अखनाटन के धार्मिक नवाचार : ‘एटनवाद’ की विशिष्टताएं

This entry is part 3 of 4 in the series अखनाटन का एटनवाद

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‘अखनाटन’ द्वारा प्रवर्तित एवं स्थापित धार्मिक नवाचारों एवं सिद्धांतों की विशिष्टताएं –

1. एकेश्वरवाद

‘मिस्र’ विद्या विशारदो के मध्य यह विवादित प्रश्न है कि क्या ‘एटनवाद’ को पूर्ण ‘अद्वैतवाद’ अथवा ‘एकेश्वरवाद’ माना जाए अथवा इसे सहिष्णु एकेश्वरवाद, धार्मिक पंथों के मध्य समन्वय तथा एकाधिदेववाद की श्रेणी में रखा जाए। कुछ विद्वानों के मतानुसार ‘अखनाटन’ का धर्म मुख्यतः ‘अद्वैतवाद’ से संबंधित था जबकि कुछ अन्य विद्वान अखनाटन को ‘सहिष्णु-एकेश्वरवाद’ का प्रवर्तक मानते हैं, जिसने अन्य देवताओं के अस्तित्व को नकारा नहीं लेकिन केवल ‘एटन’ की पूजा की अनुमति दी।

‘अखनाटन’ जिस ‘एकेश्वरवाद’ का प्रथम अन्वेषक था वह कालांतर में ‘यहूदी धर्म’ में परिवर्तित हो गया, इस विचार को कई विद्वानों ने मान्यता दी है। इस विचारधारा को सर्वप्रथम ‘सिगमंड फ्रायड’ ने अपनी पुस्तक ‘Moses and Monotheism’ में जगह दी। इसमें उन्होंने ऐतिहासिक ‘Exodus’ कथा को सत्य मानकर ‘माेजेज’ को मिस्र में ‘एटन’ का पुजारी माना, जिसे अखनाटन की मृत्यु के बाद समर्थकों के साथ मिस्र से निष्कासित कर दिया गया। ‘फ्रायड’ ने तर्क दिया कि “अखनाटन ने जिस एकेश्वरवाद के प्रवर्तन का प्रयास किया था वह लगभग वही था, जिसे ‘बाइबल’ का ‘मोजेज’ प्राप्त करने में सक्षम था।”

‘जेम्स हेनरी ब्रेस्टेड’ ने ‘अखनाटन’ द्वारा प्रवर्तित धर्म में ‘अखनाटन’ और ‘एटन’ के मध्य संबंधों की तुलना ईसाई धार्मिक विश्वासों में ‘जीसस-क्राइस्ट’ और ईश्वर के मध्य संबंध से की है। ‘डोनाल्ड बी. रेडफोर्ड’ के अनुसार ” ‘अखनाटन’ को ‘जीसस’ के अग्रदूत के रूप में देखा जाना चाहिए, क्योंकि उसने ‘जीसस’ के पूर्व ही स्वयं को एकमात्र देवता का एकमात्र पुत्र कहा जो उससे उत्पन्न होता है।”  ‘आर्थर बाइगल’ ने अखनाटन को “क्राइस्ट का असफल अग्रदूत” कहा है तथा ‘टामस मैन’ ने – “अखनाटन द्वारा चयनित मार्ग को सही लेकिन उस मार्ग पर चलने वाले एक व्यक्ति या यात्री के तौर पर उपयुक्त नहीं माना है।”

2. राजत्व में दैवत्व का आरोपण

मिस्र विद्या विशारद ‘जॉन बेनस’ के अनुसार “अमर्ना का धर्म” अर्थात अखनाटन द्वारा प्रतिस्थापित धर्म – ‘एटनवाद’ ईश्वर और राजा का धर्म था, यहां तक की जिसमें प्रथम स्थान पर ‘राजा’ और फिर ‘ईश्वर’ था।”  ‘Donald B. Redford’ के अनुसार यद्यपि अखनाटन ने स्वयं को ‘सूर्य-चक्र’ ‘एटन’ का पुत्र कहा तथा देवता और सृष्टि के मध्य प्रधान मध्यस्थ की भूमिका निभाने का प्रयास किया तथापि ‘अखनाटन’ के शासनकाल से हजारों वर्ष पूर्व मिस्र के शासक देवता के साथ समान स्तर पर संबंध की उद्घोषणा के साथ ही प्रधान पुजारी भी होते थे। हालांकि ‘अखनाटन’ की धार्मिक नीति इस दृष्टि से भिन्न थी कि यह ‘स्वर्ग के पिता’ का और ‘पुत्र’ का संबंध था। ‘अखनाटन’ ने स्वयं को ‘एटन’ का पुत्र  “जो पिता के पैरों से आगे बढ़ता है (Thy Son who came forth from thy limbs)”  तथा “अनंत अनश्वर पुत्र जो सूर्य चक्र से आता है (The Eternal son that came forth from thy body) कहा।”

पिता और पुत्र के मध्य इस निकट संबंध के अंतर्गत केवल पुत्र ही पिता के हृदय की बात जानता था तथा पिता, पुत्र की प्रार्थना को सुनता था। ‘अखनाटन’ पृथ्वी पर अपने स्वर्ग के पिता की छाया था तथा वह पृथ्वी का और पिता स्वर्ग का शासक था। सर्वोच्च पुजारी, पैगंबर, राजा और दैवी प्रतिनिधि के रूप में ‘अखनाटन’ अपने नए धर्म का केंद्र था। चुकि:  एकमात्र ‘अखनाटन’ अपने स्वर्ग के पिता की इच्छा को जानता था अतः जनता केवल उसके माध्यम से देवताओं से अपनी मनोकामनाओं को प्राप्त कर सकती थी।

‘अमर्ना (Akhetaten)’ में राज दरबारियों के कई मकबरे मिले हैं। जिस पर ‘एटन’ की प्रशंसा में रचित स्त्रोत उत्कीर्ण हैं। ‘एटन’ स्तोत्र का संक्षिप्त अंश जिसे “एटन के स्तोत्र का छोटा संस्करण” कहते हैं, पांच मकबरो पर उत्कीर्ण है तथा इसका पूर्ण या विस्तृत संस्करण “The Great Hymn of Aten” ‘अखनाटन’ के उत्तरवर्ती फराओ ‘आई’ के मकबरे पर उत्कीर्ण है। ‘मिरियम लिष्टहाइम(Miriam Lichtheim)’ द्वारा “The Great Hymn of Aten” के अंतिम भाग के अनुवाद से स्पष्ट है कि इन स्त्रोतो में “राजत्व में देवत्व” निहित होने की परिकल्पना है –

“तुम मेरे हृदय में हो,

वहां और कोई नहीं है जो तुम्हें जानता हो,

केवल तुम्हारा-पुत्र ‘नेफ्रेखेप्रुरे’ एकमात्र-एक- रे,  [अखनाटन]

जिसे तुमने तुम्हारे तरीके और पराक्रम सिखाया।

पृथ्वी तुम्हारे हाथों से उसी प्रकार प्राप्त हुई है जैसा तुम्हारे हाथों ने उसे बनाया है।”

‘एटन’ की स्तुति हेतु अखनाटन द्वारा रचित एक अन्य स्तोत्र से भी राजत्व की दिव्यता आभासित होती है –

“सभी कार्य रुक जाते हैं जब तुम पश्चिम में आराम करते हो।

जब तुम उदित होते हो तुम सभी को क्रियाशील करते हो राजा के लिए।

हर पैर गतिमान रहते हैं जब तक तुम पृथ्वी पर स्थापित हो,

तुम उन्हें जागृत करते हो तुम्हारे पुत्र के लिए जो तुम्हारे शरीर से आया है,

राजा जो ‘मात’ के द्वारा रहता है दो स्थानों का राजा ‘नेफ्रेखेप्रुरे’ एकमात्र-एक-रे ,

 ‘रे’ का पुत्र जो ‘मात’ के द्वारा रहता है, राजमुकुटों का मालिक,

‘अखनाटन’ जो अपने जीवन काल में महान है;

और महान रानी, जिसे वह प्यार करता है,

दो स्थानों के की मल्लिका नेफ्र-नेफ्रू-एटन नेफ्रतीति, सदैव चिरकाल के लिए जीवित है।”

‘अखनाटन’ द्वारा ‘एटन’ की स्तुति के लिए रचित स्तोत्र “The Great Hymn of Aten” की व्याख्या कुछ इतिहासकारों ने एक साहित्यिक कृति के रूप में तथा कतिपय विद्वानों ने इसे फराओ द्वारा राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, हित साधने के लिए रचित स्तोत्र माना है। ‘मोंटेसेराट’ का तर्क है, कि “इस स्तोत्र के सभी संस्करण राजा पर केंद्रित थे, तथा इनका उद्देश्य राजा के हित के लिए राजा और देवता के संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करना था।”

3. प्रकृति के नैसर्गिक गुणों पर आधारित

‘अखनाटन: के धार्मिक विचार प्रकृति के नैसर्गिक गुणों पर आधारित थे। इसमें ‘एटन’ की उपासना सूर्योदय और सूर्यास्त के समय जब सूर्य की किरणें सर्वाधिक कृपा पूर्ण लगती हैं, की जाती थी तथा इसमें केवल हृदय से एटन का आभार मानना और उसकी स्तुति करना पर्याप्त था। अखनाटन के धार्मिक स्त्रोतों में यह भावना परिलक्षित होती है। यथा –

“पृथ्वी तुम्हारे हाथों से उसी तरह प्राप्त हुई है जैसा तुम्हारे हाथों ने उसे बनाया है।

जब तुम उदित होते हो वे जीवित हैं,

जब तुम अस्त होते हो वे मृत हो जाते हैं,

तुम स्वयं में एक जीवन काल हो, वे तुम्हारे द्वारा जीवित हैं।

सभी आंखें तुम्हारी सुंदरता पर केंद्रित होती हैं जब तक तुम अस्त नहीं होते।”

‘अखनाटन’ द्वारा रचित ‘The Great Hymn of Aten’ की कुछ पंक्तियों से भी उसके धार्मिक विचारों का प्रकृति पर आधारित होना स्पष्ट होता है, जैसे —

“कितना विविध है जिसे यद्यपि शीघ्रता से बनाया गया है

जो मानव दृष्टि में रहस्यपूर्ण है।

ओ, एकमात्र देवता तुम्हारे समान कोई अन्य नहीं है।

तूने भूतकाल में विश्व का तेरी इच्छा के अनुसार सृजन किया है।

जबकि तू अकेला है, सभी आदमी, मवेशी और जानवर,

जो कुछ भी इस पृथ्वी पर है और उसके उपर अपने पैरों से जाता है।

और जो उपर है, अपने पंखों के साथ उड़ता है।

सीरिया और नूबिया के देशों मिस्र की भूमि,

तूने सभी आदमी को उसके स्थान पर स्थापित किया है,

तूने उनकी आवश्यकताओं को उपलब्ध कराया है,

हर एक के पास उसका आहार है और उसका जीवन संगणित है।

उनकी जिह्वा बोलने में अलग है, उसी प्रकार उनका स्वभाव भी,

उनकी त्वचा अलग है, जैसे तूने अलग किया है विदेशी लोगों को।

तूने अधोलोक में नील को बनाया,

तेरा अति उच्च रूप तेरी आकांक्षा के अनुरूप है।

सभी भूमि का देवता जो उनके लिए उदित होता है

दिन का एटन जो महान वैभवपूर्ण है।”

4. उपासना पद्धति की सरलता

‘पिरामिड-युग’ में मिस्र के देवी देवताओं के मंदिरों और उनके पुजारियों में परस्पर प्रत्यक्ष संबंध नहीं था लेकिन साम्राज्य युग में सबको एक वर्ग के रूप में संगठित कर दिया गया था तथा वे प्रायः ‘श्वेत भवन (राजकोष)’ के अध्यक्ष अथवा मंत्री जैसे पदों पर नियुक्त किए जाते थे। फराओ की रानी को ‘एमन’ की दैवी महिषी माना जाता था तथा धर्माध्यक्ष की पत्नी को देवता की प्रधान उपपत्नी।

‘अखनाटन’ के एटनवाद में पुजारियों का जनता के धार्मिक क्रियाकलापों में कोई स्थान नहीं था उसका उपास्यदेव केवल मनुष्यों का नहीं, हर सजीव प्राणी का कृपालु पिता था। वह संसार का निर्माता और पालक था तथा सबसे अधिक प्रसन्न उससे होता था जो सच्चे हृदय उसकी स्तुति करता था। ‘अखनाटन’ द्वारा ‘एटन’ की महिमा में की गई स्तुति इसका प्रतीक है –

“अंडों के छिलके के भीतर जीवन बोलता है।

तुम उसे जीवन धारण के लिए वायु प्रदान करते हो, ताकि वह सांस ले सके।

तुम्हीं ऐसी व्यवस्था करते हो कि समय पूरा होने पर उसमें से जीव निकल सकें और अपने पर चल सकें।”

5. सुखद पारलौकिक जीवन

‘अखनाटन’ के धर्म का परलोकवाद भी सरल और सुखद था।उसने ‘एमन-रे’ के पुजारियों द्वारा प्रस्तुत भयंकर और कष्टपूर्ण पारलौकिक जीवन और ‘ओसिरिस (मृतात्मा का न्यायकर्ता)’ के अस्तित्व को अपने धार्मिक विचारों में जगह नहीं दिया।

‘अखनाटन’ के धर्म में मृत्यु के बाद मनुष्य की आत्मा कुछ अवधि के लिए या तो स्वर्ग में निवास करती है, अथवा उन स्थानों पर जो उसे जीवितावस्था में प्रिय होते हैं। वहां वह सूर्य के प्रकाश, पक्षियों के मधुर संगीत और फूलों के मोहक सौंदर्य से आनंद लाभ करती है। उसके परलोकवाद में नरक की कल्पना नहीं मिलती क्योंकि दयालु पिता ‘एटन’ किसी को नारकीय पीड़ाऐं नहीं दे सकता था। दुष्टात्माओं के लिए उसके धर्म में एक ही दंड था, “मृत्यु के पश्चात उनके अस्तित्व का पूर्ण विनाश।”

6. निराकारवादी धर्म

 ‘अखनाटन’ के धर्म का बाह्य रूप सरल और निराकार था। उसने ‘एटन’ की मूर्ति नहीं बनाई लेकिन जनसाधारण ‘एटन’ की महिमा को हृदयंगम कर सके इसलिए उसने ऐसे ‘सूर्य- चक्र’ को उसका प्रतीक माना जो किरणों से युक्त था तथा प्रत्येक किरण के सिरे पर मानव हाथ की आकृति बनी होती थी। इस प्रतीक से ‘एटन’ का अनुग्रह पूर्ण रूप परिलक्षित होता है।

‘अखनाटन’ ने ‘एटन’ की कल्पना भौतिक सूर्य के रूप में नहीं बल्कि उसकी जीवनदायिनी ऊष्मा और प्रकाश के रूप में की तथा उसे ऐसी शक्ति माना जो अपनी किरणों द्वारा समस्त विश्व में व्याप्त है।

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