वियना कांग्रेस के लक्ष्य

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वियना कांग्रेस के सदस्य राष्ट्रों में पारस्परिक मतभेदों के बावजूद सभी फ्रांसीसी क्रांति और नेपोलियन के विरोधी थे तथा 1789 से 1815 तक की घटनाओं की पुनरावृति रोकने के लिए प्रयासरत थे नेपोलियन के सैन्य अभियानों से यूरोप का विशेषकर मध्य यूरोप का राजनीतिक ढांचा और शक्ति संतुलन बदल गया था। अतः मध्य यूरोप की अंतरराष्ट्रीय सीमा एवं राजनीतिक स्वरूप तथा नेपोलियन के विरुद्ध युद्धों में विभिन्न देशों की भूमिका का निर्धारण करने के लिए कुछ सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया। जिसमें फ्रांसीसी विदेश मंत्री तालिरां ने अपनी कूटनीतिक प्रतिभा से फ्रांस के हितों की रक्षा की। तालिरां ने वैधता के सिद्धांत पर बल दिया, जिसे विजेता राष्ट्रों ने भी स्वीकृति दी।

वियना कांग्रेस में नीति निर्धारक सिद्धांत 

  • वैधता

यह स्वीकृत किया गया कि 1789 के बाद जिन वैध शासनो का उन्मूलन हो गया था उन्हें पुनर्स्थापित किया जाएगा।

  • शक्ति का संतुलन  

सर्वविदित तथ्य था, कि यूरोप में किसी देश की शक्ति में वृद्धि अन्य देशों के लिए खतरनाक होती थी इसलिए विशेषत: फ्रांस पर अंकुश रखने के लिए उसकी सीमाओं पर स्थित छोटे देशों यथा हॉलैंड और बेल्जियम को मिलाकर एक बड़े देश की स्थापना का प्रावधान किया गया।

  • मुआवजा और पुरस्कार

इस सिद्धांत के तहत नेपोलियन द्वारा नष्ट किए गए तथा उसके विरुद्ध संघर्ष में शामिल देशों की क्षतिपूर्ति करना और उन्हें पुरस्कृत करना

  • सजा

नेपोलियन का साथ देने वाले देश को सजा देना

वियना कांग्रेस में प्रतिनिधि

वियना कांग्रेस के निर्णय

आरंभिक गतिविधियों ऐसा प्रतीत हो रहा था की वियना में सभी निर्णय चार मुख्य विजेता राष्ट्रों रूस, प्रशा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रिया के प्रतिनिधि हीं लेंगे तथा फ्रांस निर्णयकर्ता देशों में शामिल नहीं होगा। फ्रांस के विदेशमंत्री तालिरां ने अपनी कूटनीतिज्ञता से ऐसा नहीं होने दिया। इस उद्देश्य के तहत उसने, स्पेन, पुर्तगाल और स्वीडन की सहभागिता वाली ‘Eight Lesser Power’ की परिषद में फ्रांस को भी शामिल कर दिया।

चार मुख्य राष्ट्रों के गुट ने अपेक्षाकृत कम शक्तिशाली इन 8 देशों के संयुक्त विरोध को रोकने के लिए फ्रांस के प्रतिनिधि तालिरा और स्पेन के प्रतिनिधि ‘मार्क्विस ऑफ लैब्राडोर’ को 30 सितंबर 1814 के दिन वार्ता के लिए आमंत्रित किया। स्पेन के सहयोग से तालिरा, मुख्य राष्ट्रों के गुट में वार्ता के प्रथम सप्ताह में ही अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहा। अंतत: निर्णय 4 नहीं 5 देशों – ऑस्ट्रिया, रूस, प्रशा, ब्रिटेन तथा फ्रांस के प्रतिनिधियों ने किया।

वियना कांग्रेस के प्रतिनिधि राष्ट्रों के मध्य कई विवादास्पद प्रश्न थे जिनका हल संबंधित देशों के मध्य द्विपक्षीय संधियों द्वारा किया गया। वियना कांग्रेस के समक्ष एक विवादास्पद प्रश्न ‘पोलिश-  सैक्सन’ संकट था

डची ऑफ वॉरसॉ (1807 -1809)
पोलैंड का विभाजन

पोलिश-सैक्सन विवाद और क्षेत्रीय समायोजन

इस गतिरोध का कारण रूस और प्रशा की विस्तारवादी महत्वाकांक्षाऐं थी। इसके तहत रूस समस्त ‘पोलैंड’ को और प्रशा समस्त ‘सैक्सनी’ को हस्थगत करना चाहता था। पोलैंड मिलने से रूस की शक्ति में वृद्धि होने की संभावना से ऑस्ट्रिया और ब्रिटेन सशंकित थे। तालिरां ने फ्रांस के हितों की रक्षा के एवज में ऑस्ट्रिया और ब्रिटेन को सहयोग का वचन दिया।

 3 जनवरी 1815 को फ्रांस, ऑस्ट्रिया और ब्रिटेन के मध्य हुई गुप्त संधि में अपनी मांग का त्याग नहीं करने पर रूस और प्रशा के विरुद्ध युद्ध का निर्णय लिया गया। इस गुप्त संधि की जानकारी मिलने पर जार ‘अलेक्जेंडर I’ सभी पक्षों को मान्य समझौते के लिए राजी हो गया। इस समझौते में प्रशा, रूस, सैक्सनी और पोलैंड के मध्य हुआ क्षेत्रीय समायोजन निम्नलिखित है –

रूस

रूस को नेपोलियन द्वारा सीमांकित वारसा की डची का अधिकांश भाग या कांग्रेस पोलैंड  प्राप्त हुआ।

प्रशा

प्रशा को पोसेन प्रांत Grand Duchy of Posen रूस से मिला लेकिन क्राको (Krakow) को स्वतंत्र शहर घोषित किया गया। सैक्सनी प्रांत  का लगभग 60% भू भाग, प्रशा को प्राप्त हुआ।

सैक्सनी

सैक्सनी के शेष भाग को स्वतंत्र सैक्सनी राज्य के रूप में गठित कर उसकी सत्ता राजा ‘फ्रेडरिक ऑगस्टस I’ को वापस कर दी गई।

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