मिस्र के इतिहास के अध्ययन के स्रोत

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प्राचीन विश्व की नदी घाटी सभ्यताओ  में से एक “मिस्र की सभ्यता”, नील नदी की घाटी में उदित,पल्लवित और संवर्धित हुई थी। मिस्र अफ्रीका महाद्वीप के उत्तर पश्चिम में नील नदी द्वारा सिंचित एक छोटा देश है।मिस्र मूलत: लीबियन रेगिस्तान का एक भाग है, जिसके मध्यवर्ती भाग में नील नदी द्वारा सिंचित एक उर्वर भू पट्टी है, जो मिस्र के संपूर्ण क्षेत्रफल का 3.5 हिस्सा मात्र है। मिस्र उत्तर में भूमध्य सागर, पश्चिम में “लीबियन रेगिस्तान”, पूर्व में “लाल सागर” और दक्षिण में नील के नदी के महाप्रपातों से घिरा है। इन प्राकृतिक सीमाओं से सुरक्षित रहने से 340 ई. पू. के पहले प्राग वंशीय युग में उदित, मिस्र की सभ्यता 1765 ईसा पूर्व में  “हिक्सास जाति” के आक्रमण तक विदेशी आक्रांताओ से सुरक्षित रही तथा पुनः 1580 ई. पू. में “अहमोज प्रथम”प् द्वारा हिक्सास सत्ता का अंत कर 18 वें वंश के  शासन की स्थापना के बाद (940 – 712)) ई. पू. तक लीबियन तथा (670 –  663) ई.पू. तक असीरियनो के मिश्र पर अल्पकालीन अधिकार के अतिरिक्त मिस्र की भूमि अनवरत युद्धों से बची रही। 525  ई.पू. में ईरान तथा 332 ई. पू.  में यूनानी आधिपत्य के पहले मिश्र की धरती पर स्थानीय राजवंशों ने हीं शासन किया।

 

अंततः 30 ई. पू. में मिस्र के रोमन साम्राज्य का अंग बन जाने से मिस्र की सभ्यता संस्कृति का मूल विकास समाप्त हो गया।

 

वस्तुत: मिस्र में काफी अंशों में सभ्यता संस्कृति का विकास निर्बाध रूप से हुआ। साथ ही मिस्र की जलवायु में नमी की कमी तथा मरुस्थलीय शुष्क रेतीली भूमि भी पुरावशेषों को संरक्षित रहने में सहायक थी। अत्एव मिस्र की सभ्यता के अध्ययन के लिए पुरातात्विक स्रोत अन्य सभ्यताओं की तुलना में प्रचुर और संरक्षित हैं। प्राचीन मिस्र के इतिहास के अध्ययन के लिए मुख्यतः तीन स्रोत हैं – साहित्यिक स्रोत, पुरातात्विक स्रोत और आधुनिक विद्या एवं विधियां।

 

साहित्यिक साक्ष्य 

 

Herodotus
Manetho

 

18 वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों तक मिस्र के इतिहास के अध्ययन के लिए साहित्य ग्रंथों एवं धार्मिक ग्रंथों यथा ओल्ड टेस्टामेंट, यूनानी लेखक हेरोडोटस की कृति रोमन लेखक डायडोरस के ग्रंथ तथा प्राचीन मिस्र में पुजारी मनेथो  के ग्रंथ पर निर्भर रहना पड़ता था धार्मिक ग्रंथ होने के कारण हिब्रू बाइबल(Old Testament) से मिस्र के इतिहास की सही जानकारी नहीं मिल पाती थी। साथ ही, यद्यपि हेरोडोटस और डायडोरस ने अपने ग्रंथों की रचना की थी, उस समय मिस्र की प्राचीन परंपराएं पूर्णतया विलुप्त नहीं हुई थी तथा मिस्र की प्राचीन भाषा भी प्रचलित थी तथापि ये लेखक मिस्र की भाषा से अनभिज्ञ थे। अतः वे मिस्र की सांस्कृतिक परंपराओं और अवशेषों पर उत्कीर्ण  चित्राक्षर लिपि का अर्थ समझने में असमर्थ थे । फलत: यूनानी एवं रोमन लेखकों के ग्रंथों में सत्य के साथ कल्पना का मिश्रण है, जिसे पुरातात्विक साक्ष्यों एवं आधुनिक शोध विधियों की सहायता के बिना पृथक् करना असंभव है।

 

मिस्र के इतिहास के अध्ययन में सहायक साहित्यिक स्रोतों में मनेथो की कृति “Aegyptiaca (History of Egypt)”  सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। मिस्र पर यूनानी शासन के दौरान तीसरी शताब्दी ई. पू. में “टॉलेमी प्रथम फिलाडेलफस (Ptolemy I Philadelphos)”  ने अपने शासनकाल (305 285) ई. पू. में “सेबेनाईटास” निवासी और पुजारी मनेथो को प्राचीन मिश्री अभिलेखों को एकत्र कर व्यवस्थित और अनुदित करने का निर्देश दिया था। मनेथो की “Ageyptiaca(इजिप्टिका)”के अंश वर्तमान में जूलियस अफ्रीकेनस, यूसीबियस तथा   जोसेफस की कृतियों में उद्धरण के रूप में प्राप्त हैं। लेकिन इतने लंबे समय अंतराल में प्रतिलिपिकों की असावधानी से इन विवरणों में सत्यांश कम है।

 

मनेथो ने अपनी रचना में उस समय तक ज्ञात प्राचीन मिस्र के राजाओं को सूचीबद्ध करके उन्हें 30 वंशों में विभाजित किया था। मनेथो की कृति में यह सूचीबद्धता अशुद्ध है, जैसे उसने उन राजाओं को एक ही वंश में  परिगणित कर दिया है, जो वास्तव में विभिन्न वंशों के थे तथा कुछ राजाओं के शासनकाल संबंधी उल्लेख में तिथि क्रम की दृष्टि से अशुद्धता है। इन त्रुटियों के बावजूद आधुनिक अनुसंधानो से स्पष्ट हुआ है, कि मनेथो की कृति ऐतिहासिक अध्ययन की दृष्टि से उपयोगी है। उसके द्वारा प्राचीन मिस्र के राजाओं का किया गया वंश विभाजन सत्य के काफी निकट है अत: मिस्री विद्या विशारदो ने इसे मान्यता दी है।

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