अश्व और धातु मिलने में कठिनाई हो रही थी। ‘मीडियनो‘ के प्रभाव में वृद्धि से ‘असीरिया‘ भारत से मसालों और कीमती पत्थरों के आयात में असमर्थ हो गया था। ‘असुरबनिपाल‘ के काल में बेबीलोन में ‘कैल्डियनो‘ की शक्ति भी बढ़ गई थी तथा दक्षिण में ‘एलम‘ की शक्ति का ‘असुरबनिपाल‘ द्वारा अंत कर दिए जाने से दक्षिण की आक्रामक जातियों के लिए ‘असीरिया‘ पर आक्रमण करने में कोई बाधा नहीं रह गई थी। यूनानी स्रोतों के अनुसार ‘असुरबनिपाल‘ की शासनावधि में ही राजधानी निनवेह पर बाह्य जातियों के आक्रमण 634 – 630 ई. के मध्य हुए थे।
Fall of Nineveh Painting
असीरिया का विघटन
625 ई.पू. में ‘असुरबनिपाल की मृत्यु होने के साथ ही साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया तीव्र हो गई। ‘असुरबनिपाल‘ की मृत्यु के अगले वर्ष ‘बेबीलोन‘ में विद्रोह हो गया और कैल्डियन गवर्नर ‘नेबोपोल्ससर‘ ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। ‘फिलिस्तीन‘ में ‘यहूदी–नबियों‘ ने भी विद्रोही भावनाओं को अपनी भविष्यवाणियों के द्वारा बढ़ावा दिया, यथा ‘यरुशलम‘ में ‘जोसिया‘ द्वारा संचालित धार्मिक आंदोलन से विदेशी दासता के विरुद्ध जनमत बनने लगा। ‘जेफानिया‘ द्वारा की गई भविष्यवाणी “असीरिया का विनाश हो जाएगा और ‘निनेवेह‘ निर्जन हो जाएगा” ने भी आम जनता को आत्मबल प्रदान किया। ‘असुरबनिपाल‘ के निर्बल उत्तराधिकारियो में साम्राज्य के विघटन को रोकने की योग्यता नहीं थी।
615 ईसा पूर्व में ‘नेबोपोल्ससर‘ और ‘उवक्षत्र‘ ने ‘असीरिया‘ के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बना कर उस पर आक्रमण कर दिया। 612 ईसा पूर्व में निनेवेह का पतन हो गया तथा ‘मीडिया‘ और ‘बेबीलोन‘ के शासकों क्रमश: ‘उवक्षत्र‘ और ‘नेबोपोल्स्सर‘ ने असीरियाई साम्राज्य को आपस में बांट लिया। असीरिया के पश्चिमी प्रदेश, ‘कार्शेमिश‘ और ‘हर्रान‘ इत्यादि नगर तथा उत्तर में ‘असुर‘ तक का प्रदेश :बेबीलोन: को मिला तथा शेष असीरिया और उत्तरी प्रांत ‘मीडिया‘ को प्राप्त हुआ।
असीरियाई साम्राज्य का पतन : कारण
उत्तराधिकार का प्रश्न और राजकीय कलह
‘असुर बनिपाल‘ की मृत्यु के बाद उसके द्वारा चयनित उत्तराधिकारी ‘असुर–इतिल– इलानी‘ सत्ता प्राप्त नहीं कर सका तथा राजपरिवार में व्याप्त कलह और गृहयुद्ध राज्य की शक्ति पर कुठाराघात सिद्ध हुआ। दीर्घावधि तक कायम इस संघर्ष के दुष्परिणामों के तहत दक्षिण बेबीलोन असीरियाई साम्राज्य से अलग हो गया तथा वहां ‘कैल्डियनो‘ की स्वतंत्र सत्ता स्थापित हो गई। इसी समय ‘फिलिस्तीन‘ भी ‘असीरिया‘ से अलग हो गया और ‘फिनिशिया‘ में भी विद्रोही भावना प्रबल हो गई। ‘असुर–इतिल–इलानी‘ के अल्प शासनकाल में ही काफी प्रांत स्वतंत्र हो गए थे तथा ‘निनेवेह‘ के अधीन केवल पश्चिमी और उत्तरी प्रांत ही थे।
Tiglath-Pileser III
असंगठित और कठोर दमनात्मक प्रांतीय शासन‘
असीरिया के साम्राज्यवादी शासकों ने विजित भू–भागो को प्रांतों के रूप में संगठित करने तथा उनके प्रशासन की रूपरेखा तैयार करने के प्रति उदासीन रवैया अपनाया तथा वे विजित प्रदेशों की लूट–पाट और आर्थिक एवं सैनिक लाभ प्राप्त करने तक सीमित रहे। फलत: असीरियाई सेना के जाते हैं इन क्षेत्रों में विद्रोह हो जाता था और उसके दमन में असीरियाई शासकों को पुनः धन–जन की क्षति होती थी। यद्यपि ‘सारगोन‘ शासकों यथा ‘तिगलथपिलेसर तृतीय‘ के समय से विजित क्षेत्रों को प्रांतों के रूप में संगठित करने की नीति अपनाई गई तथापि विजित प्रांतों के प्रति शासकों की क्रूर दमनकारी नीति से विद्रोही प्रवृतियां प्रबल रहीं। ‘असीरिया‘ के शासक विजित क्षेत्रों के नागरिकों का सामूहिक नरसंहार करने के साथ ही नागरिकों को जबरन दूरस्थ प्रदेशों में निर्वासित कर देते थे ताकि उनमें एकता की भावना विकसित नहीं हो और न हीं वे संगठित हो सके। ‘सारगोन II’ ने ‘यहूदियों‘ को ‘मीडिया‘ में तथा ‘असुर बनिपाल‘ ने ‘एलमियों‘ को ‘थीब्स‘ में और ‘मिस्रियों‘ को ‘एलम‘ में स्थानांतरित कर दिया था। अपनी मातृभूमि से निर्वासित इन नागरिकों का सामंजस्य, उन स्थानों के मूल निवासियों से नहीं हो पाता था क्योंकि अपनी संपत्ति से विहीन, जीविका के संसाधनों से वंचित, ये नए नागरिक उन क्षेत्रों के संसाधनों पर अतिरिक्त भार के सदृश्य होते थे, फलस्वरूप निर्वासित और मूल निवासियों के मध्य विद्वेष से संघर्ष आरंभ हो जाता था।
Ashur & Marduk
असीरियाई शासन का दोषपूर्ण आधार
असीरिया की शासन व्यवस्था में प्रारंभ से ही दो प्रमुख दल थे ‘सैनिक‘ और ‘धार्मिक‘। राजनितिक सर्वोच्चता और प्रधानता के लिए इन दोनों दलों में प्रतिद्वंदिता थी तथा सत्ता के आधार–स्तंभ होने के कारण ‘असीरिया‘ के प्रत्येक शासक के लिए इन दोनों दलों में संतुलन बनाए रखना और इनका सहयोग प्राप्त करना आवश्यक था, जो अत्यंत दुष्कर कार्य था। ‘तिगलथपिलेसर III’ ने सैनिक दल की सहायता से साम्राज्य का निर्माण किया लेकिन ‘सारगोन II’ के समय धार्मिक दल का प्रभाव बढ़ गया था।
‘असीरिया‘ में धार्मिक दल, दो उप–दलों में विभक्त था। एक दल के अनुयायी, ‘असुर‘ की उपासना करते थे तथा दूसरा दल, ‘मर्दूक‘ का उपासक था। ‘असुर‘ विशेषत: ‘असीरिया‘ की संस्कृति का देवता था। जबकि ‘मर्दुक‘ ‘बेबीलोन‘ का प्रधान देवता था लेकिन ‘असीरियन‘ भी ‘मर्दुक‘ में श्रद्धा रखते थे। अतयव असीरियन सम्राट ‘बेबीलोन‘ को अधिकृत करने के बावजूद ‘मर्दुक‘ के सम्मान और उसके पुजारियों के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करते थे, लेकिन ‘सारगोन II’ के पुत्र और उत्तराधिकारी शासक ‘सेनाकेरिब‘ ने ‘बेबीलोन‘ का विध्वंस करने के बाद ‘मर्दुक‘ को ‘असुर‘ का अनुचर घोषित कर ‘मर्दुक‘ के उपासको को अप्रसन्न कर दिया। फलत: वे शासन से असहयोग करने के साथ हीं आपत्ति काल में तटस्थ रहने लगे। राज्य के प्रभावशाली दलों के मध्य पारस्परिक धार्मिक विद्वेष ने साम्राज्य की नींव खोखली करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विस्तारवादी नीति का अवलंबन
इतिहासकार ‘हॉल‘ की मान्यतानुसार “असीरिया के राजाओं और नागरिकों की शक्ति और साहस ही ‘असीरिया‘ के पतन का कारण थी।” ‘असुर उबालित‘ के काल से ‘असुरबनिपाल‘ के शासन तक अनवरत युद्धों की लंबी श्रंखला असीरियाई इतिहास का अंग है। वस्तुतः ‘तिगलथपिलेसर प्रथम‘ के शासनकाल से युद्ध की संख्या बढ़ने लगी थी तथा ‘तिगलथपिलेसर III’ और सारगोनी शासकों ने अधिकाधिक योजनाबद्ध अभियान किए।
सिद्धांतत: ‘असीरिया‘ में अनिवार्य सैन्य सेवा की व्यवस्था प्रत्येक नागरिक के लिए थी तथा असीरियनो की सैन्य निपुणता इस तथ्य से स्पष्ट होती है, कि ‘सारगोनी युग (722 626 ई.पू.)’ के पूर्व हीं असीरियन सेना ‘रथ‘ , ‘अश्वारोही‘ और ‘पदाति‘ इत्यादि अंगों में विभक्त तथा घेरा डालने की कला में निपुण थी। अनवरत युद्धों के अनेक दुष्परिणाम भी असीरियनो को भुगतने पड़े, यथा जन–धन की क्षति के साथ ही इससे आर्थिक और सांस्कृतिक विकास भी अवरुद्ध हो गया। विस्तारवाद से ‘असीरिया‘ के शत्रुओं की संख्या में वृद्धि हुई और ‘असीरिया‘ को चतुर्दिक बाह्य आक्रमणों का सामना करना पड़ा जो अंततः साम्राज्य के पतन का कारण सिद्ध हुआ।
सैन्य–व्यवस्था की शक्तिहीनता
असीरियाई साम्राज्य के पतन का एक प्रमुख कारण सेना के स्वरूप में परिवर्तन और सैनिकों की संख्या में कमी था। अनवरत युद्धों में बड़ी संख्या में मृत होने वाले सैनिकों के कारण सारगोनी शासक ‘सेनाकेरिब‘ के काल से भाड़े पर अन्य जातियों के सैनिकों की भी सेना में भर्ती की जाने से सैनिकों की विश्वसनीयता या वफादारी संदिग्ध हो गई थी।
वस्तुतः ‘एलम‘ से युद्ध के बाद सामरिक बल की दृष्टि से ‘असीरिया‘ की शक्ति क्षीण हो गई थी। जिसके कारण ‘असुर बनिपाल‘, ने ‘मिस्र‘ के स्वतंत्र होने (651 ई. पू.) पर भी पुनः आक्रमण कर मिस्र पर अपनी संप्रभुता स्थापित करने की चेष्टा नहीं की।
असीरियाई शासन–तंत्र में राष्ट्र का अस्तित्व सैन्य बल पर निर्भर था। अतएव सैन्य आधार की कमजोरी असीरियाई साम्राज्य के पतन में प्रेरक सिद्ध हुई।
आर्थिक व्यवस्था के दोष
‘असीरिया‘ के साम्राज्य के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण उसका दोषपूर्ण आर्थिक संगठन भी था। असीरिया की अर्थव्यवस्था का मेरुदंड व्यापार नहीं, बल्कि कृषि कर्म था। असीरियन शासकों के अनवरत युद्धों से यह मेरुदंड टूट गया क्योंकि युद्धग्रस्त क्षेत्रों में कृषि की प्रगति असंभव थी। साथ हीं सारगोनी शासकों के काल में युद्ध के जीवन का अंग बन जाने से सैनिकों की मृत्यु–दर भी बढ़ गई। चुकि: असीरियाई सेना में अधिकांश सैनिक कृषक वर्ग के थे। अतः युद्धों की संख्या में वृद्धि के अनुपात में कृषकों की संख्या घटती गई।
इन परिस्थितियों में असीरियाई राज्य की अर्थव्यवस्था, लगभग पूर्णत: लूटपाट पर निर्भर हो गया था। यह व्यवस्था ‘असीरिया‘ की सेनाओं द्वारा अनवरत युद्ध लड़ने और विजय प्राप्त करने पर ही कायम रह सकती थी तथा सेनाओं के परास्त होने पर आर्थिक व्यवस्था धराशायी हो सकती थी। ‘असुर बनिपाल‘ के शासन काल से ही आरंभ, पराजय की अनवरतता और अर्थव्यवस्था पर उसके दुष्प्रभाव से यह संभावना सत्य सिद्ध हुई।
Tongue removal and live flaying of Elamite chiefs
‘असीरिया‘ के शासकों की क्रूरता
असीरियाई शासक अपनी क्रूरता और विजित प्रदेशों के विध्वंस और वहां के नागरिकों पर पाशविक अत्याचार के लिए प्रसिद्ध है। लगभग सभी असीरियाई सम्राट, प्रशासनिक अधिकारी और सैनिक कठोर दमन के पक्षधर थे। असीरियन जाति का नाम जिन अत्याचारों के साथ संयुक्त है, उनका आरंभ ‘असुरनसिरपाल II’ के शासन में हुआ। संभवतः वह विश्व की सर्वाधिक क्रूर जाति का क्रूरतम शासक था।
‘असुरनसिरपाल II’ ने अपने एक लेख में एक नगर को जीतने का विवरण इस प्रकार दिया है – “उनके 3000 सैनिकों को मैंने मौत के घाट उतार दिया – – – बहुत से युद्ध बंदियों को मैंने अग्नि में जला दिया – – – कुछ की मैंने अंगुलियां काट डाली और कुछ के नाक तथा कान काट डाले। बहुत कि मैंने आंखें निकाल लीं। मैंने एक ढेर जीवित शत्रुओं का और एक मृत शत्रुओं के सिरों का लगवाया। बहुतों के सिरों को नगर में काष्ट स्तंभों पर लटकवा दिया। उनके युवकों एवं युवतियों को मैंने जिंदा जलवा दिया।“
सारगोन वंशी शासकों ‘एसरहद्दोन‘, ‘सेनाकेरिब‘ और ‘असुर बनिपाल‘ ने विजित राज्यों पर अकल्पनीय पाशविक अत्याचार किए, जिससे उन क्षेत्रों के निवासी असीरियन सत्ता से घृणा करते थे और उनके शासन को उखाड़ फेंकने के लिए अवसर की तलाश में सदैव रहते थे। इस अमानुषिक नीति के कारण विजित प्रदेशों की जनता ही नहीं असीरिया के नागरिक भी त्रस्त थे। अंततः असीरियनो को इस निर्ममता का दुखद परिणाम पराजित होने पर झेलना पड़ा तथा प्रतिशोध की ज्वाला ने असीरियन साम्राज्य को नष्ट कर दिया।
असीरियन समाज में निराशावाद
सर्वमान्य तथ्य है कि – “जब कोई सभ्यता पुरानी हो जाती है, तब प्राय: उसके मूल्यों के प्रति अविश्वास, संदेह और उदासीनता की प्रवृतियां जनमानस पर हावी होकर सभ्यता के आधारों को नष्ट करने लगती हैं।”
इस मनोवृति का सर्वोत्तम उदाहरण “निराशावादी स्वामी और दास का संवाद” नामक कृति है। इसके अनुसार, जिसे श्रेष्ठ एवं उत्तम जीवन कहा जाता है, उसका अस्तित्व संदेहास्पद है। कोई भी कार्य अपने आप में शुभ अथवा अशुभ नहीं है तथा जीवन के सभी बहुचर्चित मूल्य व्यर्थ है।
यह संवाद इस प्रकार है –
स्वामी कहता है:
‘दास मुझसे सहमत हो ? हां मेरे स्वामी हां ।
मैं अपनी प्रजा को दान दूंगा । ऐसा ही करो स्वामी ऐसा ही करो ;
क्योंकि जो व्यक्ति अपनी प्रजा को दान देता है ,
उसका दान स्वयं मर्दुक के हाथ में आता है।
नहीं दास मैं प्रजा को दान नहीं दूंगा।
मत दो मेरे स्वामी मत दो ;
आप प्राचीन नगरों के भग्नावशेषों पर खड़े हो और घूमें, (और) नई तथा पुरानी मानव अस्थियां देखें,
कौन सुकर्मी है और कौन कुकर्मी ?’
अर्थात चाहे मनुष्य पाप करें अथवा पुण्य कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि ना कोई कुकर्मियों को स्मरण करता है या जानता है और न ही सुकर्मियों को इसलिए अच्छे कर्म करने का कोई लाभ नहीं है। असीरियन युग में इस शंका या निराशावाद के जन्म का कारण संभवतः अनवरत युद्धों में होने वाली रक्त रंजित हिंसा और शासकों की क्रूरता से जीवन का अनिश्चित और कष्टकारी पक्ष का असीरियनो की अंत: चेतना और मन मस्तिष्क पर हावी होना था।
Ashurbanipal & relief carvings found in Ashurbanipal’s palace in Nineveh.(Fall of Elam)
‘असुरबनिपाल‘ की असीरियाई साम्राज्य के पतन में भूमिका
असुरबनिपाल‘ के शासन–काल में ही साम्राज्य में अंतर्निहित दुर्बलताएं स्पष्ट होने लगी थी और साम्राज्य में पतन तथा विघटन के तत्व प्रकट होने लगे थे। ‘असुरबनिपाल‘ की पाशविक प्रवृति और निरंतर युद्धों से ‘यूथोपिया‘ से आर्मीनिया‘ तक तथा ‘सीरिया से मीडिया‘ तक की जनता आक्रांत थी। उसके निरंतर युद्धों की नीति से राज्य की सैनिक शक्ति घट गई, आर्थिक स्थिति पत्नोन्मुख हो गई तथा बाह्य शक्तियां एकजुट होकर असीरिया के विरुद्ध आक्रामक हो गई । ‘एलम‘, पूर्व की बर्बर जातियों के विरुद्ध असीरिया का सुरक्षा द्वार था, लेकिन ‘असुरबनिपाल‘ ने ‘एलम‘ को हस्तगत कर वहां ‘उम्मानिगशा‘ को शासक नियुक्त किया परंतु कालांतर में इस व्यक्ति ने असीरिया के विरुद्ध होकर ‘कैल्डियनों‘ का साथ दिया।
‘एलम‘ के विनाश के कहानी पाशविक अत्याचारों का प्रतीक है। ‘असुरबनिपाल‘ के कथनानुसार के ” 1 महीने और 25 दिनों के अंतर्गत, मैंने एलम के जिलों का विनाश कर दिया। मैंने वहां नमक तथा कंटीली झाड़ियों को फैला दिया। मैंने लूट के धन के रूप में वहां से शासकों के पुत्रों, उनकी बहनों, राजमहल के युवकों, गवर्नरो, नायकों, स्त्री–पुरुषों, घोड़ों, गधों, खच्चरों तथा अन्य जानवरों के झुंड को प्राप्त कर असीरिया भेज दिया। मैंने ‘सूसा‘, ‘मदबतू‘ और अन्य नगरों को जला कर खाक कर दिया और राख को ‘असीरिया‘ ढो लाया। एक माह के अंदर मैंने ‘एलम‘ पर अधिकार कर लिया। मैंने वहां लोगों की आवाजों को, जानवरों के भ्रमणों को और प्रसन्नता की लहर को बंद कर दिया।”


‘असुरबनिपाल‘ ने ‘एलम‘ के सेनापति को जीवित अवस्था में आग में जला दिया तथा वहां के शासक ‘तूमान‘ के भाई के शरीर के टुकड़ों को देशभर में स्मृति चिन्ह के रूप में वितरित कर ‘तूमान‘ के सिर को विजय भोज के अवसर पर टांग दिया। ‘एलम‘ के पतन से एक मध्यवर्ती राज्य की बाधा दूर हो गई, जिसके बाद बर्बर जातियों के आक्रमण ने ‘असीरिया‘ के पतन को अवश्यंभावी बना दिया। साथ ही पश्चिमोत्तर की राजनीतिक शक्तियां तथा ‘कैल्डियन‘ और ‘मीडिया‘ भी असीरिया से प्रतिशोध के लिए कृत संकल्प थे। अतएव 626 ई. पू. में ‘असुरबनिपाल‘ की मृत्यु के साथ ही अयोग्य उत्तराधिकारीयो के शासन में लगभग 15 वर्षों के भीतर असीरी साम्राज्य का पतन हो गया।
असीरियाई साम्राज्य का पतन
‘असीरियाई साम्राज्य‘ का पतन और ‘असीरियनो‘ का विनाश उनकी जातीय विशिष्टता के अनुरूप ही हुआ जिस क्रूरता से ‘असीरिया‘ के शासकों ने ‘सूसा‘, ‘बेबीलोन‘ इत्यादि नगरों का विध्वंस किया था उससे अधिक क्रूरता के साथ विजेताओं ने ‘निनेवेह‘ का विनाश किया। ‘असुरबनिपाल‘ का भव्य राजप्रसाद, गौरवशाली मंदिर, बाजार, विभिन्न स्थानों से संग्रहित सहस्रो अभिलेखों से युक्त अप्रतिम पुस्तकालय, धूल–धूसरित कर दिए गए। ‘ईस्तर‘ के मंदिर और ‘नेबू‘ का मंदिर भी नष्ट कर दिया गया तथा ‘निनेवेह‘ के नागरिकों का सामूहिक नरसंहार हुआ। ‘असुरबनिपाल‘ के उत्तराधिकारी ने जलते राज प्रसाद की लपटों में प्राण त्याग कर अपने सम्मान की रक्षा की। यहूदियों के नबी, जेफानियाह (Zephaniah) ) ‘निनेवेह‘ को खूनी नगर कहा जो झूठ एवं लूट के माल से भरा था तथा उन्होंने इसके विनाश पर प्रसन्नता व्यक्त की।
कतिपय इतिहासकारों के अनुसार ‘निनेवेह‘ के विनाश के पूर्व कुछ असीरियन सैनिकों ने ‘हर्रान‘ के दुर्ग में शरण लेकर असीरियाई राज्य को कायम रखने का प्रयास किया परंतु ‘असीरिया‘ के शत्रुओं ने 610 ई. पू. में उन पर आक्रमण कर दिया।यद्यपि ‘मिस्र‘ के शासक ‘नेको II’ की सेनाओं ने असीरियनो की सहायता की लेकिन कैल्डियाई शासक (बेबीलोन) ‘नेबूचेडरेज्जर‘ जो ‘बेबीलोन‘ का शासक था, उसने ‘मिस्र‘ और ‘असीरिया‘ की संयुक्त सेना को ‘कार्केमिश‘ में परास्त कर दिया।
इस पराजय के पश्चात शेष ‘असीरियाई‘ अपने स्व–अस्तित्व को खो कर ‘सीरियनो‘ में विलीन हो गए।


“The Twelve Prophets”, या “Book of the Twelve”, आठवीं से चौथी शताब्दी ई. पू. में लिखी गई भविष्यवाणी की पुस्तकों का संकलन है, जो यहूदियों के हिब्रू बाइबल या तनाख (Tanakh) तथा ईसाईयों के ओल्ड टेस्टामेंट (Old Testament) का अंग है ।इनमे से एक पुस्तक “Book of Jonah के अनुसार, ” नबी जोनाह निन्वेह गए और भविष्यवाणी की : “Yet forty days, and Nineveh shall be overthrown!) (Jonah 3:4).” नबी नाहूम (Nahum) की Tanakh में शामिल उनके नाम की पुस्तक ‘Book of Nahum’ में निनेवेह के पतन की भविष्यवाणी की गई है : Nineveh would never recover, for their “injury has no healing” (Nah. 3:19)
सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व में ‘निनेवेह‘ नगर विश्व में श्रेष्ठ था। विश्व में इतना पूर्ण और दुखद अंत किसी अन्य नगर का नहीं हुआ।200 वर्षों के बाद ‘निनेवेह‘ की जगह ‘एक्जानफन‘ को ‘लरिस्सा‘ नगर के खंडहर मिले, जहां प्राचीन काल में ‘मीड‘ जाति निवास करती थी। ‘निनेवेह‘ मात्र 200 वर्षों में ही विस्मृति के अंधे गर्त में विलीन हो गया।