स्पेन में सैन्य अधिनायकत्व का कालखंड (1923 -1931)

This entry is part 3 of 11 in the series स्पेन का गृहयुद्ध

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जनरल ‘मिग्रयल प्राइमो ड रिवेरा’ का कार्यकाल

सत्ता ग्रहण के पश्चात ‘रिवेरा’ ने सैनिक निदेशक मंडल का गठन कर संपूर्ण राष्ट्र में सैनिक-कानून लागू कर दिया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नियंत्रित, न्यायिक तंत्र में ‘जूरी’ के प्रावधान को प्रतिबंधित और समस्त म्युनिसिपलो एवं स्वायत्त संस्थाओं को भंग कर उसने ‘कैटेलोनिया’ के पृथकतावादी आंदोलन का दमन किया। ‘रिवेरा’ ने आर्थिक सुधारों के द्वारा ‘स्पेन’ के राष्ट्रीय बजट को संतुलित किया, जिससे मुद्रा का मूल्य स्थिर हुआ। उसने ‘स्पेन’ में आधारभूत संरचनाओ और संचार साधनों का विस्तार किया। ‘रिवेरा’ ने ‘मोरक्को: के विद्रोहियों का दमन कर अपनी प्रभावी विदेश नीति के तहत ‘इटली’ के साथ मैत्री संधि की। 1925 में ‘रिवेरा’ ने असैन्य शासन की स्थापना के लिए ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद’ का गठन किया तथा श्रमिक नेताओं को शासकीय सेवा में उच्च पद देकर श्रमिकों का सहयोग प्राप्त करने का प्रयत्न किया।

‘स्पेन’ में उपरोक्त सुधारों के बाद भी उदारवादी एवं बुद्धिजीवी वर्ग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं होने को मुद्दा बनाकर ‘रिवेरा’ की आलोचना करते रहे। 1928 में ‘कैटोलेनिया’ के अलगाववादियों द्वारा ‘रिवेरा’ सरकार की तख्तापलट के प्रयास और 1929 में ‘मेड्रिड-विश्वविद्यालय’ में छात्र आंदोलन होने पर ‘रिवेरा’ ने सभी शिक्षण – संस्थाओं को कुछ समय के लिए बंद कर दिया। इन विषम परिस्थितियों को संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था और राजा ‘अल्फांजो XIII’ और ‘रिवेरा’ के मध्य मतभेद ने और बढ़ा दिया। जनवरी 1930 में ‘रिवेरा’ ने त्यागपत्र दे दिया।

‘जनरल बेरेंगुअर’ का कार्यकाल

स्पेन के राजा ‘अल्फांजो XIII’ ने सैन्य गवर्नर जनरल ‘बेरेंगुअर’ को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। ‘बेरेंगुअर’ ने जन असंतोष को खत्म करने के लिए – 1876 के संविधान को पुनः लागू करने, विश्वविद्यालयों के छात्र एवं शिक्षक आंदोलनकर्ताओं की मांग मानने तथा व्यक्तिगत एवं अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा की घोषणा की। इन सुधारों का लाभ नहीं हुआ और ‘निकेटो अलकाना जामोरा’ के नेतृत्व में गणतंत्र समर्थकों ने “राजा और राजतंत्र का नाश”  के उदघोष के साथ, उग्र प्रदर्शन और उपद्रव प्रारंभ कर दिया 14 फरवरी 1931 को ‘बेरेंगुअर’ ने इस्तीफा दे दिया।

‘एडमिरल आजनार’ का कार्यकाल    

प्रधानमंत्री, ‘एडमिरल आजनार’ द्वारा विद्यार्थियों, श्रमिकों, गणतंत्रीय नेताओं को संतुष्ट करने के लिए अपनाई गई उदार नीति भी निष्प्रभावी सिद्ध हुई। सरकार ने 1931अप्रैल में नगरपालिकाओं के और इसके उपरांत ‘संविधान निर्मात्री सभा’ के लिए चुनाव कराने की घोषणा की। नगरपालिकाओ के चुनाव में गणतंत्रवादियों को आशातीत सफलता मिली, फलत: गणतंत्रवादी अपने नेता ‘जामोरा’ के नेतृत्व में राजा पर पदत्याग के लिए दबाव डालने लगे। ‘स्पेन’ में सशस्त्र क्रांति की संभावना से आशंकित राजा ने 14 अप्रैल 31 को ‘स्पेन’ छोड़कर ‘फ्रांस’ में शरण ले ली।

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