- हम्मूराबी: एक परिचय
- ‘हम्मूराबी’ के सैन्य अभियान
- ‘हम्मूराबी’ का न्याय-प्रशासन
- हम्मूराबी की ‘विधि-संहिता’
‘हम्मूराबी’ द्वारा बेबिलोनियन साम्राज्य की स्थापना हेतु किए गए सैन्य अभियानों को दो कालखंडों में विभाजित किया जा सकता है।
हम्मूराबी का प्रथम सैन्य अभियान
‘हम्मूराबी’ ने अपनी राज्यारोहण के 6 वर्षों के बाद, प्रथम सैन्य अभियान प्रारंभ किया। अभियान के पूर्व के वर्षों में उसने सैन्य संगठन किया और देश में आंतरिक सुधारों तथा मंदिरों का निर्माण कर जनता का समर्थन और सहयोग प्राप्त करने का प्रयास किया। 7 वें से 11 वें वर्ष तक ‘हम्मूराबी’ ने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से सर्वप्रथम ‘एरेक’ और ‘ईसिन’ को जीतने की चेष्टा की। जिसके परिणामस्वरूप उसे ‘एलम’ और ‘लारसा’ से भी संघर्ष करना पड़ा। इस संघर्ष में ‘हम्मूराबी’ असफल रहा तथा ‘एलम’ के शासक ‘रिमसिन’ ने – ‘ईसिन’, ‘निप्पुर’ और ‘एरेक’ पर अधिकार कर लिया, फलत: संपूर्ण मध्यवर्ती और दक्षिणी बेबीलोनिया पर ‘एलम’ का आधिपत्य हो जाने से तत्कालीन बेबीलोनिया में दो शक्तियां विद्यमान थीं –
- दक्षिण में ‘रिमसिन’ के नेतृत्व में ‘एलम’ का राज्य, और
- उत्तर में ‘हम्मूराबी’ द्वारा शासित ‘बेबीलोन’।
इतिहासकार ‘रुक्स’ के अनुसार ‘हम्मूराबी’ अपने शासनकाल के छठे, सातवें, नवें और दसवें वर्ष में विभिन्न भू भागों को जीतने में सफल रहा था – छठे वर्ष में उसने ‘ईसिन’ पर अधिकार कर दक्षिण में ‘उरूक’ को जीता, सातवें और नवें वर्ष में ‘दजला’ और ‘जगरोस’ के मध्य स्थित ‘इमतबल’ पर आक्रमण कर ‘मालगम (Malgum)’ पर, और दसवें वर्ष में ‘सिप्पर’ के ऊपरी भाग ‘रेपिकम (Repiqum)’ पर उसने आधिपत्य कर लिया था।
सैन्य निष्क्रियता अथवा पराधीनता का बीस वर्षीय कालखंड
इतिहासकारों में इस संदर्भ में मतैक्य है कि, ‘हम्मूराबी’ ने ‘एलम’ से परास्त होने के पश्चात लगभग 20 वर्षों तक राज्य-विस्तार के लिए सैन्य अभियान नहीं किया तथा संभवतः इस अवधि में उसे ‘एलम’ की सत्ता और अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य होना पड़ा। इस तथ्य से संबंधित एक ‘यहूदी’ अनुश्रुति में, ‘एलम’ के शासक ‘केडोरलाओसर’ के नेतृत्व मे ‘शिन्नार (बेबिलोनिया)’ के शासक ‘अम्रफेल (हम्मूराबी?)’, ‘एलासर (लारसा ?)’ के शासक ‘ऐंरिओक’ और ‘गोयिय्यम (हित्ती)’ के शासक ‘टीडाल’ द्वारा एक संघ बना कर ‘यहूदी’ नेता ‘अब्राहम’ के साथ सैनिक संबंध स्थापित करने का उल्लेख आया है। इस संघ का उद्देश्य विद्रोही अरब जातियों को परास्त करना था।
कतिपय इतिहासकारों ने ‘अम्रफेल’ की समानता ‘हम्मूराबी’ से की है, अतएव संभावित है कि ‘हम्मूराबी’ ने कुछ अवधि तक ‘एलम’ के शासक की सत्ता स्वीकृत कर ली थी। चुकि: उसके शासनकाल के 11 वें से 30 वें वर्ष तक की सैन्य गतिविधि पर अभिलेखों में कोई उल्लेख नहीं है, अतः इस तथ्य को सर्वथा कल्पनाप्रसूत नहीं कहा जा सकता है।
इन विजय अभियानों से ‘दक्षिणी’ और ‘मध्य’ ‘मेसोपोटामिया’ पर ‘हम्मूराबी’ का अधिकार हो गया था। तत्पश्चात ‘मारी’ और ‘मालगम’ को पराजित कर ‘मारी’ और ‘सुबर्त्तू’ के नगरों को ‘बेबीलोन’ की सत्ता मानने के लिए बाध्य कर दिया। ‘हम्मूराबी’ ने अपने शासन के 36 वें और 38 वें वर्ष के अंतिम अभियानों में ‘सुबर्त्तू’ और ‘असीरिया’ का दमन कर उन पर आधिपत्य कर लिया। यद्यपि असीरियन वंश कायम रहा परंतु उत्तरी इराक में इस वंश का शासन समाप्त हो गया। दक्षिण में संपूर्ण ‘सुमेर’ पर अधिकार हो जाने से हम्मूराबी ने ‘सीरिया’ और ‘फिलिस्तीन’ को भी जीत लिया।
‘हम्मूराबी’ के साम्राज्य की विशालता का ज्ञान उसकी ‘विधि-संहिता’ की प्रस्तावना में दी गई उन नगरों की सूची से होता है जिन्हें उसने धार्मिक केंद्र होने के कारण सहायता दी थी। सर्वप्रथम इसमें बेबीलोन के प्रमुख धार्मिक केंद्र ‘निप्पुर’ का उल्लेख है और उसके बाद प्राचीनतम केंद्र ‘एरिडू’ का तत्पश्चात साम्राज्य की राजधानी और ‘मर्दुक’ के निवास स्थान के रूप में ‘बेबीलोन’ का और उसके पश्चात – ‘सिप्पर’, ‘लारसा’, ‘एरेक’, ‘ईसिन’, ‘किश’, ‘कूथा’, ‘लगश’, ‘अक्काद’, ‘अशुर’ तथा ‘निनवेह’ इत्यादि का उल्लेख हुआ है।
दक्षिण-पूर्वी ‘तोरस’ पहाड़ के तलहटी क्षेत्र से ‘हम्मूराबी’ कालीन बेबिलोनियाई संस्कृति से संबंधित एक ‘कब्र का पत्थर (Tombstone)’ दक्षिण-पूर्वी ‘अनातोलिया’ में स्थित शहर ‘दियारबाकिर (Diyarbakir)’ से प्राप्त हुआ है, जो इस क्षेत्र तक ‘हम्मूराबी’ के साम्राज्य विस्तार का प्रमाण है।
स्पष्टत: ‘हम्मूराबी’ एक महान ‘विजेता और साम्राज्य निर्माता’ था। उसने ‘शक्तिशाली राजा’, ‘बेबीलोन का राजा’, ‘संपूर्ण अमररू देश का राजा’, ‘सुमेर और अक्काद का राजा’ तथा ‘विश्व की चारों दिशाओं का स्वामी’ आदि विरुद धारण किए। विजय की दृष्टि से ‘अक्कादी-सेमाइटों’ के इतिहास में जो स्थान ‘सारगन प्रथम’ को प्राप्त है वही स्थान ‘पश्चिमी-सेमाइटो’ के इतिहास में ‘हम्मूराबी’ को प्राप्त है।