‘स्पेन’ में ‘गणतंत्र’ की स्थापना

This entry is part 4 of 11 in the series स्पेन का गृहयुद्ध

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‘स्पेन’ मे राजा के पलायन के बाद ‘अलकाला जामोरा’ की अध्यक्षता में ‘गणतंत्रवादियों’ और ‘समाजवादियों’ को शामिल कर एक अस्थायी कार्यवाहक सरकार गठित की गई। इस सरकार के द्वारा लिए गए कुछ निर्णयो में –

  • अपनी विचारधारा के समर्थक राजनीतिक बंदियों को क्षमा प्रदान कर रिहा करना,
  • राजा की संपत्ति जब्त करना,
  • अभिजात वर्ग की उपाधियों को समाप्त करना, तथा,
  • सभी नागरिकों को राजनीतिक, धार्मिक, स्वतंत्रता प्रदान करना शामिल थे।

अस्थाई सरकार के इन निर्णयों की प्रतिक्रिया में ‘स्पेन’ के ‘कैथोलिक-चर्च’ ने जनता से उन प्रत्याशियों को चुनाव में निर्वाचित करने की अपील की, जो धर्म की रक्षा करें। इसके विरोध में उग्र ‘गणतंत्रवादियो’ ने चर्च की संपत्तियों, गिरजाघरो, मठों आदि को आगजनी द्वारा नष्ट कर दिया। मई 1931 में एक मठ के पास एक वाहन चालक पर हुए हमले की प्रतिक्रिया में ‘मेड्रिड’ और दक्षिण-पश्चिमी स्पेन में पादरियों के विरुद्ध हिंसा होने लगी इन विषम परिस्थितियों में सरकार की धीमी कार्रवाई से यह भावना व्याप्त हो गई कि गणतंत्र, ‘चर्च’ के दमन के लिए कटिबद्ध है। जून और जुलाई 1931 में ‘CNT (Confederacion National del Trabajo)’ द्वारा आयोजित हड़तालो के परिणामस्वरूप ‘CNT’ और सेना के बीच ‘सेविले’ में हिंसक संघर्ष हुआ फलत: ‘स्पेन’ में इस ‘द्वितीय गणतंत्र’ को भी ‘राजतंत्र’ की भांति दमनकारी माना जाने लगा।

इन विषम परिस्थितियों में जून 1931 में हुए ‘राष्ट्रीय संविधान सभा’ के निर्वाचन में 25 राजनीतिक दलों ने भाग लिया। जिसमें ‘गणतंत्र वादियों’ और ‘समाजवादियों’ को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ। राष्ट्रीय संविधान सभा ने ‘अलकाला जामोरा’ की अस्थाई सरकार को गणतंत्र के नए संविधान के निर्माण तक कार्यवाहक सरकार बनाए रखा।

अलकाला जामोरा

संविधान का निर्माण और संवैधानिक प्रावधान

9 दिसंबर 1931 को लागू इस नए संविधान के तहत स्पेन को “सभी वर्गों के श्रमिकों का लोकतंत्रात्मक गणतंत्र” घोषित किया गया। इस संविधान के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं –

  1. इसमें एक सदनी विधानमंडल ‘कोर्टेज’ की व्यवस्था थी। जिसके सदस्यों का चुनाव 23 वर्षों से अधिक आयु वाले स्पेनी स्त्री एवं पुरुष निर्वाचको द्वारा किए जाने का प्रावधान था।
  2. ‘राष्ट्रपति’ का चुनाव 6 वर्षों के लिए ‘कोर्टेज’ के सदस्यों और जनता के द्वारा समान संख्या में निर्वाचित सदस्यों के ‘निर्वाचक-मंडल’ द्वारा किए जाने की व्यवस्था थी।
  3. कोई भी सैन्य-अधिकारी, पादरी, किसी राष्ट्र के राजवंश का कोई सदस्य राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी नहीं हो सकता था।
  4. राष्ट्र की कार्यपालिका शक्ति ‘मंत्रिमंडल’ में निहित थी जो ‘कोर्टेज’  के प्रति उत्तरदाई था। मंत्रिमंडल के प्रतिहस्ताक्षर के बिना राष्ट्रपति का कोई भी आदेश वैध नहीं हो सकता था।
  5. संविधान में आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक – सांस्कृतिक क्षेत्रों में स्पेन की पुरातन परंपरा के विपरीत प्रावधान किए गए थे, यथा – संविधान में राष्ट्रीय चर्च का प्रावधान नहीं था तथा जनता को स्वेच्छा से धार्मिक मत या संप्रदाय का अनुकरण करने की स्वतंत्रता दी गई।
  6. शिक्षा और विवाह को धार्मिक विधानों से अलग कर तलाक को कानूनी मान्यता दी गई।
  7. राष्ट्र उचित मुआवजा दे कर, व्यक्तिगत संपत्ति का अधिग्रहण, सार्वजनिक सेवाओं का राष्ट्रीयकरण तथा वृहत संपदाओं का समाजीकरण कर सकता था। निजी उद्योगों में भी राष्ट्रीय आर्थिक हितों के लिए राष्ट्र वैधानिक रूप से सहयोगी बन सकता था।
  8. राष्ट्रीय नीति के रूप में युद्ध का परित्याग कर दिया गया।

संविधान सभा ने विशेषाधिकार के तहत ‘निकेटो जामोरा’ को गणतंत्र का प्रथम राष्ट्रपति निर्वाचित किया। ‘मेनुअल अजाना’ ने प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया तथा अगले दो वर्षों तक संविधान सभा ही साधारण व्यवस्थापिका का कार्य करती  रही। इस सरकार के कार्यों का स्पेन की राजनीति और धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक तंत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ा, जिसने अंतत: स्पेन को गृह युद्ध की ओर अग्रसर कर दिया।

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