- बाणभट्ट : इतिहास-पुराण के प्रतिनिधि
- हर्षचरित की विवेचना
- हर्षचरित : एक ऐतिहासिक कृति
‘बाणभट्ट’ ने अन्य दरबारी लेखकों की बातें ‘हर्षचरित’ में ‘हर्ष’ की उपलब्धियों का अतिश्योक्तिपूर्ण विवरण नहीं दिया है। ‘हर्षचरित’ और ‘कादंबरी’ में उल्लेखित तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक शैक्षणिक और अन्य संदर्भों से ‘बाणभट्ट’ की एक इतिहासकार की छवि और उसकी कृतियों की ऐतिहासिकता पुष्ट होती है। इनमें ‘बाण’ ने समाज के विभिन्न वर्गों की स्थिति, प्रव्रज्या प्राप्त श्रमणों और ब्राह्मणों के दैनिक जीवन, शिक्षा-व्यवस्था, शैक्षणिक विषयों, प्रचलित शिल्पों का विवरण दिया है। ‘हर्षचरित’ में ‘बाण’ ने निम्नलिखित संप्रदायों जैसे ‘अर्हत (जैन)’, ‘मस्करी (परिव्राजक)’, ‘श्वेतपट (श्वेतवस्त्रधारी भिक्षु)’, ‘भागवतवर्णी (ब्रह्मचारी)’, ‘केशलुंचक (बाल उखाड़ फेंकने वाले)’, ‘कापिल (सांख्य मत)’, ‘लोकयातिक (चार्वाक दर्शन)’, ‘कणाद’, ‘औपनिषादिक’, ‘एश्वरकार्णिक (न्याय दर्शन)’, ‘करंधम’, ‘शैव’, ‘पांचरात्रिक’ आदि का उल्लेख किया है। ‘बाण’ ने जैन आचार्य ‘दिवाकरमित्र’ के गुरुकुल का भी उल्लेख किया है, जहां ‘हर्ष’ को ‘राज्यश्री’ मिली थी। अपनी रचना में ‘बाण’ ने स्त्रियों की हीनावस्था के पर्याय ‘सती-प्रथा’ एवं ‘बाल-विवाह’ जैसी, सामाजिक कुरीतियों का उल्लेख किया है।
‘कादंबरी’ में राजपद का उल्लेख कर, ‘बाण’ ने राजा को ‘न्याय का अवतार’ कहा है। ‘हर्षचरित’ में त्योहारों पर कैदियों को छोड़े जाने का तथा ‘वामचेटि’ नामक ‘रात्रि-प्रहरी’ का उल्लेख मिलता है, जो रात में पहरा देने वाली स्त्री होती थी। ‘बाण’ ने ‘हर्ष’ की प्रस्थान करती सेना और सैन्य अधिकारियों यथा – सेनापति ‘सिंहनाद’, मुख्य अध्यक्ष ‘कुंतल’ और हस्ति-सेना के प्रमुख ‘स्कंदगुप्त’ का उल्लेख किया है। ‘बाणभट्ट’ ने अन्य दरबारी लेखकों की भांति ‘हर्षचरित’ में ‘हर्ष’ की उपलब्धियों का अतिशयोक्तिपूर्ण विवरण नहीं दिया है। ‘बाण’ द्वारा ‘हर्ष’ के सैन्य-अभियान से पीड़ित ग्रामीणों के मुख से कहां है राजा? क्या अधिकार है उसे राजा होने का ! कैसा राजा ! आदि शब्दों को उच्चारित करवा कर इतिहास लेखन में आधुनिक मापदंडों के अनुरूप आम जनता की आवाज को स्थान दिया है। ‘बाण’ ने राजकीय सेवा को यह मानकर राज्य अधिकारियों के मानसिक परेशानियों का विस्तृत वर्णन किया है।
अंततः कहा जा सकता है कि, ‘बाणभट्ट’ पेशेवर इतिहासकार या विशुद्ध साहित्यकार नहीं था यद्यपि उसने कल्पना के आधार पर तथ्यों में हेरफेर कर एक निश्चित प्रयोजन के तहत ‘हर्षचरित’ की रचना की तथापि उसकी प्रवृत्ति इतिहासोन्मुख थी।
कुछ विद्वान ‘हर्षचरित’ को अधूरी रचना मांगते हैं लेकिन ‘वी. एस. पाठक’ का तर्क है कि,यह पूर्ण रचना है क्योंकि इसमें पांच सुपरिभाषित विषयगत या कथानक चरण हैं – आरंभ, प्रयास, सफलता की आशा, निश्चितता और निष्कर्ष।
चूकि: ‘बाण’ शासक वर्ग से संबद्ध था और इस वर्ग द्वारा लिखित इतिहास मुख्यधारा के इतिहास से भिन्न होता है अतः उससे वस्तुनिष्ठता की अपेक्षा नहीं की जा सकती। ‘बाण’ ने अपना हर लेखन ‘हर्ष’ के सिंहासनरोहण तक सीमित रखा और उसकी उपलब्धियों के वर्णन लोभ का संवरण किया। हर ग्रंथ की रचना का निश्चित प्रयोजन होता है और इस मापदंड पर हीं ‘बाणभट्ट’ की रचना को परखना चाहिए। वस्तुत: ‘बाणभट्ट’ का इतिहास लेखन संबंधी अवधारणा आधुनिक पद्धति की जगह तत्कालीन भारतीय ‘इतिहास-पुराण’ परंपरा तथा ‘राजतरंगिणी’ के बीच सेतु प्रतीत होती है, अत्यव ‘बाणभट्ट’ की गणना प्राचीन भारतीय इतिहासकारों में की जाती है।