Dr. Jyoti Sinha

Dr. Jyoti Sinha Assistant Professor Head of Department (PG) Department of History Ramlakhan Singh Yadav College, Patliputra University, Patna, Bihar

Kautilya

प्राचीन सप्तांगिक राज्य और आधुनिक प्रभुसत्तात्मक राज्य : विवेचन

‘अर्थशास्त्र: में राज्य के सातों अंगों के पारस्परिक संबंधों पर प्रकाश डाला गया है। इसके अनुसार हर पूर्ववर्ती अंग,परवर्ती अंग से अधिक महत्वपूर्ण है – यथा, अमात्य-जनपद से, जनपद-दुर्ग से,  दुर्ग-कोष से एवं कोष-दंड से अधिक महत्वपूर्ण है। ‘कौटिल्य’ के अनुसार, ‘स्वामी’ सभी अंगों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यथेष्ट गुणों से संपन्न होने पर […]

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Saptanga Theory

कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत में राज्य के विभिन्न अंग

1. स्वामी ‘सप्तांग सिद्धांत’ से संबंधित सभी स्रोत ग्रंथों में, राज्य के प्रधान के लिए ‘स्वामी’ शब्द का उल्लेख हुआ है। जिसका अर्थ है, अधिपति। ‘कौटिल्य’ द्वारा वर्णित व्यवस्था में, राज्य-प्रधान को अत्यंत उच्च स्थिति प्रदान की गई है। उसके अनुसार ‘स्वामी’ को अभिजात्य, प्रज्ञावान, शिक्षित, उत्साही, युद्ध कला में चतुर तथा अन्य उत्तम चारित्रिक

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Kautilya

कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत : परिचय

प्राचीन भारत में राजनीतिक चिंतकों ने राज्य की प्रकृति का निरूपण  ‘सप्तांग सिद्धांत’ के द्वारा किया था । वैदिक साहित्य और प्रारंभिक विधि-ग्रंथों अर्थात ‘धर्मसूत्रों’  में  ‘राज्य’ की परिभाषा नहीं मिलती है। यद्यपि कुछ प्रारंभिक ‘धर्मसूत्रों’ में राजा, अमात्य, विषय आदि कतिपय राज्य से संबद्ध अंगों का उल्लेख है,लेकिन बुद्ध के युग में ‘कौशल’ और

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‘जियाउद्दीन बरनी’ की रचनाओं में तथ्यों के प्रस्तुतिकरण की शैली

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‘बरनी’ ने ‘तारीख- ए-फिरोजशाही’ , 1357-1358 ईस्वी, में पूरी की। उनकी रचना मध्यकालीन भारतीय इतिहास लेखन के विकास को दर्शाती है। इसमें उन्होंने केवल हिंदुस्तान के मुस्लिम शासकों एवं सत्ता को अपने विवरण का केंद्र बनाया है। इस कृति के विभिन्न अध्याय अलग-अलग शासनकाल पर आधारित है और वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करते

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एक इतिहासकार के रूप में ‘जियाउद्दीन बरनी’ का मूल्यांकन

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एक इतिहासकार के रूप में ‘बरनी’ का मूल्यांकन उनकी —  इतिहास विषयक अवधारणा, रचनाओं के उद्देश्य, सूचना स्रोत और तथ्यों के प्रस्तुतीकरण की शैली के परिप्रेक्ष्य में किया जा सकता है। इतिहास विषयक अवधारणा और रचनाओं के उद्देश्य  —  बरनी ने इतिहास संबंधी अपने विचारों और उद्देश्यों का विस्तृत उल्लेख ‘तारीख ए फिरोजशाही’ की भूमिका

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जियाउद्दीन बरनी

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‘जियाउद्दीन बरनी’ की गणना मध्यकालीन विशेषकर ‘दिल्ली-सल्तनत’ के महानतम इतिहासकारों में की जाती है। एक विषय के रूप में इतिहास के प्रति ‘बरनी’ काफी आदर भाव रखते थे, उनके अनुसार — “इतिहास की नीव सत्यवादिता पर टिकी होती है, इतिहास लोगों को ईश्वरीय वचनों, कार्यों तथा शासकों के सत्कार्यों से परिचित कराता है। इतिहासकार को

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मिस्र के इतिहास के अध्ययन के स्रोत

प्राचीन विश्व की नदी घाटी सभ्यताओ  में से एक “मिस्र की सभ्यता”, नील नदी की घाटी में उदित,पल्लवित और संवर्धित हुई थी। मिस्र अफ्रीका महाद्वीप के उत्तर पश्चिम में नील नदी द्वारा सिंचित एक छोटा देश है।मिस्र मूलत: लीबियन रेगिस्तान का एक भाग है, जिसके मध्यवर्ती भाग में नील नदी द्वारा सिंचित एक उर्वर भू पट्टी

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