सोवियत संघ के ‘East Block’ में साम्यवाद की विफलता
मिखाईल गोर्बाचोव, सोवियत संघ के ‘Satellite States’ अर्थात औपचारिक रूप से स्वतंत्र परंतु राजनीतिक,आर्थिक दृष्टि से, सोवियत संघ के प्रभाव और नियंत्रण वाले देशों में साम्यवादी शासन के प्रति हो रही विद्रोही गतिविधियों के प्रति तटस्थ रहा। इससे पहले लियोनिड ब्रेझनेव की विदेश नीति में, Soviet Satellite States (समाजवादी शासन वाले, सोवियत या ईस्ट ब्लॉक कहे जाने वाले, केंद्रीय और पूर्वी यूरोप में स्थित देश) की आंतरिक संप्रभुता पर कठोर नियंत्रण रखा जाता था तथा इनमें से किसी देश पर खतरा सभी पर संकट माना जाता था। गोर्बाचोव ने नई राजनीतिक सोच (New Political Thinking) की अपनी नीति के द्वारा ‘वारसा पैक्ट (Warsaw Pact)’ के सदस्य देशों को अपनी आंतरिक विषयों के नियमन-नियंत्रण की अनुमति दे दी तथा इसमें सोवियत संघ के हस्तक्षेप से इंकार कर दिया। फलत: ‘Revolutions of 1989’ या ‘साम्यवाद का अंत’, कही जाने वाली अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण श्रृंखलाबद्ध राजनीतिक परिवर्तनों के तहत सोवियत संघ के ईस्टर्न ब्लॉक के देशों – चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, रोमानिया, बुलगारिया, अल्बानिया और पूर्वी जर्मनी में साम्यवादी सरकारों का पतन हो गया तथा वैश्विक राजनीति में साम्यवादी विचारधारा के प्रभाव और प्रसार पर इसका घातक प्रभाव पड़ा।
गोर्बाचोव ने अफगानिस्तान में युद्धरत सोवियत सेनाओं को वापस बुला लिया तथा शीत युद्ध की समाप्ति की दिशा में भी प्रयास किया। तत्कालीन कूटनीतिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि “संभवतः आर्थिक सहायता के एवज में पश्चिमी जर्मनी के चांसलर ‘हेल्मुट कोल’ ने साम्यवादी प्रभाव वाले पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी के एकीकरण के लिए गोर्बाचोव को राजी कर लिया।” 3 अक्टूबर 1990 की मध्य रात्रि को उदित एकीकृत जर्मनी को संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ द्वारा संयुक्त समर्थन दिए जाने ने ‘शीतयुद्ध’ के पटाक्षेप की पटकथा लिख दी।