प्रारंभ में ‘अखनाटन’ ने मिस्रवासियों के समक्ष ‘एटन’ को पारंपरिक सर्वोच्च देवता ‘Amun-Ra’ के एक प्रतिरूप के रूप में प्रस्तुत किया। अपने धार्मिक विचारों का सामंजस्य प्राचीन मिस्री धार्मिक परंपराओं से करने के लिए उसने, ‘सूर्य-चक्र’ को ‘एटन’ नाम दिया तथा उसका नवीन देवता अपने पूर्ण स्वरूप में ‘Ra-Horus’ था। ‘Donald B. Redford’ ने अखनाटन द्वारा एटनवाद के प्रवर्तन को ‘Aten Iconography (एटन मूर्ति विज्ञान)’ में आए परिवर्तनों की दृष्टि से तीन अवस्थाओं में विभक्त किया है — प्रारंभिक मध्यवर्ती और अंतिम।
प्रारंभिक अवस्था – यह अवस्था ‘सूर्य-चक्र’ के चित्रण में वृद्धि से संबद्ध थी। जिसमें ‘सूर्य-चक्र’ को देवता ‘Ra Hokarthy’ के सिर पर विश्राम करते हुए दर्शाया जाता था।
मध्यवर्ती अवस्था – इस चरण में ‘एटन’ का उन्नयन अन्य देवताओं से उपर होने लगा था तथा मिस्री चित्रालिपि की परंपरा के अनुसार,फराओ के नाम की तरह ‘एटन’ का नाम भी अभिलेखों में ‘कार्तूश’ के अंदर दर्शाया जाने लगा।
अंतिम अवस्था – ‘एटन-वाद’ के चरमोत्कर्ष पर ‘एटन’ का चित्रण सूर्य किरणों से युक्त ‘सूर्य-चक्र’ के रूप में होने लगा जिसमें किरणों के चक्र से विलग या स्वतंत्र सिरे पर ‘मानव-हाथ’ बने होते थे। इस काल में एटन के लिए एक नई उपाधि या विशेषण “महान जीवित चक्र, जो स्वर्ग और पृथ्वी पर आनंदोत्सव के देवता हैं।” का प्रयोग होने लगा।
अखनाटन द्वारा नए धर्म ‘एटनवाद’ की उद्घोषणा
‘अखनाटन’ के शासनकाल के द्वितीय वर्ष में राजदरबार में की गई उद्घोषणा का अभिलेखीय साक्ष्य ‘थीब्स’ में “कारनाक मंदिर संकुल” के स्तंभ पर उत्कीर्ण है। इसके अनुसार अखनाटन ने घोषित किया कि – “देवता निष्प्रभावी हो गए हैं, और उन्होंने अपनी गतिविधियों को समाप्त कर दिया है, इसलिए उनके मंदिर धराशाई हो गए हैं।” अखनाटन ने इसकी तुलना शेष एकमात्र देवता ‘एटन’ से की, जो गतिमान है, और सदैव जीवित रहेंगे।
मिस्र विद्या विशारद ‘Donald B. Redford’ ने अखनाटन के इस संबोधन की तुलना उद्घोषणा या ‘घोषणा-पत्र’ से की है, जो फराओ द्वारा ‘एटन’ देवता को समर्पित या उन पर केंद्रित भावी धार्मिक सुधारों का संकेत अथवा पूर्वाभाषित व्याख्या के सदृश्य था।
कारनाक मंदिर के स्तंभ पर उत्कीर्ण ‘अखनाटन’ की घोषणा —-
देवताओं के मंदिर धराशायी होकर बर्बाद हो गए हैं और उनकी काया टिक नहीं रही है ,
पूर्वजों के समय से बुद्धिमान व्यक्ति इन चीजों को जनता है,
मैं, राजा, ध्यानपूर्वक अवलोकन कर इस विषय में बोल रहा हूं ,
मैं तुम्हें देवताओं की उपस्थिति के विषय में सूचित करूं,
मैं उनके मंदिरों को जानता हूं , और
मैं लेखन कला में प्रवीण हूं ,
विशेष रुप से देवताओं के आदिम स्वरूप की सूची बनाने में ,
और मैंने ध्यानपूर्वक देखा कि उन्होंने (देवताओं ने) अपनी उपस्थिति समाप्त कर दी है,
एक के बाद एक उनमें से सभी रुक गए हैं ,
सिवाए एक देवता के जो स्वयं को जन्म देता है ,
कोई भी इस रहस्य को नहीं जानता कि कैसे वह अपने कार्य का प्रदर्शन करता है ,
यह देवता जहां वह चाहता है, जाता है और अन्य कोई भी नहीं जानता कि वह जा रहा है ,
मैं उस तक पहुंचता हूं, जो चीजें उसने बनाई वे कितनी उच्च हैं।
‘अखनाटन’ ने अपने शासन के प्रारंभिक वर्षों में मिस्र वासियों को परंपरागत देवताओं की पूजा की अनुमति दी लेकिन अपने शासन के पांचवे वर्ष में ‘एटन’ को मिस्र में एकमात्र देवता के रूप में स्थापित करने के लिए निर्णायक कदम उठाए उसने अन्य सभी देवताओं की पूजा को प्रतिबंधित कर इन देवताओं के मंदिरों की आय का अधिकारी “एटन के मंदिरों” को बना दिया।अखनाटन ने ‘एमन रे’ के सर्वप्रमुख और महान पंथ केंद्र ‘कारनाक के मंदिर’ के निकट ‘एटन’ के विशाल मंदिर बनवाए। जिसमें ‘एटन’ को किरणों से युक्त ‘सूर्य-चक्र’ के रूप में निरूपित किया जाता था। इस ‘सूर्य-चक्र’ में किरणों का विस्तार लंबी बाहों के रूप में था तथा प्रत्येक बांह के अंतिम सिरे पर “मानव के छोटे हाथ” बने होते थे। इस काल में अखनाटन ने अपनी नई राजधानी ‘Akhetaten (Horizon of Aten)’ का निर्माण आधुनिक ‘अमर्ना’ के पास करवाया। उसने ‘Akhetaten’ को मिस्र की सभी धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बना दिया। वहां ‘एटन’ के सम्मान में निर्मित विशाल मंदिरों में ‘अखनाटन’, “अंधकारमय कक्षों वाले मंदिरों की विगत परंपराओं” के विपरीत सूर्य की किरणों से प्रकाशमय मंदिरों में पूजा करता था।