मेसोपोटामिया की सभ्यता : स्रोत

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Map of Mesopotamia
Map of Mesopotamia

‘ताम्र-कांस्ययुगीन’ उत्कृष्ट सभ्यताओं का उदय नदी घाटियों में हुआ था। पश्चिमी एशिया में दजला-फरात नदी की घाटी में जिस सभ्यता का उदय और उत्कर्ष हुआ, उसे ‘मेसोपोटामिया’ की सभ्यता कहते हैं। मेसोपोटामिया दो शब्दोें मेसो+ पोटाम से बना है, जिसमें ‘मेसो’ का अर्थ ‘मध्य’ और ‘पोटाम’ का अर्थ नदी होता है। अतएव ‘मेसोपोटामिया’ का शाब्दिक अर्थ है – “नदियों के बीच का प्रदेश।”

पश्चिमी एशिया को स्थूल रूप से तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है – 

A.उत्तर का पर्वतीय प्रदेश, 

B.मध्य में अर्धचंद्राकार मैदान की पट्टी, तथा 

C.दक्षिण में अरब का विशाल रेगिस्तानी प्रायद्वीप। 

मध्य की अर्धचंद्राकार पट्टी को ‘ब्रेस्टेड’ ने ‘उर्वर- अर्द्धचंद्र’ की संज्ञा दी है। ‘उर्वर-अर्धचंद्र’ के दक्षिण-पश्चिमी सिरे में, भूमध्यसागर का तटवर्ती प्रदेश अर्थात ‘फिलिस्तीन’ और ‘दक्षिणी सीरिया’ आते हैं, जहां इस ऐतिहासिक कालखंड में ‘यहूदी’ और ‘ऐरेमियन’ जातियों का अस्तित्व था तथा मध्यवर्ती भाग विशेषत: दजला की उत्तरी घाटी में ‘असीरिया’ का और इसके दक्षिण पूर्वी छोर अर्थात दजला और फरात की घाटी (मेसोपोटामिया) में इस सभ्यता के जन्मदाता ‘सुमेरियनो’ का अस्तित्व और सत्ता थी। 

वस्तुतः ‘मेसोपोटामिया’ की सभ्यता का इतिहास ‘उर्वर-अर्धचंद्र’ की उर्वर-भूमि और समृद्ध नगरों पर आधिपत्य के लिए उत्तर और पूर्व कि ‘पर्वतीय जातियों’ तथा दक्षिण के ‘सेमेटिक कबीलों’ के मध्य संघर्ष का इतिहास है। ‘मेसोपोटामिया’ की सभ्यता की जानकारी के स्रोतों का अध्ययन इस सभ्यता को जन्म देने वाले ‘सुमेरियनों’ के साथ ही इस सभ्यता के विस्तार में सहायक और निर्णायक  पर्वतीय जातियों, जैसे – कस्साईट, आर्मिनियन और असीरियन, तथा 

दक्षिण की सेमेटिक जातियों जैसे – अक्कादी सेमाइट, पश्चिमी सेमाइट (अमोराइट), यहूदी, ऐरेमियन और कैल्डियन 

के संदर्भ में किया जा सकता है। 

मेसोपोटामिया के इतिहास के स्रोत 

‘मेसोपोटामिया’ की सभ्यता के इतिहास की जानकारी देने वाले प्रमुख स्रोत, यूनानी साहित्य और यहूदी धर्मग्रंथ थे लेकिन आधुनिक युग में हुए उत्खनन कार्यों से प्राप्त अभिलेखों और अन्य पुरातात्विक सामग्रियों से इस सभ्यता के विभिन्न पहलुओं की जानकारी मिलती है। आधुनिक काल में सुमेरियन, बैबीलोनियन और असीरियन  सभ्यता को प्रकाश में लाने का श्रेय – बोट्टा, लेयार्ड, हिंक्स, किंग टॉमस, जॉर्ज स्मिथ, द सार्जाक, कोलडिवी, वूली, मारिट्ज, हिल्प्रेक्ट, रॉलिंसन तथा क्रेमर आदि पुरातत्ववेत्ताओ को है। 

मेसोपोटामिया की सभ्यता से संबद्ध स्रोतों को इस सभ्यता के उद्भव और विस्तार में सहायक उत्तर की पर्वतीय जातियों, यथा – सुमेरियन, कस्साइट, असीरियन और आर्मीनियन तथा  दक्षिण के सेमेटिक कबीलो, यथा – अक्कादी सेमाइट, पश्चिमी सेमाइट, ऐरेमियन और कैल्डियनो के इतिहास से संबद्ध स्रोतों के आलोक में किया जा सकता है।

मेसोपोटामिया की सभ्यता को जन्म और विस्तार देनेवाली पर्वतीय जातियों से संबद्ध स्रोत 

Map of Sumer 
Map of Sumer

1.’सुमेरियन’ इतिहास के स्रोत 

‘मेसोपोटामिया’ की सभ्यता के जन्मदाता सुमेरियनो के संबंध में प्राचीन यहूदी बाइबिल में कोई विवरण नहीं मिलता है। अतः यह निर्णय कठिन है कि वे ‘सुमेरियनो’ से परिचित थे या नहीं, लेकिन इसमें एक स्थान पर किसी जाति के पूर्व से ‘शिन्नार (सुमेर)’ में आकर बसने का उल्लेख है। आधुनिक विद्वानों का अनुमान है, ‘शिन्नार’ ही ‘सुमेर’ था तथा यह जाति ‘सुमेरियन’ थी। पांचवी सदी ईसा पूर्व के यूनानी लेखक और इतिहास पिता ‘हेरोडोटस’ ने तथा हखामशी सम्राट का राजवैद्य ‘टीसियस’ (415 398 ई. पू.) के साहित्य में भी सुमेरियनो की जानकारी नहीं है। हेलेनेस्टिक युगीन एशियाई इतिहासकारों में सबसे महत्वपूर्ण इतिहासकार ‘बेरोसॉस’, बेबीलोन में ‘मर्दुक’ के मंदिर का पुजारी था उसके द्वारा रचित ग्रंथ ‘बैबीलोनिया के इतिहास’ के कुछ अंश ‘फ्लेवीयस जोसेफस (जन्म 33 ई.)’, ‘संत क्लीमेंट’, ‘बिशप युसीबियस’ इत्यादि विद्वानों के उद्धरणों के रूप में प्राप्त है। इन विवरणों के अनुसार ‘बेरोसॉस’ ने, ‘मर्दुक’ द्वारा ‘तियामत’ के वध और सृष्टि की रचना से लेकर अपने जीवनकाल तक का इतिहास लिखा है। उसने अपने ग्रंथ में बैबिलोनिया के इतिहास को दो भागों में विभाजित किया था – 

प्रलय के पूर्व का युग जिसमें 10 राजाओं ने 4 लाख 3000 वर्षों तक शासन किया, तथा 

प्रलय के बाद का युग जिसमें 8 वंशों ने 36 हजार वषों तक शासन किया। 

इसमें ‘बेरोसॉस’ ने सुमेरी राजवंशों का उल्लेख नहीं किया। कैल्डियनो का अंतिम सम्राट ‘नबोनिडस (555 538 ई. पू.)’ ने प्राचीन राजाओं से संबंधित अभिलेखों में ‘सारगन प्रथम’  का उल्लेख किया है, परंतु सुमेरियनो का नहीं किया है। संभवत: इस अवधि तक सुमेरियन जाति और सभ्यता की स्मृति भी शेष नहीं थी।

19वीं शताब्दी के मध्य में पुरातत्ववेत्ताओं ने बैबिलोनिया में उत्खनन कार्य प्रारंभ किया जिसका उद्देश्य असीरियनो का इतिहास जानना था, लेकिन बैबीलोनिया के प्राचीन स्तरों से एक अन्य जाति के प्रमाण मिले। 1850 ईस्वी में सर्वप्रथम ‘हिंक्स’ ने बताया कि कीलाक्षर लिपि को बैबीलोनियन सेमाइटों ने एक अन्य प्राचीनतर जाति से सीखा था, जो अपने निवास क्षेत्र अर्थात दक्षिणी बेबिलोनिया को ‘सुमेर (बाइबिल का शिन्नार)’ कहती थी। ‘आपर्ट’, ने इस जाति को सुमेरियन की संज्ञा दी।

1854 ई. में उर, एरिडू तथा एरेक में उत्खनन कार्य हुए जिससे सुमेरियनो से संबद्ध पुरातात्विक वस्तुएं प्राप्त हुईं तथा 19 वीं सदी के अंतिम कालखंड में ‘लगश’ नगर के उत्खनन से सुमेरी ‘राजाओं की सूचियां: मिली हैं। 1889 से 1898 तक ‘निप्पुर’ नगर के उत्खनन से सुमेरियन साहित्य से संबद्ध अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं। ‘रॉलिंसन’, ने उत्खनन द्वारा ऐसे अभिलेखों को प्रकाश में लाया है, जिसमें सुमेरियन भाषा की शब्दावली बेबीलोनियन भाषा में अनुवाद सहित दी गई है। जिससे सुमेरियन अभिलेखों का अर्थ समझा जा सकता है। 

Sumerian Heagear
Sumerian Heagear

बीसवीं शताब्दी में भी मेसोपोटामिया की सभ्यता से संबंधित नगरों में इतिहासविदों ने उत्खनन कार्य किया है। 1929 ईस्वी में अमेरिकी विद्वान ‘प्रोफ़ेसर वूली’, ने ‘उर’ नगर में उत्खनन किया। इस उत्खनन में ‘उर’ की प्रसिद्ध राजसमाधि और कोष मिले हैं। इससे सुमेरियन सभ्यता के ऐतिहासिक युग की जानकारी मिलती है। पुरातात्विक खोजों से स्पष्ट है कि उर, एक प्रमुख सुमेरियन शहरी केंद्र था।  विशेषकर शाही मकबरों की खोज से इसके वैभव की पुष्टि होती है। प्रारंभिक राजवंश IIIa काल (लगभग 25वीं या 24वीं शताब्दी ईसा पूर्व) की इन कब्रों में लंबी दूरी (प्राचीन ईरान, अफगानिस्तान, भारत, एशिया माइनर या आधुनिक तुर्की, फारस की खाड़ी और लेवांत) से आयातित कीमती धातुओं और अर्ध-कीमती पत्थरों से बनी विलासिता की वस्तुओं का एक विशाल खजाना प्राप्त हुआ है। यह प्रारंभिक कांस्य युग के दौरान उर के आर्थिक महत्व का प्रमाण है।

1948 ईस्वी में अमेरिकी संस्थानों के निर्देशन में ‘निप्पुर’ में उत्खनन से सैकड़ों महतवपूर्ण अभिलेख, मुद्राएं, मूर्तियां आदि प्राप्त हुए हैं। उत्खनन से प्राप्त  पुरातात्विक वस्तुओं, अभिलेखों और स्थापत्य अवशेषों से सुमेरियनो के सामाजिक एवं राजनीतिक संगठन, अर्थव्यवस्था, धर्म, दर्शन तथा साहित्य की जानकारी प्राप्त होती है। वस्तुतः इन पुरातात्विक अन्वेष्णों की सहायता से वर्तमान में सुमेरियनो के विषय में विश्व की किसी भी अन्य प्राचीन जाति से अधिक जानकारी प्राप्त है।

Babylonian-Empire.
Babylonian-Empire.during Kassaite Period

‘कस्साइटो’ के इतिहास से संबद्ध स्रोत 

मेसोपोटामिया के इतिहास में तृतीय राजवंश के नाम से प्रसिद्ध ‘कस्साइट’ वंश के शासन की जानकारी उनकी राजधानी ‘दर-कूरीगल्जू’ के उत्खनन से प्राप्त  पुरावशेषों, ‘ऐरेक’ से प्राप्त एक ‘जिगुरात’ की संरचना और अक्कादी साहित्य से होती है। अगम III के शासनकाल के कई शिलालेख, क़लात अल-बहरीन के दिलमुन नामक स्थल पर पाई गईं हैं। निप्पुर से ‘कस्साइट’ काल के प्रशासनिक, न्यायिक, दान पत्र और कूटनीतिक पत्रों आदि विभिन्न विषयों से संबंधित लगभग 12,000 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। 

कस्साइट शासक, ‘अग्रक प्रथम’ के शिलालेख से इस वंश के संस्थापक ‘गंदाश’ के द्वारा बेबीलोन और अन्य नगरों की विजय की जानकारी मिलती है। 

Pic Cylinder seal of king Kurigalzu II

Cylinder seal of King Kurigalzu II
Cylinder seal of king Kurigalzu II

‘कस्साइट इतिहास की जानकारी का एक अन्य मुख्य स्रोत प्रस्तर खंड (Stone stele) कुदुरू (Kudurru) है, ये पत्थर पर लिखित दस्तावेज़ था जिसका उपयोग, सीमा पत्थर के रूप में और ‘कस्साइट’ शासकों द्वारा सामंतो को दिए गए भूमि अनुदान के अभिलिखित साक्ष्य के रूप में किया जाता था। 

‘कस्साइटो’ के समकालीन  अन्य सभ्यताओं के शासकों से संबंध की जानकारी के स्रोत ‘मिस्र’ में ‘तेल-अल-अमर्ना’ तथा ‘एशिया माइनर’ में ‘बोघज़कोई’ से प्राप्त अभिलेख है, जिससे ज्ञात होता है कि ‘कस्साइटो’ के अंतरराष्ट्रीय संबंधों का प्रमुख उद्देश्य पश्चिमी एशिया में अपने व्यापारिक संबंधों को सुरक्षित रखना और ‘असीरिया’ के प्रसार को रोकना था।

कस्साइट शासकों जैसे – ‘कदाशमन खर्बे प्रथम’ और ‘बुर्नबरियाश’ ने मिस्र के अपने समकालीन शासकों क्रमश: ‘अमेनहोटेप तृतीय’ और ‘अखनाटन’ को पांच प्रशासनिक-पत्र लिखे थे, जो तत्कालीन राजनीति, प्रशासन, विदेश नीति, कूटनीतिक दांव पेंच और पारस्परिक विद्वेष सौहार्द्र की जानकारी के स्रोत है। यथा – एक पत्र में ‘बुर्नबरियाश’ ने, ‘अखनाटन’ द्वारा ‘असीरिया’ को सहायता देने पर शिकायत करते हुए लिखा – “क्या असीरियनो के बारे में जो मेरी प्रजा है, मैंने आपको नहीं लिखा था ? तब वह आपके राज्य में क्यों आए हैं ? अगर आप मेरे मित्र हैं तो असीरियनो की सहायता ना करें। आपकी सेवा में (उपहारस्वरूप) 3 मीना लेपिस और 5 रथो के लिए 5 युग्म अश्व भेज रहा हूं।” 

एक अन्य पत्र में ‘बुर्नबरियाश’, ‘अखनाटन’ से ‘मिस्र’ के क्षेत्र ‘केनान’ में लूटे गए बैबीलोनियन काफिलों के लिए क्षतिपूर्ति की मांग करता है तथा अन्य पत्र में बैबीलोनियन व्यापारियों के मारे जाने पर हरजाने की मांग करता है तथा ‘अखनाटन’ को चेतावनी देता है कि अगर उसने इन विद्रोही कबीलों का दमन नहीं किया तो ‘बैबीलोन’ और ‘मिस्र’ के व्यापारिक संबंध टूट जाएंगे। ‘बुर्नबरियाश’ ने एक पत्र में ‘अखनाटन’ को सलाह दी है कि “अगर राजाओं को स्वर्ण दिया जाता है तो भातृ-भाव और शांति में वृद्धि होती है तथा मैत्री स्थापित होती है। उसने शिकायत करते हुए कहा है, कि ‘मिस्र’ से स्वर्ण लाने वाले पदाधिकारियों ने ठोस स्वर्ण-मूर्ति रखकर उसे स्वर्ण-पत्र चढ़ी मूर्ति दी है। ‘बुर्नबरियाश’ के ये पत्र नूबिया के स्वर्ण-भंडार से धनी मिस्री शासकों, से स्वर्ण प्राप्ति की लालसा तथा तत्कालीन शासकों के मध्य उपहारस्वरूप मूल्यवान वस्तुओं के लेन-देन की जानकारी के स्रोत हैं। 

कस्साइटो द्वारा राजनीतिक संबंधों को दृढ़ बनाने के लिए विवाह-संधियों को किए जाने का ज्ञान ‘कदाशमन खर्बे प्रथम’ द्वारा ‘मिस्र’ के फराओ ‘अमेनहोटेप तृतीय’ को लिखे पत्र से होती है,उसने लिखा है “कारदुनियाश के राजा का पत्र ‘मिस्र’ के शासक के नाम, जो मेरा भाई है मेरी पुत्री जिसके साथ आप पाणिग्रहण करना चाहते थे, युवती हो गई है उसकी खबर लें।” ‘मिस्र’ के शासक द्वारा अपनी पुत्री का विवाह ‘कारदुनियाश’ के शासक से नहीं करने पर ‘कदाशमन खर्बे’ ने ‘अमेनहोटेप तृतीय’ को लिखा “क्यों ? तू राजा है और जो चाहे सो कर सकता है अगर तू मेरे लिए किसी (मिस्र की राजकुमारी का विवाह विदेशी शासकों से नहीं होने के कारण) को नहीं भेजेगा तो मैं भी तेरी तरह तेरे लिए कोई पत्नी नहीं भेजूंगा।”

 

असीरिया’ के इतिहास से संबद्ध स्रोत 

Pic : God Ashur (emblem)

God Ashur (Emblem)
God Ashur (emblem)

‘असीरियन साम्राज्य’ के इतिहास पर प्रकाश डालने वाले प्राचीन साहित्यिक स्रोतों में यहूदी बाइबिल और यूनानी इतिहास ग्रंथ प्रमुख है। ‘हेरोडोटस’ के ग्रंथ से ‘असीरिया’ के इतिहास की जानकारी मिलती है। प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के यूनानी इतिहासकार ‘डियोडोरस’ और हेलिनेस्टिक युग के ‘ऐबीडेनस’ नामक विद्वानों ने ‘असीरिया’ के इतिहास पर विस्तार से लिखा है परंतु उनका विवरण ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है। 

Pic Map of the Assyrian Empire 824 BCE to 671 BCE

Assyrian Empire 824 to 671 BCE
Assyrian Empire 824 to 671 BCE

‘असीरियन’ इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत असीरियन नगरों – अशुर, अरबेला, कल्ख या कुल्ली तथा निनवे (आधुनिक इरबिल) के उत्खनन से प्राप्त अभिलेख हैं, इनमें पश्चिमी एशिया में प्राप्त सर्वाधिक विश्वसनीय ऐतिहासिक अभिलेख ‘समकालीन इतिहास (द सिंक्रोंस हिस्ट्री)’ प्रसिद्ध है। जिसकी रचना संभवतः ‘असुरबनिपाल’ ने करवाई थी। इसके अतिरिक्त ब्रिटिश, फ्रेंच और ईराकी संग्रहालयो में सुरक्षित, असीरियन सम्राटो के वार्षिक अभियानों के विस्तृत विवरण से संबद्ध अभिलेख असीरियनो के राजनीतिक इतिहास की जानकारी के स्रोत हैं। ‘असुरबनिपाल’ ने अपने शासनकाल में राजकीय अभिलेखों के अतिरिक्त बेबीलोनियन और  असीरियन साहित्यिक अभिलेखों को संग्रहित कराया था। उसके पुस्तकालय में सुरक्षित 30,000 ग्रंथ तत्कालीन इतिहास की जानकारी के स्रोत हैं।

 असीरियन शासकों के इतिहास का तिथिक्रम ‘लिम्मू-सूची’ के द्वारा निश्चित किया जाता है। असीरियन राजधानी में प्रत्येक वर्ष के प्रथम दिन आयोजित धार्मिक उत्सव में प्रधान देवता का अभिनय करने का सम्मान पहले वर्ष ‘सम्राट’ को और आगामी वर्षों में पद या प्रतिष्ठा के आधार पर उसके पदाधिकारियों को मिलता था इस उत्सव की घोषणा ‘लिम्मू-पदाधिकारी’ के नाम से की जाती थी और उसके नाम पर वर्ष का नामकरण किया जाता था। उत्खनन में ‘अदद निरारी द्वितीय (911 ई.पू. – 890 ई.पू.)’ के  शासन से लेकर ‘असुरबनिपाल (669 – 626 ई.पू.)’ के कालखंड के प्रत्येक वर्ष की ‘लिम्म्मू- सूची’ प्राप्त हुई है। असीरियन सम्राट किसी घटना का विवरण देते समय उस घटना के वर्ष के ‘लिम्मू-अधिकारी’ का नाम भी देते थे। अत: ‘लिम्मू-सूची’ से अभिलेख में उल्लेखित ‘लिम्मू- अधिकारी’ की तिथि और नाम का मिलान कर उस घटना की तिथि निर्धारित की जा सकती है। ‘अशुर’ नगर के उत्खनन में एक ‘लिम्मू-सूची’ प्राप्त हुई है जिससे असीरियाई शासकों का 1300 ईसा पूर्व तक के तिथि क्रम का ज्ञान होता है। इसके अतिरिक्त असीरिया में 12वीं से 8वीं सदी ईसा पूर्व और 8वीं से 9वीं सदी ईसा पूर्व तक शासन करने वाले राजाओं की सूची खोरसाबाद के उत्खनन में प्राप्त  ‘सारगोन II’ के पुस्तकालय से प्राप्त हुई है।

 

Pic Map of the kingdom of Urartu at its greatest extent, in -743 BCE

Kingdom of Urartu in 743 BCE
Kingdom of Urartu at its greatest extent, in 743 BCE

4.’आर्मिनिया (उरर्तू)’ इतिहास से संबद्ध स्रोत–

‘आर्मिनिया (उरर्तू), आर्मिनिया पठार में वान झील के आसपास केंद्रित एक राज्य था। यह ऊपरी फरात नदी के पूर्वी तट से उर्मिया झील के पश्चिमी तट तक और उत्तरी इराक के पहाड़ों से लेकर लघु काकेशस (Caucasus Minor), पहाड़ों तक फैला हुआ था। इसके राजाओं के कीलाकार शिलालेख उरार्टियन भाषा में है जो हुरो-उरार्टियन भाषा परिवार से संबंधित है। 

‘आर्मीनिया’ या ‘उरर्तू राज्य’ असीरिया के उत्तर में था। इसे बाइबिल में ‘अरराट’ कहा गया है तथा असीरियन अभिलेखों में यहां के निवासियों को ‘खल्दी के पुत्र’ और ‘खल्दी-राज्य’ भी कहा गया है। ‘उरर्तू’ की सभ्यता विशेषत: ‘हित्ती’, ‘बैबीलोनियन’ और ‘असीरियन’ सभ्यताओं से प्रभावित थी।

‘उरर्तू’ जाति का सर्वप्रथम उल्लेख असीरियाई  शासक ‘शल्मनेसर प्रथम (13वीं शताब्दी ई.पू.)’ के अभिलेखों से होता है। लगभग 1274 ईसा पूर्व के इन असीरियन शिलालेखों में पहली बार उरुत्रि का उल्लेख नायरी राज्यों में से एक के रूप में किया गया है, जो तेरहवीं से ग्यारहवीं शताब्दी ईसा पूर्व में अर्मेनियाई पठार में छोटे राज्यों या जनजातियों का एक ढीला संघ था, जिस पर उसने विजय प्राप्त की थी।

 ‘उरर्तू’ जाति ने पश्चिमी एशिया की राजनीति में 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व से महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया था तथा यह असीरियन साम्राज्य के विस्तार में बाधक रहा। ‘असुरनासिरपाल द्वितीय’, ‘तिगलथपिलेसर तृतीय’ और ‘शल्मनेसर चतुर्थ’, उरर्तू के दमन में असफल रहे तथा संभवतः दजला के पश्चिमी प्रांतों पर ‘उरर्तू’ का अधिकार था। ‘अदद निरारी द्वितीय’ ने ‘उरर्तू’ के गढ़ ‘निसीबिन (हनीगलबात)’ पर अधिकार कर अंतिम रूप से उनकी सत्ता को दजला-फरात क्षेत्र में समाप्त कर दिया। 

 

मेसोपोटामिया की सभ्यता से संबद्ध दक्षिण की ‘सेमेटिक’ जातियां 

Pic Map of the approximate extent of the Akkadian Empire during the reign of Sargon’s grandson, Naram-Sin of Akkad

Akkadian Empire : Reign of Naram-Sin of Akkad
Akkadian Empire : Reign of Naram-Sin of Akkad

1.’अक्कादी सेमाइट’ के इतिहास से संबद्ध स्रोत 

‘मेसोपोटामिया’ की सभ्यता के इतिहास में ‘अक्काद’ को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। सर्वप्रथम ‘अक्कादी सेमाइटो’ ने ‘सारगन I’  के नेतृत्व में सुमेरियाई नगर राज्यों को जीतकर मेसोपोटामिया के साम्राज्य की रूपरेखा तैयार की, जिसकी जानकारी ‘सूसा’ के उत्खनन से प्राप्त प्रस्तर-मूर्ति पर उत्कीर्ण विवरण से होता है। ‘निनवेह’ से प्राप्त एक ‘शकुन-सूचक अभिलेख (ओमन टैबलेट)’ से ज्ञात होता है कि, ‘सारगन I’  ने पश्चिमी समुद्र (भूमध्यसागर) को पार कर दक्षि-पूर्वी द्वीप समूह पर 3 वर्ष तक शासन किया।सारगोन के शासनकाल की जानकारी के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक, 1890 के दशक में निप्पुर से प्राप्त प्राचीन बेबीलोनियन कालीन अभिलेख के दो खंड है। यह अभिलेख एननिल के मंदिर में सारगोन द्वारा बनाई गई मूर्ति के आसन पर अंकित है।“सारगोन, अक्काद का राजा,इनान्ना का पर्यवेक्षक/अधिदर्शक, किश का राजा, अनु द्वारा अभिषिक्त,भूमि का राजा, एनलिल का राज्यपाल /शासक,जिसने उरूक के नगर को परास्त कर उसकी दीवारों का ध्वंस कर गिरा दिया, ऊरुक के युद्ध में वह विजयी हुआ, उरुक के शासक लुगलजागेसी को युद्ध में गिरेबान से पकड़ कर एनलिल के द्वार तक लाया।” (सारगोन का अभिलेख, प्राचीन बेबोलियन प्रति, निप्पुर)

सुमेरियन भाषा की सारगोन के राज्यारोहण से जुड़ी किंवदती (असीरियाई किंवदती का प्राचीन संस्करण) में सारगोन के सत्ता में आने का एक पौराणिक विवरण का उल्लेख है। इनमें साधारण मूल से उसके सत्ता में आने और मेसोपोटामिया पर उसकी विजय का वर्णन किया गया था। इसके अतिरिक्त सारगोन के कई अभिलेखों में इसका उल्लेख है, यद्यपि इनमें से अधिकांश अभिलेखों की कालांतर (संभवत: नव असीरियन) में रचित प्रतिलिपियाँ ही ज्ञात हैं।  सुसा से सारगोन कालीन विजय स्तंभ (Victory Stele) के दो खंडित टुकड़े मिले हैं। 

Pic Sargon of Akkad and dignitariesSargon of Akkad and dignitaries

एक अन्य अभिलेख में उल्लेख है कि, ‘सारगन’ ने फारस की खाड़ी तक अपनी सत्ता स्थापित की तथा संभवत: ‘एलम’ और ‘बरक्षसी (पर्शिया)’ उसके आक्रमण से आक्रांत हुए थे। ‘अक्कादी सेमाइटो’ के अगले महान शासक ‘नरमसिन’ के विजय अभियान की जानकारी का स्रोत ‘नरमसिन’ द्वारा ‘लुल्लुबी’ के शासक ‘सतुनी’ पर विजय के उपलक्ष्य में बनाया गया ‘नरमासिन-  पाषाण’ नामक स्मारक है। अक्कादी युग की इस सर्वोत्तम कलाकृति पर उसके कृत्य उत्कीर्ण है। ऐसा ही एक पाषाण ‘दारबंदी-कवार’ के निकट स्थित ‘रोरीजोर’ के दक्षिणी भाग से प्राप्त हुआ है। ‘सूसा’ नगर की खुदाई से प्राप्त एक कीमती कलश से ज्ञात होता है कि ‘नरमसिन’ ने अरब के पूर्वी क्षेत्र, मागन, एलम को भी जीता था। ‘निनवेह’ के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित ‘तेल-ब्रेक’ में ईंटों से बने विशाल भवन के अवशेष मिले हैं। जिस पर ‘नरमसिन’ का नाम उत्कीर्ण है। सुमेरियनो का व्यापार इस समय ‘सिंधु-प्रदेश’ से होता था। इसका प्रमाण यहां उत्खनन में प्राप्त सैंधव मुद्राएं हैं। 

अक्कादी-सेमाइटो के पतन के बाद पुनः एक बार हुए सुमेरियन पुनरुत्थान के तहत ‘उर’ के तृतीय राजवंश का शासन ‘सुमेर-अक्काद’ में प्रारंभ हुआ। जिसके महानतम शासक ‘दुंगी’ या ‘शुल्मी’ की विधि-संहिता तत्कालीन कानूनों की जानकारी का स्रोत होने के साथ ही यह भी स्पष्ट करती है कि न्यायिक विधियों में ‘जैसे-को-तैसा’ सिद्धांत इस समय (लगभग 2450 240 240 ईसा पूर्व) पश्चिमी एशिया में प्रचलित था। असीरियाई शासक ‘असुर बेनीपाल’ के अभिलेख से ज्ञात होता है कि, ‘उर’ के तृतीय राजवंश का विनाश ‘एलम’ के शासक ‘कुदुर ननहुंदी’ ने किया था।

पश्चिमी-सेमाइट या अमोराइट

2.’पश्चिमसेमाइट’ या ‘अमोराइट’ के इतिहास से संबद्ध स्रोत

Amorite states
Amorite states


अक्कादियन और सुमेरियन ग्रंथों में अमरू शब्द का अर्थ अमोराइट्स, उनके प्रमुख देवता और अमोराइट साम्राज्य से है। अमोराइट्स का उल्लेख हिब्रू बाइबिल में जोशुआ के विजय के समय कनान के निवासियों के रूप में किया गया है।

अमोराइट्स,पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र (लेवांत) के निवासी, प्राचीन उत्तरपश्चिमी सेमिटिक-भाषी कांस्य युग के लोग थे। सर्वप्रथम 2500 ईसा पूर्व के सुमेरियन अभिलेखों में उनका उल्लेख मिलता है। उन्होंने कई प्रमुख नगर-राज्यों जैसे इसिन, लार्सा, मारी और एब्ला, की स्थापना की और बाद में बेबीलोन और प्राचीन बेबीलोनियन साम्राज्य की स्थापना की। 21वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 17वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक लेवांत,,मेसोपोटामिया और मिस्र के कुछ हिस्सों पर उन्होंने शासन किया था।

प्राचीन मेसोपोटामिया के इतिहास में सुमेरियनो को निर्णायक रूप से परास्त कर स्वतंत्र ‘पश्चिमी सेमाइट’ राजवंश की संस्थापक जाति ‘अमोराइट’ के बेबिलोनिया में स्थापित शासन की जानकारी के स्रोत ‘मारी’ नगर के उत्खनन से प्रचुर संख्या में प्राप्त मिट्टी की पाटीयों पर उत्कीर्ण अभिलेख हैं, जो – साम्राज्य विस्तार, प्रशासन, वाणिज्य व्यापार, कृषि आदि क्षेत्र में तत्कालीन गतिविधियों की जानकारी के स्रोत हैं। 

Pic Code of Hammurabi, king of Babylon; front, bas-relief.

Code of Hammurabi, king of Babylon : front Bas-Relief
Code of Hammurabi,King of Babylon’s ; front Bas-Relief

अमोराइट वंश के सबसे महान शासक ‘हम्मूराबी’ द्वारा निर्मित विधि-संहिता उत्खनन में अपनी संपूर्ण वर्णित विधियों के साथ अखंड रूप में प्राप्त हुई है। इस संहिता की प्रस्तावना में दी गई नगरों की सूची से ‘हम्मूराबी’ के साम्राज्य की सीमाओं का ज्ञान होता है। सर्वप्रथम इसमें ‘बेबीलोन’ के प्रमुख धार्मिक-केंद्र के रूप में ‘निप्पुर’ का, प्राचीनतम केंद्र के रूप में ‘एरिडू’ का तत्पश्चात साम्राज्य की राजधानी और ‘मर्दुक’ के निवास स्थान के रूप में ‘बैबिलोन’ का उल्लेख है। दक्षिण-पूर्वी ‘तोरस’ पहाड़ के तलहटी क्षेत्र से हम्मूराबी कालीन बैबीलोनियाई संस्कृति संबंध से संबद्ध एक ‘कब्र का पत्थर’ दक्षिण-पूर्वी ‘अनातोलिया’ में स्थित शहर ‘दियारबाकिर’ से प्राप्त हुआ है, जो इस क्षेत्र तक ‘हम्मूराबी’ के साम्राज्य विस्तार को प्रमाणित करता है। विधि-संहिता में वर्णित अन्य नगर यथा – सिप्पर, लारसा, एरेक, ईसिन, किश, कूथा, लगश, अक्काद, अशुर तथा निनवेह इत्यादि भी ‘हम्मूराबी’ के साम्राज्य के विस्तार और सीमाओं के प्रमाण हैं। 

‘हम्मूराबी’ की विधि-संहिता में व्यक्तिगत-संपत्ति, व्यापार और वाणिज्य, परिवार, श्रम, अपराध, मृत्युदंड देने संबंधी अपराध और मृत्युदंड की विधियों, दासों की अवस्था और देवदासियों से संबंधित विधान हैं, जो तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक गतिविधियों के साथ ही न्याय-प्रणाली की जानकारी के भी स्रोत है। 

 

3.’ऐरेमियन’ इतिहास से संबंधित स्रोत  

  • Pic :Map showing Kingdoms of the Levant c 830. The Kingdoms: Aram Damascus

    Map showing Kingdoms of the Levant c 830. The Kingdoms: Aram Damascus - Aquamarine
    Map showing Kingdoms of the Levant c 830. The Kingdoms: Aram Damascus

 

अरामी’ या ‘आर्मिनियन’, प्राचीन निकट पूर्व के सेमेटिक भाषी लोग थे जिनका निवास क्षेत्र ‘अराम’ के रूप में जाना जाता था। असीरियन अभिलेखों और हिब्रू बाइबिल में आर्मिनिया या “अराम” क्षेत्र का उल्लेख है और यहां के निवासियों को “अरामी” (आर्मिनियन) कहा गया है। इसमें वर्तमान सीरिया और उत्तरी इसराइल में कई छोटे राज्य शामिल थे। कुछ राज्यों का उल्लेख ओल्ड टेस्टामेंट में किया गया है तथा अराम-दमिश्क को अराम के रूप में संदर्भित किया जाता है। जो राजा हज़ाएल के शासनकाल के दौरान 9वीं शताब्दी ईसा पूर्व के उत्तरार्ध में विस्तार के चरम पर पहुंच गया था।

 

Pic : Aramean states during the 8th century BCE

Aramean states during the 8th century BCE
Aramean states during the 8th century BCE

 

प्रथम सहस्राब्दी ईसा पूर्व के दौरान इस क्षेत्र में दो मध्यम विस्तृत , अरामी साम्राज्य, अराम-दमिश्क और हमात, के साथ-साथ कई छोटे राज्य और स्वतंत्र नगर-राज्य विकसित हुए।
इनमें सबसे उल्लेखनीय थे बिट अदिनी (Bit Adini), बिट बहियानी (Bit Bahiani}, बिट हादिपे (Bit Hadipe,), अराम-रेहोब (Aram-Rehob), अराम-ज़ोबा(Aram-Zobah), बिट-ज़मानी(Bit-Zamani), बिट-हालुपे (Bit Hadipe)और अराम-माका (Aram-Ma’akah) साथ ही गम्बूलू (Gambulu),,लिटाऊ (Litau) और पुकुदु (Pubudu) के अरामी जनजातीय राज्य।

प्रारंभिक यहूदी परंपरा के अनुसार यह नाम बाइबिल के अराम से लिया गया है, जो ‘शेम’ का पुत्र था तथा  बाइबिल में इसे ‘नूह: का पौत्र कहा गया था  पूर्वी सेमिटिक भाषी राज्य, ‘एब्ला’ के एक शिलालेख में  ‘ए-रा-मू’ नाम अन्य भौगोलिक नामों की सूची में  है, और शब्द अरमी, इदलिब नामक स्थान के लिए एबलाइट शब्द है, इसका उल्लेख बार बार 2300 ईसा पूर्व के एब्ला अभिलेखों में हुआ है। 

अक्कद के नरम-सिन से संबंधित एक अभिलेख (2250 ईसा पूर्व) में उल्लेख है कि उसने डुबुल पर आधिपत्य स्थापित किया जो अरामी का नगर राज्य था। “अराम” क्षेत्र और यहां के निवासियों शुरुआती संदर्भ मारी (1900 ईसा पूर्व) और उगारिट ( (1300 ईसा पूर्व) के उत्खनन में प्राप्त अभिलेखों में हैं।  निप्पुर के गवर्नर के अभिलेखों में अराम और अरामी शब्द अक्सर मिलते हैं। इनमें अराम क्षेत्र का उल्लेख करते हुए बिट-अराम के किसानों के संदर्भ में उल्लेख  है।

यह क्षेत्र मध्य असीरियन साम्राज्य (1365-1050 ईसा पूर्व) के प्रभुत्व में था। आर्मीनियन शीघ्र ही असीरियन सत्ता को चुनौती देने लगे, असीरिया के तिगलाथ-पिलेसर I (1115-1077 ईसा पूर्व) ने अरामी क्षेत्र में कई सैन्य अभियान किए हालांकि असीरियन अभिलेखों से संकेत मिलता हैं कि असीरियन सैन्य अभियान अरामियों की शक्ति या प्रभुत्व का दमन करने में असफल रहे थे। अरामियों का पहला निश्चित संदर्भ तिग्लथ-पिलेसर I (1115-1077 ईसा पूर्व) के असीरियन शिलालेख में दिखाई देता है, जो “अहलमू-अरामियों” को अधीन करने का उल्लेख करता है। 911 ईसा पूर्व में नव-असीरियन साम्राज्य के अभिलेखों में अरामियों और असीरियन सेना के बीच युद्ध के कई विवरण हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार, इस समय में अरामियों ने असीरियाई नगर निनवेह पर कब्जा कर लिया था। 11वीं शताब्दी ईसा पूर्व में, असीरिया की सैन्य शक्ति में गिरावट आई, जो शायद उभरते हुए अरामियों के आक्रमणों के कारण हुई  थी। 1050-900 ईसा पूर्व की अवधि के दौरान अरामीयो की सत्ता  वर्तमान सीरिया के अधिकांश भाग पर  विस्तृत थी , संभवत: इस क्षेत्र को एबर-नारी और अरामिया कहा जाता था।

8वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उभरते नव-असीरियन साम्राज्य की अंतिम विजय के बाद और नव-बेबीलोनियन साम्राज्य (612-539 ईसा पूर्व) और अचमेनिद साम्राज्य (539-332 ईसा पूर्व) के बाद के क्रमिक शासन के दौरान, अराम क्षेत्र ने अपनी अधिकांश संप्रभुता खो दी

वस्तुत: ‘ऐरेमियनो’ ने ‘सीरिया’ में सुसंस्कृत और शक्तिशाली राज्य की स्थापना की थी। उनके व्यापारिक संबंध सभी पश्चिमी एशियाई देशों विशेषकर ‘असीरिया’ के साथ थे। ‘निनवेह’ के उत्खनन से बड़ी संख्या में प्राप्त ऐरेमियन कांस्य- भार और ऐरेमियन भाषा में उत्कीर्ण अभिलेखों से उनकी आर्थिक गतिविधियों और भाषाई-विकास की जानकारी मिलती है। ऐरेमियन व्यापारी अपने बिल, रसीद और हुंडी में इस लिपि और भाषा का प्रयोग करते थे। ‘असीरिया’ के शासकों के लिए ‘ऐरेमियनो’ के साथ व्यापारिक संबंध इतने महत्वपूर्ण थे कि, सरकारी कार्यालयों में ऐरेमियन ‘भाषा-लिपि’ जानने वाले लिपिकों की नियुक्ति होती थी। जो पेपाईरस पर ऐरेमियन ‘भाषा-लिपि’ में दस्तावेजों को लिखता था तथा दूसरा व्यक्ति मिट्टी की पाटी पर असीरियन भाषा में ‘कीलाक्षर लिपि’ में लिखता था। बेबीलोनिया के पश्चिम में कीलाक्षर लिपि की जगह ऐरेमियन लिपि ने ले ली थी। एशिया माइनर के ‘सारडिस’ नगर में इस भाषा में उत्कीर्ण अभिलेख प्राप्त हुआ है। 

 

4.’कैल्डियन’ इतिहास से संबद्ध स्रोत 

Pic : Pergamon Museum, Ishtar gate

Ishtar Gate
Ishtar Gate

‘असीरिया’ के आधिपत्य से मुक्ति के बाद बेबीलोन के इतिहास में सेमेटिक जाति की एक शाखा ‘कैल्डियन’ के नेतृत्व में शक्ति, वैभव और समृद्धि का एक संक्षिप्त परंतु गौरवपूर्ण अध्याय प्रारंभ होता है। जिसे ‘कैल्डियान पुनर्जागरण’ कहा जाता है। असीरियन साम्राज्य के युग में ‘कैल्डियनो’ ने संभवत: ‘ऐरेमियनो’ के साथ ‘बैबीलोन’ में प्रवेश किया था। 

नव-बेबीलोनियन साम्राज्य या दूसरा बेबीलोनियन साम्राज्य, जिसे ऐतिहासिक रूप से कैल्डियन साम्राज्य के रूप में जाना जाता है, मेसोपोटामिया के मूल निवासी राजाओं द्वारा शासित अंतिम शासन व्यवस्था थी। 626 ईसा पूर्व में बेबीलोन के राजा के रूप में ‘नबोपोलासर’ के राज्याभिषेक से शुरू होकर और 612 ईसा पूर्व में असीरियन साम्राज्य के पतन के बाद सुदृढ़ साम्राज्य के रूप में स्थापित हुआ। 

विभिन्न ऐतिहासिक कालखंडों में अर्थात ‘बैबिलोन’ के महानतम शासकों में एक ‘नेबूशद्रेज़र’ के अभिलेख प्रचुर संख्या में प्राप्त हुए हैं परंतु उनसे मंदिरों के जीर्णोद्धार अथवा निर्माण के विवरण के अतिरिक्त महत्वपूर्ण सूचना नहीं मिलती है। इतिहास पिता ‘हेरोडोटस’ के ग्रंथ में कैल्डिया- कालीन बैबीलोन के वैभव और सामाजिक जीवन की जानकारी मिलती है, इसके अनुसार – बैबीलोन का क्षेत्रफल 200 वर्ग मील था, उसके शेष विवरण की पुष्टि 1899 – 1917 ई. तक जर्मन विद्वान ‘कोल्डीवी’ द्वारा बैबीलोन में किए गए उत्खनन से हुई है। 

बाइबिल, कैल्डियन शासन की जानकारी का मुख्य स्रोत है। इसमें बेबीलोन और उसके महानतम राजा ‘नेबूशद्रेज्जर द्वितीय’ का घृणित चित्रण के कारण नव-बेबीलोन साम्राज्य आधुनिक सांस्कृतिक स्मृति में एक उल्लेखनीय स्थान रखता है। बाइबिल के विवरण में, 605 ईसा पूर्व में कारकेमिश के युद्ध, बेबीलोन के राजा ‘नेबूशद्रेज्जर द्वितीय’ द्वारा यरूशलेम की घेराबंदी और यहूदी राजा यहोयाकीम द्वारा बेबिलोन को कर देने, नेबूशद्रेज्जर द्वितीय के शासनकाल के चौथे वर्ष में, ‘यहोयाकीम’ द्वारा कर देने से इंकार और, इसके कारण सातवें वर्ष (598/597 ईसा पूर्व) में शहर की एक और घेराबंदी, यहोयाकीम की मृत्यु और उसके उत्तराधिकारी ‘यकोन्याह’, उसके दरबारी और कई अन्य लोगों के बेबीलोनिया में कैदी के रूप में निर्वासन का उल्लेख मिलता है। यकोन्याह के उत्तराधिकारी सिदकिय्याह और अन्य को तब निर्वासित किया गया जब ‘नेबूशद्रेज्जर द्वितीय’ ने अपने 18वें वर्ष (587 ईसा पूर्व) में यरूशलेम को नष्ट कर सोलोमन के मंदिर का विनाश किया और 23वें वर्ष (582 ईसा पूर्व) में यहूदियों का निर्वासन हुआ।  हालाँकि, कई बाइबिल विवरणों में निर्वासन की तिथियाँ, संख्याएँ और निर्वासितों की संख्या अलग-अलग हैं।

568 ईसा पूर्व में  ‘नेबूशद्रेज्जर द्वितीय’ द्वारा मिस्र के विरुद्ध सैन्य अभियान की जानकारी एक खंडित बेबीलोन शिलालेख, जिसे आधुनिक पदनाम ‘BM 33041’ दिया गया है, में “मिस्र” शब्द के साथ-साथ संभवतःमिस्र के फराओ “अमासिस” (अमासिस II, शासन काल 570-526 ईसा पूर्व) नाम का तथा अमासिस का एक खंडित स्तंभ लेख, बेबीलोनियों द्वारा संयुक्त नौसैनिक और भूमि हमले का अस्पष्ट विवरण है। 

कैल्डियन कालीन बेबीलोन का बार-बार, बाईबल (हिब्रू और ईसाई) में उल्लेख, शाब्दिक रूप से (ऐतिहासिक घटनाओं के संदर्भ में) और रूपकात्मक रूप से (अन्य वस्तुओं विशेषकर बुराई का प्रतीक) के रूप में है। नव-बेबीलोन साम्राज्य का उल्लेख कई भविष्यवाणियों और यरूशलेम के विनाश तथा उसके बाद बेबीलोन में यहुदियों के बंदी या निर्वासन का वर्णन किया गया है। यहूदी परंपरा में यौन शोषण सहित अन्य अत्याचारों के लिए नव बेबीलोन (कैल्डियन) को घृणित कहा गया है। 

ईसाई धर्म में, बेबीलोन सांसारिकता और बुराई का प्रतीक है। बाईबल की भविष्यवाणियों में प्रतीकात्मक रूप से बेबीलोन के राजाओं को लूसिफ़र (बुराई का प्रतीक कहा गया हैं। इन कथाओं का मुख्य शासक नेबूशद्रेज्जर द्वितीय है।

ईसाई बाइबिल की पुस्तक ‘Book of Revelation’’ में कई शताब्दियों के बाद बेबीलोन (जब यह एक प्रमुख राजनीतिक केंद्र नहीं था) को “बेबीलोन की वेश्या” के रूप में दर्शाया गया है, जो सात सिर और दस सींग वाले लाल रंग के जानवर पर सवार है और धार्मिक एवं सदाचारी लोगों के खून से रंगे है। 

यद्यपि शिलालेखों में दक्षिणी मेसोपोटामिया के कई शहरों में शाही महलों की उपस्थिति का उल्लेख है, लेकिन उत्खनन से वर्तमान में केवल बेबीलोन में ही शाही महल पाए गए है। जिसे राजा नबोपोलासर और नेबूशद्रेज्जर द्वितीय ने बनवाया था।हालाँकि नियो-बेबीलोनियन काल के शिलालेखों में कई प्रदर्शन मार्गों का वर्णन किया गया है, लेकिन अभी तक उत्खनन में प्राप्त की गई एकमात्र ऐसा मार्ग, बेबीलोन का मुख्य प्रदर्शन मार्ग है। यह सड़क दक्षिण महल की पूर्वी दीवारों के साथ-साथ चलती थी और उत्तरी महल से गुज़रते हुए  इश्तर द्वार पर आंतरिक शहर की दीवारों से बाहर निकलती थी। दक्षिण से यह मार्ग, पश्चिम की ओर मुड़ती थी और नबोपोलासर या  नेबूशद्रेज्जर द्वितीय के शासनकाल में निर्मित एक पुल के ऊपर से गुज़रती थी। इस मार्ग की कुछ ईंटों के नीचे की ओर नव-असीरियन राजा सन्हेरीब का नाम अंकित है, संभावित है कि मार्ग का निर्माण उसके शासनकाल के दौरान ही शुरू हो गया था, लेकिन ईंटों के ऊपरी हिस्से पर नेबूशद्रेज्जर द्वितीय का नाम अंकित है, जिससे पता चलता है कि मार्ग का निर्माण उसके शासनकाल के दौरान ही पूरा हो गया था।

‘नेबूशर्देज़र’ ने ‘फरात’ नदी के दोनों तटों को मिलाने के लिए एक पुल बनवाया था, जिसके अवशेष उत्खनन में प्राप्त हुए हैं। इसके साथ ही उसके द्वारा निर्मित विशाल ‘जिगुरात’ या बैबिलोन की मीनार तथा स्तंभों और दीवार पर बने उपवन या ‘झूलता हुआ बाग  (जिसकी गणना विश्व के सात आश्चर्यों में की जाती है)’ बनाने का उल्लेख हैं।  स्रोतों से पता चलता है कि नव-बेबीलोन साम्राज्य की न्याय प्रणाली बहुत अंशों में एक हज़ार साल पुराने प्रथम बेबीलोन साम्राज्य के समान थी।

नव-बेबीलोन के इतिहास की जानकारी से संबंधित सबसे प्रचुर और प्रमुख स्रोत न्याय प्रणाली से संबद्ध पत्र और मुकदमों वाली अभिलेखीय पट्टिकाएँ हैं। ये पट्टिकाएँ विभिन्न कानूनी विवादों और अपराधों, जैसे गबन, संपत्ति पर विवाद, चोरी, पारिवारिक मामले, ऋण और विरासत का दस्तावेज हैं और इनसे  नव-बेबीलोनियन साम्राज्य के निवासियों के दैनिक जीवन के विषय में विशद जानकारी प्रदान करती हैं। संभवत: अपराधों और विवादों में दोषी पक्ष को मुआवजे के रूप में चांदी के रूप में एक निर्दिष्ट राशि का भुगतान करना पड़ता था। व्यभिचार और राजद्रोह जैसे अपराधों के लिए स्पष्ट रूप से मृत्यु दंड का प्रावधान था, लेकिन मृत्यु दंड के वास्तव में लागू होने के बहुत कम सबूत मौजूद है।

नव-बेबीलोनियन स्रोतों से व्यापारिक साझेदारी या हर्रानू प्रथा की जानकारी मिलती है। इसमें एक वरिष्ठ वित्त पोषण भागीदार और एक कनिष्ठ कार्यकारी सभी व्यापारिक कार्य संपादित करने वाला भागीदार शामिल होता था, ऐसे व्यावसायिक उपक्रमों से होने वाले लाभ को दोनों भागीदारों के बीच बराबर-बराबर बांटा जाता था। स्रोतों से पता चलता है कि कुछ कनिष्ठ साझेदार आगे बढ़ कर अंततः नई हर्रानू व्यवस्थाओं में वरिष्ठ साझेदार बन जाते थे।‘कैल्डियन’ खगोल विद्या में हेलेनेस्टिक युग के पूर्व योग्यतम खगोल वेत्ता थे। संभवतः ‘न्यू-टेस्टामेंट’ में पूर्व के जिन विद्वान पुरुषों का उल्लेख हुआ है, वे ‘कैल्डियन’ ज्योतिषी थे।

 

यहूदी इतिहास से संबद्ध स्रोत 

Pic : Kingdoms of Israel (blue) and Judah (orange), ancient Southern Levant borders and ancient cities such as Urmomium and Jerash.  the region in the 9th century BCE.,

Kingdoms of ancient Israel and Judah
Kingdoms of ancient Israel and Judah

यहूदी, मूलत: सेमेटिक जाति के थे, यहूदियों के प्रारंभिक इतिहास की जानकारी का प्रमुख स्रोत हिब्रू बाईबल या तनाख (Old Testament)। है और इसकी प्रथम पांच पुस्तकें पेंटातुएच ऐतिहासिक महत्व रखती हैं।

बाईबल की प्रथम पुस्तक जेनेसिज के अनुसार यहूदियों के आदि पूर्वज, अब्राहम संभवत: 2000 ई. पू. मे सुमेर के उर नगर (Ur of the Chaldees) में निवास करते थे तथा जेनेसिज के अनुसार, ईश्वर द्वारा उनके वंशजों को नए स्थान पर बसने के आदेश पर, अब्राहम अपने परिवार और कबीले के साथियों के साथ हरान से होते हुए केनान (फिलिस्तीन) चले गए। अत: यहूदी, फिलिस्तीन को अपने लिए “ईश्वर प्रदत्त देश (Promised Land) मानते हैं। जेनेसिज में सर्वप्रथम अब्राहम के पौत्र जैकब के लिए और तत्पश्चात यहूदियों के 12 कबीलों ( जो स्वयं को जैकब के 12 पुत्रों का वंशज मानते थे) के लिए इजरायल शब्द प्रयुक्त हुआ है। 

यहूदी इतिहास में, यहूदियों द्वारा स्थान परिवर्तन या परिभ्रमण (Migration) किए जाने और उन्हें बार-बार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनकी मूल मातृभूमि, इज़राइल की भूमि और अन्य निवास स्थानों से निष्कासित किए जाने की घटनाएं महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। विस्थापित जीवन के अनुभव ने उन्हें अपनी यहूदी पहचान और धार्मिक परम्पराओं को की निरंतरता के प्रति बहुत सचेत बना दिया। अत:यह यहूदी इतिहास का एक प्रमुख तत्व है। 

हिब्रू बाईबल में, जैकब के समय केनान में भीषण अकाल के कारण यहूदियों के मिस्र में नील नदी के डेल्टा प्रदेश में बसने का विवरण है। इस काल में ही मिस्र पर हिक्सास जाति का आक्रमण हुआ था संभवत: यहुदी जाति का एक भाग मिस्र चला गया था। त्यूरिन पत्रों की राजसूची मे हिक्सास नरेशों में एक नाम ‘जैकब-हेर’, भी है। कुछ इतिहासकार इसे अब्राहम का पौत्र जैकब मानते हैं।

पेंटातुएच की दूसरी पुस्तक, एक्सोडस में यहूदियों के संभवत: 430 वर्षो तक मिस्र में दासता का दंश झेलने और मुक्तिदाता मूसा के नेतृत्व में फिलस्तीन वापसी, एकमात्र देवता या:वेह की प्रतिष्ठा, दस ईश्वरीय आदेशों के रूप में एक नया जीवन दर्शन का वर्णन है। हालाकि मिस्र के ऐतिहासिक स्रोतों में इन घटनाओं का उल्लेख नहीं है लेकिन यह ऐतिहासिक घटना प्रतीत होती है क्योंकि मिस्र के फराओ रेमेसिस द्वितीय (लगभाग 1300-1234 ई. पू.)के एक अभिलेख में उल्लेख है कि उसने कुछ सेमेटिक कबीलो को (जो अपनी उदर पूर्ति के लिए मिश्र आ गए थे) नील नदी के मुहाने वाले प्रदेश में बसने की अनुमति दी थी। कुछ विद्वान रेमेसिस द्वितीय को एक्सोडस का फराओ मानते हैं और कुछ इजरायल पाषाण के मेनेप्टाह (1234 से 1225 ईसा पूर्व) को।

पेंटातुएच की तीसरी और पांचवी पुस्तकें ड्यूटेरोनोमी और लेविटिकस कानून और धार्मिक नियमो के तथा चौथी पुस्तक नंबर्स यहूदियों के केनान पर आक्रमण कर अपने ईश्वर प्रदत्त देश पर आधिपत्य की जानकारी का स्रोत है। Book of Judges, हिब्रू बाइबिल की सातवीं पुस्तक है। इसमें इस्राएल के विभिन्न कबीलों के से आए क्रमिक व्यक्तियों का वर्णन है, जिन्हें परमेश्वर ने लोगों को उनके शत्रुओं से बचाने तथा न्याय स्थापित करने के लिए चुना था। Book of Proverbs (मुहावरों की पुस्तक) में यहूदियों के सांसारिक ज्ञान का सार है तथा Book of Job यहुदी जीवन दर्शन की उत्कृष्ट कृति है।

हिब्रू बाईबल के विवरण से अनुमानित है कि मिस्र से वापसी के पांच वर्षो के बाद इस्राएली, केनान को जोशुआ (Joshua) के नेतृत्व में जीतने में सफल रहे तथा अगले 470 वर्षों तक इस्राएलियों का नेतृत्व न्यायाधीशों – ओथनिएल (Othniel), एहुद (Ehud), देबोराह (Deborah) आदि, द्वारा किया गया। इसके बाद, राजतंत्र के काल में इस्राएल के संयुक्त राज्य पर पहले सोल,और फिर क्रमश: डेविड और सोलोमन ने शासन किया। सोलोमन ने यरूशलेम में पहला मंदिर बनवाया था। उसकी मृत्यु के बाद उसके उतराधिकारी रेहोबाम के समय उत्तरी कबीलों के विद्रोह के बाद यहूदी संयुक्त राज्य दो भागों में बांट गया 

1.उत्तरी राज्य, इस्राएल जिसकी राजधानी सामरिया थी 

2.जूडा का दक्षिणी राज्य जिसकी राजधानी यरूशलेम थी।

लगभग दो शताब्दियों तक इनका स्वतंत्र अस्तित्व बना रहा परंतु इन्हें असीरिया के आक्रमण का निरंतर सामना और कर देना पड़ा।

असीरियन शासकों की नीति विजित लोगों को निर्वासित और विस्थापित करने की थी, अनुमानित है कि बंदी आबादी में से लगभग 4,500,000 लोगों को असीरियन शासन की तीन शताब्दियों में इस विस्थापन का सामना करना पड़ा। इज़राइल के संबंध में, तिग्लथ-पिलसर III के  अभिलेखों में वर्णित है कि उसने लोअर गैलिली (उत्तरी इज़राइल का एक क्षेत्र) की 80% आबादी, लगभग 13,520 लोगों को निर्वासित किया। लगभग 27,000 इस्राएली, जो तत्कालीन इस्राएल राज्य की जनसंख्या का 20 से 25% थे, को सारगोन द्वितीय द्वारा असीरियन साम्राज्य के ऊपरी मेसोपोटामिया प्रांतों में निर्वासित किया गया था, और उनकी जगह अन्य निर्वासित आबादी को बसाया गया। 

जुड़ा राज्य के 10,000 से 80,000 लोगों को इसी तरह नव बेबीलोनियन साम्राज्य के शासक ‘नेबूशद्रेज्जर द्वितीय’ द्वारा निर्वासित किया गया था।‘ बाइबिल के विवरण में, 605 ईसा पूर्व में कारकेमिश के युद्ध, बेबीलोन के राजा ‘नेबूशद्रेज्जर द्वितीय’ द्वारा यरूशलेम की घेराबंदी और यहूदी राजा यहोयाकीम द्वारा बेबिलोन को कर देने, नेबूशद्रेज्जर द्वितीय के शासनकाल के चौथे वर्ष में, ‘यहोयाकीम’ द्वारा कर देने से इंकार और, इसके कारण सातवें वर्ष (598/597 ईसा पूर्व) में शहर की एक और घेराबंदी, यहोयाकीम की मृत्यु और उसके उत्तराधिकारी ‘यकोन्याह’, उसके दरबारी और कई अन्य लोगों के बेबीलोनिया में कैदी के रूप में निर्वासन का उल्लेख मिलता है।

नेबूशद्रेज्जर द्वितीय’ ने अपने 18वें वर्ष (587 ईसा पूर्व) में यरूशलेम को नष्ट कर सोलोमन के मंदिर का विनाश किया और 23वें वर्ष (582 ईसा पूर्व) में यहूदियों का निर्वासन हुआ।  हालाँकि, कई बाइबिल विवरणों में निर्वासन की तिथियाँ, संख्याएँ और निर्वासितों की संख्या अलग-अलग हैं।

पुरातत्विक दृष्टि से इजरायल शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम मिस्र में थीबिज से प्राप्त फराओ मेनेप्टाह (लगभग 1230 ई. पू) के प्रस्तर अभिलेख इजरायल पाषाण (Israel Stele या Merneptah Stele ) में हुआ है। इस अभिलेख में मिस्र के फराओ द्वारा कुछ शहरों को जीतने के प्रसंग में इजिराइल ( को नष्ट करने का उल्लेख है। अधिकांश विद्वान इस बात पर सहमत हैं कि मेनेप्टाह का प्रस्तर अभिलेख में इस्राएलियों का संदर्भ है, जो केनान के केंद्रीय उच्चभूमि में बसा एक समूह था और पुरातात्विक साक्ष्य दर्शाते हैं कि 12वीं और 10वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच यहां सैकड़ों छोटी बस्तियाँ बसी हुई थीं। इस्राएलियों ने धार्मिक प्रथाओं, अंतर्जातीय विवाह पर प्रतिबंध और वंशावली और पारिवारिक इतिहास पर बल सहित विभिन्न विशिष्ट विशेषताओं के माध्यम से अपनी विशिष्ट पहचान बनाई थी ।

 

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