एक इतिहासकार के रूप में ‘जियाउद्दीन बरनी’ का मूल्यांकन

This entry is part 2 of 3 in the series जियाउद्दीन बरनी

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एक इतिहासकार के रूप में ‘बरनी’ का मूल्यांकन उनकी —  इतिहास विषयक अवधारणा, रचनाओं के उद्देश्य, सूचना स्रोत और तथ्यों के प्रस्तुतीकरण की शैली के परिप्रेक्ष्य में किया जा सकता है।

इतिहास विषयक अवधारणा और रचनाओं के उद्देश्य  —  बरनी ने इतिहास संबंधी अपने विचारों और उद्देश्यों का विस्तृत उल्लेख ‘तारीख ए फिरोजशाही’ की भूमिका में किया है उनकी ऐतिहासिक दृष्टि पर ‘कुरान’ का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है क्योंकि मध्यकालीन उलेमाओं की तरह वे विज्ञान की समस्त विधाओं की उत्पत्ति का स्रोत ‘कुरान’ को मानते हैं। बरनी इतिहास को प्रेरणा स्रोत एवं जीवन यात्रा को बेहतर बनाने का साधन मानते हैं। उनके अनुसार – “इतिहास लोगों को ईश्वरीय वचनों, पैगंबर साहिब के कार्यों तथा शासकों के सत्कार्यों से परिचित कराता है। असत कार्यों के बुरे परिणामों तथा सत्कार्यो के अच्छे परिणामों को दिखाकर इतिहास लोगों के लिए एक प्रकार की चेतावनी का काम करता है।यह राजाओं और अमीरों को यह दिखाता है कि दूसरे के अनुभवों से शिक्षा लेकर किस प्रकार सही निर्णय लें,  साथ ही महान लोगों के जीवन की विपत्तियों के ज्ञान से आमजन में सहनशक्ति का विकास होता है।”

बरनी की मान्यता अनुसार इतिहास लेखन एक ऐसा उत्तम कार्य था, जिसके द्वारा मनुष्य अपने सभी पापों का प्रायश्चित कर सकता था। वे स्वयं इस पापबोध से ग्रसित थे कि उन्होंने ‘मोहम्मद तुगलक’ के अधार्मिक और क्रूर कृत्यों को देख कर भी उस समय आलोचना नहीं की। उनके अनुसार इतिहास और हदीस जुड़वां है अतः मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण ‘हदीस’ को समझने के लिए उन्होंने इतिहास के अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया।इसके अतिरिक्त कुछ भौतिक उद्देश्यों के तहत भी ‘बरनी’ ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में कई पुस्तकों की रचना की। अपनी रचनाओं विशेष ‘तारीख-ए- फिरोजशाही’ में  ‘फिरोज’ की प्रशंसा से ‘बरनी’ को शाही कृपा प्राप्त होने तथा कष्टों का अंत होने की आशा थी।

 बरनी के सूचना स्रोत – ‘फतवा- ए- जहांदारी’ में यद्यपि ‘बरनी’ ने लिखित स्रोतों को उद्धृत किया है लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इन स्रोतों से सही उद्धरण नहीं लिया है। ‘बरनी’ की मान्यता अनुसार किसी भी घटना का वर्णन करते समय घटना के प्रत्यक्षदर्शियों, घटना में शामिल पक्षों, घटना का विवरण देने वालों के आचरण- पृष्ठभूमि तथा घटना की परिस्थितियों का भी अध्ययन करना चाहिए। ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ में उन्होंने पारिवारिक सदस्यों, परिचितों या प्रत्यक्षदर्शियों से मिली सूचनाओं का उपयोग किया है,लेकिन उन लोगों के नाम पते का उल्लेख प्रायः नहीं किया है। ‘बरनी’ के कथनानुसार उन्होंने ईमानदार तथा ईश्वर से डरने वाले मुसलमान के शब्दों को ही मान्यता दी है। अर्थात जब सूचना उनके दृष्टिकोण के अनुरूप रही तब उन्होंने उसकी विश्वसनीयता में संदेह नहीं किया। वस्तुतः बरनी की ऐतिहासिक दृष्टि  पूर्ण रूप से व्यक्तिपरक थी। उन्होंने स्वयं को इतिवृताकार के रूप में नहीं बल्कि इतिहास के विश्लेषक के रूप में प्रस्तुत किया जिसकी रुचि सूचना से अधिक शिक्षा देने में थी।

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