‘हम्मूराबी’ का न्याय-प्रशासन

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‘हम्मूराबी’ एक श्रेष्ठ  प्रशासक था। उसने ‘मेसोपोटामिया’ की सभ्यता में प्रचलित स्वतंत्र ‘नगर-राज्यों’ की परंपरा को समाप्त कर, सम्राट और केंद्रीय सत्ता के अधीन केंद्रीकृत बेबीलोनियन साम्राज्य की स्थापना की। बेबिलोनिया को सैन्य दृष्टि से शक्तिशाली बनाने के उद्देश्य उसने नागरिकों के लिए अनिवार्य सैन्य सेवा की व्यवस्था की। ‘मारी’ नगर के उत्खनन से प्रचुर संख्या में प्राप्त मिट्टी की पाटियों पर उत्कीर्ण प्रशासनिक विषयों से संबद्ध हम्मूराबी की आज्ञाएं और निर्णय उसकी प्रशासनिक प्रतिभा और बेबीलोन की प्रशासनिक गतिविधियों की जानकारी के स्रोत हैं। ये पत्र विविध विषयों से संबंधित है, जैसे – पंचांग में अतिरिक्त माह जोड़ना, एक मंदिर की आय के दुरुपयोग की जांच, एक नगर में नहर की सफाई, रिश्वत के आरोप की जांच, कप्तान को जल-पोतों के साथ ‘बेबीलोन: की ओर बढ़ने का निर्देश, ‘उर’ नगर में सैनिक जलपोत भेजना इत्यादि।

 प्रशासन के सुचारू रूप से संचालन के लिए ‘हम्मूराबी’ ने केंद्रीय सत्ता के अधीन प्रशासनिक अधिकारियों को नियुक्त कर उन्हें वेतन के रूप में धन और भूखंड प्रदान किए। मंदिरों की भूमि पर भी हम्मूराबी ने राजकीय नियंत्रण स्थापित किया। संभवत: भूमि-खंड प्राप्त करने वाले सैन्य वर्ग से संबंधित अधिकारियों को ‘रेडू (Redu)’, ‘बैरु (Bairu)’, ‘ठेकू (Deku)’, ‘लाबुत्तू (Labuttu)’ कहा जाता था। राज्य प्रशासन में सहायक समाज के अन्य वर्गों जैसे व्यापारी, कीलाक्षर लिपिक, स्वर्णकार आदि को भी राज्य की ओर से भूमि दी जाती थी।

हम्मूराबी के प्रशासनाधिकारी सुरक्षा, जन कल्याण, यातायात व्यवस्था, राजस्व वसूली, राजकीय दासों पर नियंत्रण आदि कार्य करते थे। इन पदाधिकारियों की नियुक्ति, पदोन्नति, पदच्युति सम्राट की इच्छा पर निर्भर था। कतिपय प्रशासनिक कार्यों पर यथा – मंदिरों का प्रबंध, न्याय व्यवस्था, राजकर संग्रह, पशुपालन और धर्मोत्सवों पर ‘हम्मूराबी’ स्वयं दृष्टि रखता था। ‘हम्मूराबी’ ने इन प्रशासनिक कार्यों एवं सुधारो के द्वारा ‘बेबीलोन’ में शांति-सुव्यवस्था स्थापित की।

न्याय-प्रशासन

‘हम्मूराबी’ को ‘न्याय-प्रशासन’ के उत्तम प्रबंध के कारण, ‘न्याय का शासक’ कहा जाता है। सुमेरियन युग में धर्म और कानून घनिष्ठ रूप से संबद्ध थे। न्यायालय, मंदिरों में निहित थे और पुजारी हीं न्यायाधीश का कार्य करते थे। ‘हम्मूराबी’ ने इन ‘धार्मिक-न्यायालयों’ के अस्तित्व के साथ हीं ‘राजकीय-न्यायालयों’ की भी स्थापना की, जिनकी दो श्रेणियां थी –

प्रथम और श्रेष्ठ न्यायालय दरबार था, जहां राजा स्वयं मुकदमो एवं पुनरावेदनों की निर्णायक सुनवाई करता था।

द्वितीय, विभिन्न प्रांतों और राजधानी से दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित ‘राजकीय-न्यायालय’ थे, जिनमें राजा द्वारा नियुक्त न्यायाधीश मुकदमों की सुनवाई करते थे।

न्यायाधीशों पर नियंत्रण के लिए नगर के वयोवृद्ध व्यक्ति भी न्यायालय में न्यायिक कार्यों में भाग लेते थे। ‘हम्मूराबी’ के पत्रों से ज्ञात होता है कि वह स्वयं न्यायाधीशों के कार्यों का निरीक्षण करने के लिए भ्रमण करता था तथा भ्रष्ट न्याय कर्मियों को कठोर दंड देता था।

 हम्मूराबी द्वारा स्थापित न्यायालयों की कार्यविधि सरल थी तथा वादी और प्रतिवादी अपनी वकालत स्वयं करते थे तथा गवाही देने के लिए साक्षियो को प्रस्तुत करते थे। मुकदमों के निर्णय में साक्षी की गवाही अनिवार्य थी। मुकदमों को कम करने के लिए आरोपी को न्यायालय में आरोप सिद्ध नहीं कर सकने पर मृत्यु-दंड दिया जाता था। असंतुष्ट पक्ष को अपील का अधिकार था तथा अंतिम सर्वोच्च अदालत सम्राट का था लेकिन दूरस्थ नगरों में भी पुनरावेदन की सुनवाई के लिए ‘हम्मूराबी’ ने विशेष अधिकारी नियुक्त किए थे।

 बेबिलोनिया की न्याय-प्रणाली में निर्णय सुनाने के बाद उसे लिपिबद्ध किया जाता था तथा इसके बाद न्यायाधीश निर्णय में परिवर्तन का प्रयास करते थे तब उन्हें भ्रष्ट मानकर सजा दी जाती थी।

 हम्मूराबी ने बेबिलोनिया की न्याय प्रणाली को व्यवस्थित और सशक्त बनाने के लिए तथा साम्राज्य की एकता और प्रशासनिक एकरूपता के लिए, विभिन्न प्रदेशों एवं जातियों के समस्त प्राचीन रीति-रिवाजों, क़ानूनों तथा सामाजिक और व्यापारिक परंपराओ को एकत्र कर संग्रहित करने की आज्ञा दी। संग्रह का कार्य संपन्न होने के बाद ‘हम्मूराबी’ ने उन कानूनों एवं प्रथाओं को व्यवस्थित किया तथा उनमें आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन और सुधार कर एक विशाल ‘विधि-संहिता’ का रूप दिया। यह संहिता विश्व इतिहास में ‘हम्मूराबी’ की ‘विधि-संहिता’ के नाम से विख्यात है।

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