अखनाटन : प्रकृति पर आधारित एकेश्वरवाद

This entry is part 4 of 4 in the series अखनाटन का एटनवाद

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‘अखनाटन’ प्राचीन मिस्र ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का सबसे विलक्षण शासक था।उसने बहुदेववाद तथा धार्मिक भ्रष्टाचार और धर्म का राजनीति पर अवांछनीय प्रभाव को समाप्त कर कर्मकांडों से मुक्त एकेश्वरवाद ‘एटन’ की उपासना को लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया।  मिस्र विद्या विशारद ‘जेम्स हेनरी ब्रेस्टेड’ और ‘आर्थर वीगल’ की मान्यता है कि — ‘अखनाटन’ विश्व इतिहास में पहला मनुष्य था, जिसने धार्मिक और सामाजिक बंधनों को तोड़कर अपने व्यक्तिगत आदर्शवाद को मूर्त रूप देने की चेष्टा की इसलिए उसे ‘इतिहास का प्रथम व्यक्ति’ कहा जाता है।

‘अखनाटन’ के धार्मिक विचार प्रकृत्या सर्वथा आधुनिक ओर पूर्णत: वैज्ञानिक थे। अखनाटन के बाद हजारों वर्ष मानव समुदाय को यह जानने में लगे की ‘सूर्य’ की क्रियाशीलता का माध्यम सूर्य नहीं उसकी किरणें हैं। वही जीवन, सौंदर्य और ऊर्जा का स्रोत है।

‘फ्लिंडर्स पेट्री: का कथन है – “यदि हमारी आधुनिक वैज्ञानिक संकल्पना की तुष्टि के लिए एक नए धर्म की स्थापना कर उसकी तुलना ‘अखनाटन’ द्वारा प्रतिपादित धार्मिक विचारों के अंतर्गत सूर्य की ऊर्जा एवं क्रिया से की जाए तो हम उसके धार्मिक विश्वास में एक भी त्रुटि नहीं तलाश सकते हैं। ‘अखनाटन’ इसे किस हद तक समझता था, हम नहीं कह सकते, लेकिन निश्चित तौर पर वह इस प्रतीकवाद को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध था, जो तत्कालीन असत्य पर आधृत, चिर अंधविश्वास से पृथक् और  ‘हेलियोपोलिस’ के प्राचीन ‘एटन’ से अलग विश्व के एकमात्र देवता के लिए विकसित एक नई पूजा पद्धति थी।’

‘एटन’ के लिए ‘अखनाटन’ की अंतिम प्रार्थना इसका अद्वितीय उदाहरण है —

“मैं तुम्हारी मधुरिमा-युक्त सांस प्रतिदिन लेता हूं ,

मैं तुम्हारे सौंदर्य का अवलोकन करता हूं ,

तुम मुझे अपनी आवाज निरंतर सुनने दो ,

चाहे शीतल बयार चल रही हो या गर्म हवा वह रही हो ,

तुम मेरे हाथ का स्पर्श कर मुझमें अपना संचार कर दो,

जीवन और मृत्यु तो तेरे ही हाथ में है ,

और तुम्हारा नाम कदापि असफल नहीं हो सकता।”

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