प्राचीन मिस्र में 18 वें राजवंश के फराओ ‘अमेनहोटेप IV या अखनाटन’ को ‘जेम्स हेनरी ब्रेस्टेड’ ने इतिहास का प्रथम ‘एकेश्वरवादी’ कहा है। ‘अखनाटन’ को विश्व का महान आदर्शवादी विचारक, अज्ञेय, रहस्यपूर्ण , क्रांतिकारी और इतिहास के प्रथम विशिष्ट व्यक्तित्व के रूप में वर्णित किया जाता है, लेकिन उसे विधर्मी, पाखंडी, कट्टरपंथी तथा विक्षिप्त भी कहा जाता है। विश्व इतिहास में ‘अखनाटन’ की प्रसिद्धि उसके धार्मिक विश्वासों-विचारों तथा उस धर्म के लिए है, जिसे उसने स्थापित करने का प्रयास किया। एटनवाद, एटन-धर्म , अमर्ना-धर्म या अमर्ना-विधर्म उस धर्म और धार्मिक परिवर्तनों के परिचायक हैं, जिसका सूत्रपात ‘फराओ अखनाटन’ ने किया था।
प्राचीन मिस्र के धार्मिक जगत में ‘एटन’ की महत्ता
‘एटन’, प्राचीन मिस्र में पूज्य देवता ‘रा’ या ‘रे’ का एक स्वरूप था। जिसे ‘सूर्य-देवता’ मान कर ‘सूर्य-चक्र’ के रूप में निरूपित किया जाता था। चतुर्थ राजवंश के शासक ‘खफ्रे’ ने ‘हेलियोपोलिस’ के स्थानीय देवता ‘रे’ की आराधना प्रारंभ की, जिससे मिस्र में राजकीय देवता के रूप में ‘सूर्य’ की प्रतिष्ठा और महत्त्व में वृद्धि हुई। । वस्तुतः मिस्रवासी ‘सूर्य’ की पूजा ‘पिरामिड-युग’ में भी करते थे। उनकी मान्यता थी,कि ‘सूर्य’ ने ही ‘फराओ’ के रूप में मिस्र में, सर्वप्रथम शासन किया अर्थात ‘फराओ’ पृथ्वी पर ‘सूर्य’ का प्रतिनिधि था। मिस्र में ‘सूर्य’ की पूजा विभिन्न नामों और रूपों में होती थी। यथा – उत्तरी मिस्र में सूर्य की पूजा ‘रे’ के नाम से होती थी। ‘थीब्स’ में ‘सूर्य’ को ‘एमन’ कहा जाता था और दक्षिणी मिस्र में उसका प्रमुख केंद्र ‘एडफू’ नामक नगर था। ‘एडफू’ में ‘एमन’ की पूजा ‘श्येन’ के रूप में की जाती थी और उसे ‘होरस’ कहा जाता था। उत्तरी और दक्षिणी मिस्र के संयुक्त राज्य की स्थापना के बाद सूर्य को ‘एमन-रे’ कहा जाने लगा।
प्राचीन मिस्र में पांचवें राजवंश के शासनकाल 25 वीं से 24 वीं सदी ई.पू. में ‘रे’ मिस्र की धार्मिक परंपराओं में महत्वपूर्ण देवताओं में एक था, जिसकी पूजा ‘मध्याह्न सूर्य’ के रूप में होती थी। ऐसी मान्यता थी कि ‘रे’ देवता का शासन आकाश, पृथ्वी और पाताल तीनों स्थान पर था तथा वह सूर्य, आकाश, सांसारिक व्यवस्था और राजाओं का देवता था। ‘रे’ को ‘बाज’ के रूप में चित्रित किया जाता था तथा उसकी विशिष्टतायें आकाश के देवता ‘होरस’ के सदृश्य थी। यदा-कदा इन दोनों देवताओं को संयुक्त रुप से ‘Ra-Hokarthy’ का स्वरूप दिया जाता था, जिसमें ” ‘रा’ जो होरस है, दो क्षितिजों का (Ra, who is Horus of the two Horizons)।”
‘एटन: अर्थात ‘वृत्त’, ‘चक्र’ और बाद में ‘सूर्य चक्र’ का प्रथम उल्लेख, पांचवें राजवंश के फराओ ‘नेफेररकेरे काकाई’ के मकबरा से प्राप्त 2400 ई. पू. के पेपाईरस अभिलेख, ‘अबूसिर-पपीरि’ में मिलता है। देवता के रूप में ‘एटन’ का प्रथम उल्लेख 12 वें राजवंश के काल की कृति “सिनुहे की कहानी” में हुआ है। मध्य-राजवंश के काल में ‘सूर्य-चक्र’ के रूप में ‘एटन’ केवल सूर्य देवता ‘रे’ का एक स्वरूप था तथा तुलनात्मक रूप में अव्यक्त और अस्पष्ट ‘सूर्य’ देवता था। मिस्र के धार्मिक इतिहास में ‘एटन’ का स्थान महत्वहीन था तथापि ऐसे उदाहरण प्राप्त होते हैं कि, 18 वें राजवंश विशेषकर फराओ ‘अमेनहोटेप III’ के काल में ‘एटन’ की महत्ता में वृद्धि हुई। ‘अमेनहोटेप III’ की राजसी नौका का नाम ‘एटन की आत्मा (Spirit of Aton)’ था। 18 वें राजवंश के शासनकाल में फराओ को ‘सूर्य-चक्र’ से संबद्ध किया जाने लगा था, यथा – एक अभिलेख में फराओ ‘हतशेपशत (Hatshepsut)’ को ‘Female Re’ ‘सूर्य-चक्र’ के समान चमकने वाला कहा गया है। ‘अमेनहोटेप III’ को सभी विदेशी भूमि पर उदित होने वाला “Nebmare, The Dazzling Disc” कहा गया है।