- स्पेन का गृहयुद्ध: एक परिचय
- स्पेन के गृहयुद्ध की पृष्ठभूमि
- स्पेन में सैन्य अधिनायकत्व का कालखंड (1923 -1931)
- ‘स्पेन’ में ‘गणतंत्र’ की स्थापना
- स्पेन में गणतंत्रवादी सरकार के निर्णय और प्रभाव
- स्पेन में प्रथम संसदीय निर्वाचन (नवम्बर 1933)
- स्पेन में 1936 का निर्वाचन
- स्पेन में गृहयुद्ध की पूर्वसंध्या में सामाजिक और राजनीतिक स्थिति
- स्पेन में गृहयुद्ध (1936-1939)
- स्पेन की सरकार का पतन और फ्रांको की सत्ता की स्थापना
- अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर ‘स्पेन के गृहयुद्ध’ का प्रभाव
गृहयुद्ध के पूर्व आर्थिक स्थिति
जुलाई 1936 तक स्पेन की कानून व्यवस्था पूर्णत: विनष्ट हो गई थी। स्पेन के नेता हिंसक क्रांति की तैयारी कर रहे थे और विदेशी राजनयिक स्पेन में अपने हितों के लिए संभावना तलाश रहे थे। अप्रैल से जुलाई 1936 के बीच हड़तालों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। श्रमिक कम काम के के लिए भी अधिकाधिक वेतन मांगते थे तथा दुकानों से खरीदे गए सामान का दाम या किराया नहीं देना श्रमिकों के लिए आम बात थी। इन श्रमिकों को सशस्त्र वाम उग्रवादियों का सहयोग था, अतः मध्यवर्ग और व्यापारी वर्ग ने भी मान लिया था की क्रांति आरंभ हो चुकी है। पॉपुलर फ्रंट सरकार ने समान हिंसक गतिविधियों में शामिल रहने के बावजूद केवल दक्षिणपंथियों का दमन किया क्योंकि वामपंथी उनके समर्थक थे।
जुलाई 1936 तक स्पेन में वामपंथी और दक्षिणपंथी समर्थकों के मध्य – हिंसक-संघर्ष, हत्या, लूट, आगजनी, जैसी गतिविधियां दैनिक गतिविधि के समान हो गई थी। एक पादरी Hilari Raquen के अनुसार “स्पेनी समाज का वामपंथ और दक्षिणपंथ के मध्य विभाजन इस स्तर पर पहुंच गया था कि बच्चे ‘चोर और पुलिस’ की जगह ‘वामपंथी और दक्षिणपंथी’ बनकर खेलते थे।”
गृहयुद्ध के पूर्व राजनीतिक स्थिति
‘पॉपुलर फ्रंट’ सरकार ने संवैधानिक खामियों का लाभ उठाकर मध्यवर्ती ‘रेडिकल दल’ का समर्थक होने के आरोप में राष्ट्रपति ‘जामोरा’ को अपदस्थ कर दिया। ‘मेनुअल अजाना’ ने स्वयं राष्ट्रपति का पद ग्रहण कर लिया और ‘सांटियागो कारारेस क्विरागो ll’, को प्रधानमंत्री बनाया गया। स्पेन की तत्कालीन स्थिति वामपंथियों एवं दक्षिणपंथियों के मध्य संघर्ष से अति तनावपूर्ण थी। स्पेन की सेना में कार्यरत सैन्य अधिकारियों के गुट (जुंटा) और सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी जनरल ‘एमिलो मोला’ के नेतृत्व में तख्तापलट की संभावना तलाश रहे थे। इसी समय सरकार ने दक्षिणपंथियों के समर्थक उच्च पदस्थ सैन्य अधिकारियों को सेवा मुक्त कर दिया या उन्हें स्पेन से बाहर सुदूर क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया, जैसे – जनरल ‘फ्रांसिस्को फ्रांको’ को ‘चीफ ऑफ स्टॉफ’ के पद से हटाकर ‘केनेरी द्वीप’ भेज दिया गया, ‘मैनुअल गोडेड लोपिस’ को इंस्पेक्टर जनरल के पद से हटाकर ‘बालियर्स द्वीप (Balearic Islands)’ भेज दिया गया और ‘एमिलो मोला’ को अफ्रीका के सेनाध्यक्ष पद से हटाकर ‘पैम्पलोना (Pamplona in Navarre)’ का सैन्य कमांडर बना दिया। फलत: उच्च सैन्य अधिकारी शीघ्र वामपंथी सरकार के तख्तापलट का प्रयास करने लगे। 1936 के मध्य में दक्षिणपंथी जनरल ‘सांजुर्जों’ ने दो बार ‘जर्मनी’ की यात्रा कर ‘हिटलर’ से सहायता का आश्वासन प्राप्त कर लिया था।
‘PSOE’ के ‘वामपंथी-समाजवादी’, स्पेन को ‘सोवियत संघ’ के साथ संबद्ध समाजवादी गणतंत्र बनाना चाहते थे, ‘फ्रांसिस्को लार्गो काबालेरो’ ने सर्वहारा वर्ग के संगठन की घोषणा की जो हर संभव उपाय और कीमत के द्वारा अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते थे। कट्टर समाजवादी नेता ‘Indalecio Prieto (PSOE leader)’ ने एक सभा में इसे, समाजवाद या साम्यवाद नहीं बल्कि अति व्याकुल अराजकता का पथ कहा था। दक्षिणपंथियों का मत था कि वामपंथी कानून का पालन नहीं करना चाहते है, अतः इस गणतांत्रिक व्यवस्था पर नियंत्रण की जगह इसे समाप्त कर देना बेहतर है।