बाणभट्ट : इतिहास-पुराण के प्रतिनिधि

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‘बाणभट्ट’ , प्राचीन भारत में विकसित ‘इतिहास-पुराण’ परंपरा के प्रतिनिधि लेखक थे। महाकवि ‘बाण’ का आविर्भाव सातवीं सदी के आरंभ में हुआ था। वह ‘भार्गव’ वंशी ब्राह्मण थे। प्राचीन ग्रंथों में इस तथ्य का बारंबार उल्लेख हुआ है कि ‘इतिहास-पुराण’ परंपरा के वाहक ‘भार्गव’ कुल के होते थे। अत: इतिहास लेखन उनके वंश की परंपरा थी।

‘बाण’ , पुष्यभूति सम्राट ‘हर्षवर्धन’ के राजकीय इतिहास लेखक और कवि थे। ‘बाणभट्ट’ ने ‘हर्षचरित’ , ‘कादंबरी’, ‘चंडीशतक’ तथा ‘पार्वती-परिणय’ नामक ग्रंथों की रचना की, लेकिन उन्हें एक इतिहासकार के रूप में स्थापित करने वाली रचना ‘हर्षचरित’ है। यद्यपि ‘हर्षचरित’ पूर्णरूपेण इतिहास नहीं बल्कि एक आख्यायिका है। यह प्रथम श्रेणी का इतिहास है, जिसमें ऐतिहासिक तथ्यों का प्रयोग महाकाव्य, नाटक आदि के रूप में किए जाने से ऐतिहासिक तथ्य का स्थान साहित्य ले लेता है। ‘कौटिल्य’  ने, ‘आख्यायिका’ को ‘पुराण’ एवं ‘इतिवृतों’ की श्रेणी में रखकर इतिहास का ही रूप बताया है।

हर्षचरित का कथानक

‘हर्षचरित’ 8 उच्छवासों में विभाजित है। जिसमें से पहले ढाई उच्छवास ‘बाण’ की आत्मकथा के रूप में है। तदुपरांत ‘स्थानेश्वर’ या ‘थानेश्वर’  के ‘पुष्यभूति वंश’ , जिसमें ‘हर्ष’ के पिता ‘प्रभाकरवर्धन’ का जन्म हुआ था, का वर्णन है। ‘बाण’ ने ‘प्रभाकरवर्धन’ की पुत्री ‘राज्यश्री’ और कन्नौजाधिपति ‘ग्रहवर्मा’ मौखरी के विवाह का वर्णन किया है। अपने जेष्ठ पुत्र ‘राज्यवर्धन’ को हूणों का दमन करने के लिए भेज कर ‘प्रभाकरवर्धन’ ज्वर-ग्रस्त हो गए, ‘बाण’ ने उनके रोग, मृत्यु, दाह-संस्कार एवं महारानी ‘यशोमती’ के आत्मदाह का वर्णन किया है। उसके बाद ‘गौड़’ एवं ‘मालव’ सेनाओं के ‘कन्नौज’ पर आक्रमण तथा ‘ग्रहवर्मा’ की हत्या की जानकारी ‘बाण’ ने दी है। यह सुनकर ‘राज्यवर्धन’ के ‘कन्नौज’ की ओर बढ़ने और शत्रुओं द्वारा हथियार डालकर चालाकी से ‘राज्यवर्धन’ को शत्रु शिविर में आमंत्रित कर उनकी निर्मम हत्या का विवरण दिया है, ‘हर्ष’ ने भाई और बहनोई की हत्या का बदला लेने की प्रतिज्ञा की तथा कन्नौज की ओर प्रस्थान किया। ‘हर्ष’ की प्रयाण करती सेना के समक्ष शत्रु भाग खड़े हुए, यह सुनकर ‘हर्ष’ के विस्मय का अंत नहीं रहा कि ‘राज्यश्री’ कैद से छूटकर विंध्यवन चली गई है, बहुत परिश्रम युक्त खोज के बाद ‘हर्ष’ ने आत्मदाह करने को तत्पर ‘राज्यश्री’ को ‘दिवाकरमित्र’ के  गुरुकुल के पास पाया और गंगा के तट पर अपने शिविर में ले आया यह ग्रंथ यहीं पर समाप्त हो जाता है।

बाणभट्ट : ऐतिहासिक अवधारणा

आधुनिक इतिहासकारों ने इतिहासकार के रूप में ‘बाणभट्ट’ की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाया है यू. एन. घोषाल, आर. के. मुखर्जी, आर. एस. त्रिपाठी जैसे इतिहास विदो ने ‘हर्षचरित’ को अपूर्ण पुस्तक माना है, तथा ‘शंकर गोयल’ ने ‘हर्षवर्धन’ के राज्यारोहण को वैधता प्रदान करना ‘हर्षचरित’ की रचना का प्रयोजन माना है।

अत: एक इतिहासकार के रूप में ‘बाणभट्ट’ और ऐतिहासिक कृति के रूप में ‘हर्षचरित’ के मूल्यांकन के कई आयाम हो सकते हैं –

A). ‘बाणभट्ट’ की इतिहास संबंधी अवधारणा क्या है,

B). उनकी रचना का उद्देश्य क्या है,

C). उन्होंने तथ्यों का चयन किस आधार पर किया,

D). तथ्यों के प्रस्तुतिकरण की शैली क्या थी,

E). उन्होंने अपनी रचनाओं से किस प्रकार का लाभ प्राप्त करने की कोशिश की।

वस्तुतः इन सभी बिंदुओं पर विचारोपरांत ही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है –

‘हर्षचरित’ में ‘बाणभट्ट’ स्वयं को ‘भार्गव वंशीय’ ब्राह्मण कहते हैं और अपनी वंशावली ‘दधीचि ऋषि’ के साथ जोड़ते हैं। अपनी वंशावली के विषय में बाण लिखते हैं – ‘च्यवन ब्रह्मर्षि’ एवं क्षत्रिय राजकुमारी से उत्पन्न ‘दधीचि’ और ‘दधीचि’ एवं ‘सरस्वती’ से उत्पन्न पुत्र ‘सारस्वत’ जिसने अपने चचेरे भाई ‘वत्स’ के लिए ‘प्रतिकूट’ नामक गांव ‘च्यवन-आश्रम’ (सोनतट) सीमा में बसाया था।ब्राह्मण अधिवास के नाम से ख्यात इस गांव में ”बाणभट्ट’ का जन्म हुआ था l बाण के जन्मस्थल की पहचान आधुनिक बिहार के औरंगाबाद जिले में बारूण से होती है। ‘वत्स’ से ‘वात्सायन’ वंश की नींव पड़ी तदनुसार बाण, भार्गव पंक्ति का वात्सायन ब्राह्मण था।

‘बाणभट्’ ने इस बात पर बल दिया है कि उसके कुल के लोग एवं वह स्वयं धर्म शास्त्रों के ज्ञाता और इतिहास पुराण परंपरा के वाहक थे। अपने कुल की विशद चर्चा और अब इतिहास लेखन को अपने वंश परंपरा सिद्ध करने के प्रयासों द्वारा बाणभट्ट, हर्षचरित को ऐतिहासिक ग्रंथ तथा इसकी रचना को औचित्य पूर्ण सिद्ध करना चाहते थे। कुछ विद्वान बाणभट्ट के वंशवर्णन को इस आधार पर गलत मानते हैं कि, ‘ऋग्वेद’ में वर्णित मान्यता के अनुसार ‘दधीचि’, ‘अथर्वन’ के पुत्र थे। बाणभट्ट के वंश से संबद्ध  5 प्रवर थे – ‘भार्गव’, ‘च्यवन’,’सेवन’, ‘आपनुवान’, ‘औंद’ तथा ‘जामदग्नय’। ‘हर्षचरित’ में ‘बाण’ ने अपने पूर्वजों का क्रम यह बताया है — ‘कुबेर’,’पाशुपत’, ‘अर्थपति’, ‘चित्रभानु’ एवं ‘बाण’। कादंबरी में बाणभट्ट ने अलग क्रम लिखा है।

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