सोवियत संघ के विघटन से उत्पन्न परिस्थितियां

This entry is part 6 of 6 in the series सोवियत संघ का विघटन

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सोवियत संघ के विघटन से उत्पन्न परिस्थितियां

सोवियत संघ की सेना प्रारंभ में ‘CIS’, के नियंत्रण में रहीं परंतु शीघ्र ही स्वतंत्र नवोदित राष्ट्रों की पृथक-पृथक सेना के रूप में विभक्त हो गई । कुछ अन्य सोवियत संस्थाएं “जिसका अधिग्रहण रूस द्वारा नहीं किया गया” 1991 के अंत के साथ उनका कार्य समाप्त हो गया । विघटन के बाद अंतरराष्ट्रीय संधियों और राजनीति में रूस (Russian Federation) को सोवियत संघ का वैधानिक उत्तराधिकारी होने की पहचान प्राप्त हुई। रूस, ने स्वेच्छा से भूतपूर्व सोवियत संघ की, अन्य राष्ट्रों के प्रति देनदारियों को स्वीकार किया और विदेशों में सोवियत संघ की संपत्ति पर अधिकार का दावा किया।

Lisbon Protocol

सोवियत संघ के विघटन के बाद एक प्रमुख प्रश्न परमाणु शस्त्रों के नियंत्रण से संबद्ध था, जिनमें से अधिकतर रूस में थे लेकिन कुछ बेलारुस, यूक्रेन और कजाखस्तान में थे। जुलाई 1991 में सोवियत संघ के गणराज्यों ने ‘START I’,  परमाणु नि:शस्त्रीकरण संधि पर हस्ताक्षर किया, जो Alma Ata Protocol, के तहत संघ के विघटन और CIS की स्थापना की प्रक्रिया से सम्बन्धित विभिन्न प्रावधानों में एक थी।

भूतपूर्व सोवियत संघ के उत्तराधिकारी या प्रतिनिधि चार देशों – रूस, बेलारूस, यूक्रेन और कजाखस्तान तथा संयुक्त राज्य अमेरिका ने पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन (Lisbon), में  23 मई 1992 को ‘Lisbon Protocol’ पर हस्ताक्षर किया।

इसके द्वारा भूतपूर्व सोवियत गणराज्यों में मौजूद “परमाणु शस्त्रों” की जिम्मेवारी के लिए दिशानिर्देश तय किए गए।  सुरक्षा, सैनिक – आर्थिक सहायता तथा रूस और अमेरिका से प्राप्त क्षतिपूर्ति के बाद बेलारूस, यूक्रेन और कजाखस्तान ने ‘START I’ संधि और ‘लिस्बन प्रोटोकॉल’ दोनों की पुष्टि कर अपने सभी परमाणु शस्त्रों को 1996 के अंत तक रूस को समर्पित कर दिया।

इस अवधि से रूसी महासंघ सोवियत संघ के अधिकार और कर्तव्यों का उत्तरदाई है। यद्यपि यूक्रेन ने भूतपूर्व सोवियत संघ के उत्तराधिकार पर रूस द्वारा प्राप्त इस विशिष्ट अधिकार को चुनौती देते हुए अपने लिए भी ऐसे अधिकारों की मांग की। सोवियत संघ की विदेशों में स्थित संपत्ति में अधिकार के लिए यूक्रेन और रूस के मध्य अन्य देशों के न्यायालयों में कानूनी लड़ाई चल रही है।

वस्तुत: भूतपूर्व सोवियत संघ के 15 गणराज्यो के उत्तराधिकार का प्रश्न जटिल है, “रूसी महासंघ” को यद्यपि कानूनी उत्तराधिकारी माना जाता है और सोवियत संघ की संयुक्त राष्ट्र संघ और सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता इसे ही प्राप्त हुई है तथापि सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता घोषित करने वाले चार और  राज्यों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता सीमित स्तर पर मिली, ये राज्य हैं – अबखाजिया (Abkhazia), साउथ ओसेशिया (South Ossetia), ट्रांसनिस्त्रीए(Transnistria)।

इसके अतिरिक्त “चेचेन रिपब्लिक ऑफ इचकेरिया (Chechen Republic of Ichkeria) ने भी सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता घोषित किया, परंतु उन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली, इस क्षेत्र में चेचेन अलगाववादी संगठन सक्रिय हैं।

सोवियत संघ के विघटन का सामाजिक आर्थिक प्रभाव

सोवियत संघ के विघटन का संघ के गणराज्यो की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति पर सांघातिक प्रभाव पड़ा। अत्याधिक गरीबी ,अपराध, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बीमारियां, विस्थापन से जनसांख्यिकी में आए परिवर्तन, कुलीन वर्गों का उदय, अशिक्षा आदि विषम परिस्थितियों से जीवन प्रत्याशा दर में भी कमी आई। 1988 / 1989 और 1993 / 1995 के बीच भूतपूर्व सोवियत संघ के साम्यवादी देशों में “Gini Ratio” अर्थात “राष्ट्र की जनता के मध्य आय की असमानता” में औसतन 9 सूचकांक की वृद्धि हुई।

तत्कालीन सरकारी दस्तावेजों से ज्ञात होता है, कि रूस, कजाकिस्तान, लातविया, लिथुआनिया और इस्टोनिया में बेरोजगारी की दर तीव्र थी तथा 1991-94 के मध्य पुरुषों की मृत्यु दर में इन देशों में 42 % की वृद्धि दर्ज की गई। कुछ आंकड़ों में आकलन किया गया है, कि अगले दशक में केवल 5 से 6 साम्यवादी देश पूंजीवादी पश्चिम के साथ सहयोग कर आगे बढ़ पाए, जबकि अधिकांश देश इस स्थिति में थे कि भूतपूर्व सोवियत संघ में उनकी आर्थिक स्थिति तक पहुंचने में भी उन्हें संभवत 50 वर्ष और लगते।

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स्पुतनिक 1
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यूरी गाग्रीन

ब्लादीस्लाव जुबोक, का कथन है, “सोवियत संघ का विघटन ‘भू-राजनीतिक’ एवं ‘अंतर्राष्ट्रीय राजनीति’ में एक महत्वपूर्ण पड़ाव या मोड़ था। जिसका सैनिक,  वैचारिक और आर्थिक महत्व है। विघटन के पूर्व इस देश ने द्वि-ध्रुवीय विश्व में एक ‘ध्रुव’ और वैश्विक महाशक्ति की स्थिति बनाए रखी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 4 दशकों तक पूर्वी यूरोप में अपने नायकत्व को कायम कर सशक्त “सैनिक-आर्थिक” शक्ति की स्थापना की, विकासशील देशों को सहायता दिया तथा वैज्ञानिक शोधों द्वारा विशेष रुप से अंतरिक्ष विज्ञान और आधुनिक सैन्य सामग्री के निर्माण में अपार सफलता प्राप्त की।”

शीत युद्ध कालीन वैश्विक राजनीति में मानव जीवन के हर पहलू में व्याप्त प्रतिस्पर्धा में, अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में प्रथम कृत्रिम Satellite ‘Sputnik 1’ को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने और प्रथम अंतरिक्ष यान ‘Vostok 1’ तथा पहली बार अंतरिक्ष में मानव को (अर्थात अपने नागरिक यूरी गागरिन) Space Capsule ‘Vostok 3KA’ के द्वारा भेजने में सोवियत संघ की उपलब्धि अविस्मरणीय है।

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