सोवियत संघ के विघटन के कारक

This entry is part 4 of 6 in the series सोवियत संघ का विघटन

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सोवियत संघ के विघटन का आरंभ करने वाले कारक

1. संप्रभुता की परेड (The parade of sovereignties)

सोवियत संघ के गणराज्यों के द्वारा, 1988 – 1991 के मध्य, अपनी संप्रभुता घोषित किए जाने का एक क्रम था। ये संप्रभुता वैधानिक शर्तों पर आधारित थी, जिसमें गणराज्य की आंतरिक संप्रभुता को सोवियत संघ के केंद्रीकृत वैधानिक शक्ति से सर्वोच्च घोषित किया गया था।

इन घटनाओं से सोवियत संघ और उसके गणराज्यों के मध्य वैधानिक संघर्ष ‘War of Laws’ की शुरुआत हो गई,संघ को कायम रखने के लिए जनवरी 1987 में मिखाईल गोर्बाचोव ने, ‘Demokratizatsiya’ की नीति अपनाने का नारा दिया। ‘ Demokratizatsiya’, सोवियत संघ के एकल दलीय सरकार में लोकतांत्रिक विधियों का समावेश था। इसके तहत CPSU के सदस्यों और सोवियत के चुनावों में ‘बहुदलीय नही बहुसदस्यीय’ प्रणाली को लागू करना था।  जिससे दल में आनेवाले सुधारवादी नेता इसमें संस्थागत और नीतिगत सुधार ला सकें।

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बाल्टिक राज्य

2. बाल्टिक गणराज्यों का संघ से अलगाव

सोवियत संघ के गणराज्यों में विघटनकारी प्रवृत्तियां प्रबल हो रहीं थी तथा सबसे पहले 16 नवंबर 1988 को ‘एस्टोनिया (Estonia)’ ने संघ में बने रहकर, आंतरिक संप्रभुता की घोषणा कर दी। ‘लिथुआनिया (Lithuania)’ प्रथम गणराज्य था, जिसकी सुप्रीम कौंसिल ने,  ‘Sajudis (Reform movement of Lithuania)’ के नेतृत्व मे, ‘Act of 11’ पारित कर 11 मार्च 1990 को अपने बाल्टिक पड़ोसी देशों, ‘लातविया (Latvia)’ और ‘एस्टोनिया (Estonia)’ के साथ “[ द्वितीय विश्व युद्ध काल में ‘Molotov – Ribbentrop Pact’ के द्वारा पूर्वी यूरोप को प्रभाव क्षेत्रों में बांट कर इन बाल्टिक क्षेत्रों को जून 1940 में सोवियत संघ के अधीन कर दिया गया था।]”,  जून 1940 से अपनी कानूनी और वैधानिक निरंतरता अर्थात सोवियत संघ से पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। अगले दो महीने में दक्षिणी कॉकेसस (Caucasus) गणराज्य ‘जॉर्जिया (Georgia)’ भी इनके साथ जुड़ गया।

बाल्टिक देशों के संघ से अलग होने को सितंबर 1991 को मान्य किया गया।

3. कानूनों का युद्ध (War of Laws)

सोवियत संघ के संविधान की धारा 72 अर्थात   7 अप्रैल 1990 को पारित कानून के अनुसार “यदि किसी गणराज की जनसंख्या जनमत संग्रह में दो तिहाई बहुमत के साथ सोवियत संघ से अलग होने के पक्ष में निर्णय दे तब वह गणराज्य संघ से अलग हो सकता है।”

सोवियत संघ के गणराज्यों में से अधिकांश में सोवियत युग के दौरान पहली बार अपने राष्ट्रीय विधानसभा के लिए स्वतंत्र चुनाव किया। इन नवनिर्वाचित अधिकांश विधानसभाओं में सोवियत संघ के केंद्रीय कानून के विरुद्ध विधान बनाए गए। इन घटनाओं से सोवियत संघ और उसके गणराज्यों के मध्य वैधानिक संघर्ष, जिसे  ‘War of Laws’ कहा जाता है, की शुरुआत हो गई तथा गणराज्य अपनी संप्रभुता के लिए संघ से अलगाव के पथ पर अग्रसर हो गए।

4. Russian SFSR में अलगाववाद

सोवियत संघ के सबसे बड़े गणराज्य ‘Russian SFSR’ में परिवर्तनवादियो और ‘लिगाचेव’ के नेतृत्व में अनुदारवादियों के मध्य राजनीतिक मतभेद काफी गहरे थे। Russian SFSR की ‘कॉन्ग्रेस ऑफ पीपुल्स डेप्यूटीज’, का अध्यक्ष ‘बोरिस येल्तसिन’  को चुना गया। 12 जून 1990 को कांग्रेस ने रूस की संप्रभुता,उसके क्षेत्र पर घोषित कर कुछ ऐसे कानून पारित किए जो सोवियत संघ के कानूनो का उल्लंघन करते थे ।

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मिखाईल गोर्बाचोव सरकार के तख्तापलट का प्रयास

5. मिखाईल गोर्बाचोव सरकार के तख्तापलट का प्रयास

सोवियत संघ का अस्तित्व कायम रखने के उद्देश्य से गोर्बाचोव ने समस्त 15 गणराज्य के नेताओं की बैठक बुलाई और उन्हें ऐसा ‘स्वैच्छिक संगठन – स्वशासित संघ’ बनाने का प्रस्ताव दिया, जिसमें उन्हें अधिक स्वायत्तता दी जा सके। 17 मार्च 1991 को सोवियत संघ के संरक्षण के लिए गणराज्यों में आयोजित जनमत संग्रह में 9 गणराज्यों ने सोवियत संघ में बने रहने के पक्ष में निर्णय दिया तथा शेष ने जनमत संग्रह का बहिष्कार किया। ये गणराज्य आगामी 20 अगस्त1991 को संधि पर हस्ताक्षर के लिए सहमत हो गए।

इस संधि पर हस्ताक्षर को रोकने के लिए उपराष्ट्रपति ‘गेन्नादी यानायेव’ ने सरकार के उग्र सदस्यों और ‘के.जी.बी.’, की सहायता से क्रीमिया में छुट्टी मना रहे गोर्बाचोव को बंदूक की नोक पर त्यागपत्र देने के लिए बाध्य किया तथा इंकार करने पर उसे बंधक बना लिया। मॉस्को में सेना और टैंक तैनात कर जनता को बताया गया की गोर्बाचोव अस्वस्थ हैं, और एक नई समिति ने सत्ता का कार्यभार ग्रहण कर लिया है। आरंभ में कट्टरपंथी साम्यवादी नेताओं ने दुनिया भर में सोवियत राजनयिक मिशनो से गोर्बाचोव के चित्रों को हटा दिया तथा “ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोईका” से संबंधित दस्तावेजों को नष्ट कर दिया।सरकारी इमारतों पर लेनिन और स्टालिन के चित्र लगा दिए गए। ‘बोरिस येल्तसिन’ ने तख्तापलट के नेताओं को खुली चुनौती दी, उसने सेना की तैनाती के बावजूद सड़कों पर घूमने, टैंको पर चढ़ने जैसे कार्यों द्वारा जनता को बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर कर विरोध के लिए प्रेरित कर दिया।

21 अगस्त 1991 को तख्तापलट के षड्यंत्र कर्ताओं ने लाखों की भीड़ “(जो शांतिपूर्ण ढंग से सैनिकों और टैंको के सामने खड़ी थी)” के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया तथा गोर्बाचोव वापस मास्को लौट आया।

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