सोवियत संघ में विघटनकारी प्रवृत्तियों का प्रादुर्भाव
1977 अक्टूबर में तीसरे ‘सोवियत संविधान’ को सर्वसम्मति से लागू किया गया लेकिन 1980 के दशक के आरंभ तक ‘सोवियत कम्युनिस्ट (साम्यवादी) पार्टी’, जराजन्य प्रवृत्तियों के प्रभाव में आ चुकी थी। ‘लियोनिड ब्रेझनेव’ लंबे कार्यकाल के बाद जीवन के आखिरी वर्षों में अपने पूर्व जुझारू व्यक्तित्व की धुंधली छवि मात्र रह गया था। यह कालखंड सोवियत संघ के इतिहास में “स्थिरता का युग(Era of Stagnation)” था। जब आर्थिक,राजनीतिक क्षेत्र में संकट व्याप्त था, जबकि सोवियत संघ के नेतृत्व कर्ता स्थिति में सुधार लाने की जगह किंकर्तव्यविमूढ़ थे। ब्रेझनेव द्वारा अफगानिस्तान पर पुनः आक्रमण का आदेश देने से वैश्विक तनाव बढ़ गया था। जिस समय सोवियत संघ अनेक जटिल समस्याओं से घिरा था, 1982 में ब्रेझनेव की मृत्यु हो गई और उसके उत्तराधिकारी क्रमशः ‘यूरी आंद्रेपोव’ और ‘कांस्टेंटिन चेरनेनको’ भी परंपरागत साम्यवादी विचारों से प्रभावित थे तथा सत्ता ग्रहण के बाद 2 वर्षों से कम अवधि में ही उनका निधन हो गया। इस स्थिति में तीसरे वयोवृद्ध और अल्पकाल तक सत्ता संचालन करने वाले नेता की जगह, 1985 में सोवियत साम्यवादी पार्टी में नई पीढ़ी को सत्ता में लाने के प्रयासों के तहत, 54 वर्षीय ‘मिखाईल गोर्बाचोव’ को पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया।
मिखाईल गोर्बाचोव का शासन काल (1985 91)
‘मिखाईल गोर्बाचोव’, एक प्रगतिशील और सुधारवादी साम्यवादी नेता था। 1980 के दशक में वैश्विक राजनीति में ‘Soviet Satellite States’ अर्थात सोवियत संघ का साम्यवादी प्रभाव क्षेत्र ‘पूर्वी ब्लॉक’ (जिसमें पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया के देश थे) आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से विघटनकारी प्रवृत्तियों के प्रभाव में थे। 1979 के उतरार्द्ध में सोवियत संघ की सेना द्वारा पड़ोसी देश अफगानिस्तान के गृहयुद्ध में सशस्त्र हस्तक्षेप से, पश्चिमी देश विशेषकर शीत युद्ध कालीन विश्व का, एक ध्रुव ‘अमेरिका’ भी सोवियत संघ की हार के लिए कृत संकल्प हो गया था। ‘केनेथ एस डफेयस’ ने अपनी पुस्तक ‘Beyond Oil’ में कहा है, “रीगन प्रशासन, ने सऊदी अरब को कच्चे तेल का दाम कम करने का निर्देश दिया, ताकि सोवियत संघ तेल के व्यापार से मुनाफा नहीं कमा सके और उसकी अर्थव्यवस्था संकट ग्रस्त हो जाए।”
इन विषम परिस्थितियों में सत्ता संभालने वाले ‘मिखाइल गोर्बाचोव’ ने अर्थव्यवस्था और साम्यवादी प्रवृत्तियों – विशेषकर “सूचनाओं को प्राप्त करने” तथा “विचारों को अभिव्यक्त” करने, पर कठोर प्रतिबंधो में सुधार लाने के लिए इन दो नीतियों का प्रतिपादन किया “ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका”।
ग्लासनोस्त
इसका अर्थ है, ‘खुलापन’ साम्यवादी पार्टी की मूलभूत कठोर सेंसरशिप की नीति के विरुद्ध ‘ग्लास्नोस्त’ नीति के तहत पार्टी के सम्मेलनों की खबरें प्रकाशित करने, प्रकाशन और सूचना प्रसारण तंत्र को ‘कार्य एवं अभिव्यक्ति’ की तथा ‘धार्मिक स्वतंत्रता’ दी। गोर्बाचोव ने प्रख्यात परमाणु वैज्ञानिक ‘सखारोव’ जैसे अन्य राजनीतिक बंदियों को रिहा कर, जनता की घृणा की पात्र खुफिया पुलिस ‘के.जी.बी.’ के अधिकारों को सीमित कर दिया। उसने विगत काल में, साम्यवादी शासन द्वारा किए गए अपराधों, यथा – 1940 में लगभग 22,000 “पोलिश सैन्य अधिकारियों, बुद्धिजीवियों और युद्धबंदियों के Katyn के जंगलों में हुए नरसंहार (जिसे Katyn Massacre कहते हैं) को स्वीकार कर सार्वजनिक रूप से खेद व्यक्त किया।
पेरस्त्रोईका
इसका अर्थ है, ‘पुनर्गठन’। सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए गोर्बाचोव ने वित्तीय अनुशासन लागू किया तथा सरकारी नियंत्रण से आर्थिक गतिविधियों को मुक्त कर अर्थव्यव्स्था को प्रतिस्पर्धात्मक बनाने का प्रयास किया। 1988 और 1989 में आर्थिक विकास दर ‘पेरस्त्रोईका’ के पूर्व वर्षों के स्तर पर बनी रही, लेकिन 1990 में इसमें 15% की गिरावट दर्ज की गई। मुद्रास्फीति की ऊंची दर और बुनियादी आवश्यकताओं की वस्तुओं के अभाव में 1917 के बाद सोवियत संघ में पहली बार राष्ट्रव्यापी हड़ताल हुई। गोर्बाचोव ने हड़ताल कर्ताओं के आगे झुक कर, “स्वतंत्र मजदूर संघों” की स्थापना की मांग मान ली, फलत: पार्टी में उसकी आलोचना होने लगी।
वस्तुतः गोर्बाचोव की ‘ग्लासनोस्त’ की नीति ने विरोधियों को, सरकार के भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता को मुखर रूप देने का अवसर प्रदान किया। यद्यपि गोर्बाचोव, वैचारिक दृष्टि से ‘साम्यवादी’ था और ‘पूंजीवाद’ को हेय दृष्टि से “Pagan Life Style” कहता था, लेकिन दल के अंदर भी उसकी नीतियों और कार्यों से अंतर्विरोध था।